For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

नसरी नज़्म :- तन्क़ीद निगार

तनक़ीद निगार
अच्छा भी,बुरा भी
अच्छा इसलिये कि वो
हमें हमारी ख़ामियाँ बताता है
हमें सही सम्त (दिशा) देता है
लेकिन जब यही तनक़ीद निगार
प्रोफ़ेश्नल,कारोबारी,हो जाता है
तब ये तख़लीक़ के
महासिन नहीं देखता
उस तख़लीक़ में
धड़कता दिल नहीं देखता
उसकी नज़र सिर्फ़ और सिर्फ़
ऐब तलाश करती है
उस तख़लीक़ में
जो शाईर की,कवि की,
लेखक की,मुसन्निफ़ की
अपनी जागीर है
वो इसमें ऐब निकालकर,कीड़े निकालकर
ख़त्म कर देता है
उस महल को जो ख़यालों में बना था
बिखेर देता है,
तन्क़ीद निगार
अच्छा भी बुरा भी !

"समर कबीर"
मौलिक/अप्रकाशित

Views: 742

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on May 5, 2015 at 8:44pm

बहुत ही सुन्दर और सार्थक नज्म हुयी है आ० समर सर! हार्दिक बधाई!

Comment by Neeraj Neer on May 5, 2015 at 7:39pm

वाह बहुत सुंदर ... 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 5, 2015 at 5:44pm

बिलकुल ठीक फ़रमाया आपने ....
नज़्म अपनी बात पहुँचा रही है ..बधाई 
सादर 

Comment by Dr. Vijai Shanker on May 5, 2015 at 10:58am
आदरणीय समर कबीर साहब , नमस्कार, अभी अभी आपकी नज्म तनक़ीद निगार पढ़ी। विषय गम्भीर है, आलोचना स्वयं में एक बड़ा महत्वपूर्ण विषय है, आलोचक होकर काम करना भी सरल नहीं है , आलोचक किसी रचना में जो है उसे छोड़ वह ढूंढता है जो नहीं है , नतीज़तन , जो है , उसका लुफ्त तो उठा नहीं पाता और मीन मेख निकालने में ही रह जाता है। गलतियां ढूंढता रहता है, डरता रहता है कि कहीं कोई गलती गलती से रह न जाए , कोई और ढूंढ लें और उस पर सही ढंग से काम करने का इल्जाम लग जाए. हाय, गलती ढूंढने में गलती। बहुत से अधिकारियों के ट्रेनिंग पाठ्य क्रम में फाल्ट फाइंडिंग ( fault finding ) एक विषय के रूप में पढ़ाया जाता है, कहना न होगा , उसमें प्रशिक्षणार्थी गलती कर जाते हैं , यह भी कहा जाता है कि जो अफसर किसी भी काम में गलती न निकाल पाये वो कैसा अफसर।
फिर आपने पेशेवर आलोचकों का जिक्र किया है , मजबूर हैं, वैसे उन्हें भी गलती निकालने की आलोचना सुननी पड़ती है. मजबूरी है.
रचना-कर्म के पीछे कितने और कैसे कैसे दर्द छिपे हैं , आलोचल वह नहीं देख पाता हैं, अपने काम इतना मशगूल रहता है. आप सफाई भी दें , पर कहाँ सुनता है।
वैसे मेरा अपना सोंचना कुछ यों है कि जब कुछ लिख दिया तो लिख दिया और वह छप गया तो फिर वह मेरा कम पाठकों का अधिक हो गया। वे आपस में ही तय करलें कि किस लायक है , सिर्फ आलोचक पर तो नहीं छोड़ी जा सकती कोई रचना , वह भी जनतंत्र में।
आपको इस नज़्म के लिए बधाई, बहुत काबिले तारीफ़ है, सादर।
Comment by मनोज अहसास on May 5, 2015 at 10:44am
आदाब सर पूरी nazam कई बार पढ़ी कुछ समझा कुछ नहीं
उर्दू नहीं आती ना
नसरी nazam में भी कोई बहर होती है क्या ये थोडा बता दे
मेरे ख्याल से तो ये मुक्त छंद वाली अतुकांत कविता जैसे ही होती होगी
भाव पूर्ण रचना के लिए बधाई

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

आशीष यादव added a discussion to the group भोजपुरी साहित्य
Thumbnail

दियनवा जरा के बुझावल ना जाला

दियनवा जरा के बुझावल ना जाला पिरितिया बढ़ा के घटावल ना जाला नजरिया मिलावल भइल आज माहुर खटाई भइल आज…See More
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय सौरभ सर, क्या ही खूब दोहे हैं। विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी जी।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . शृंगार

दोहा पंचक. . . . शृंगारबात हुई कुछ इस तरह,  उनसे मेरी यार ।सिरहाने खामोशियाँ, टूटी सौ- सौ बार…See More
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन।प्रदत्त विषय पर सुन्दर प्रस्तुति हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"बीते तो फिर बीत कर, पल छिन हुए अतीत जो है अपने बीच का, वह जायेगा बीत जीवन की गति बावरी, अकसर दिखी…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे,  ओ यारा, ओ भी क्या दिन थे। ख़बर भोर की घड़ियों से भी पहले मुर्गा…"
Sunday
Ravi Shukla commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज जी एक अच्छी गजल आपने पेश की है इसके लिए आपको बहुत-बहुत बधाई आदरणीय मिथिलेश जी ने…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service