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ग़ज़ल - जलता रहा रात भर... (मिथिलेश वामनकर)

212---212---212---212

 

तीरगी सा मैं पसरा रहा रात भर

दीप मन का भी जलता रहा रात भर

 

पा पटक के गया आज पंछी कोई

वो शज़र खूब झरता रहा रात भर

 

दिल उजालो की खातिर चरागाँ हुआ

दम-ब-दम वो पिघलता रहा रात भर

 

फिर नुमाइश में उसका जला पैरहन

एक दरिया सा बहता रहा रात भर

 

खूब आई, न ठहरी मगर वो सदा

कोई दीवार होता रहा रात भर

 

उसको आखिर शबे-गम अता हो गई

आँसुओं से जो डरता रहा रात भर

 

आरज़ू दिल की वैसी न मामूर है

खुद्नुमाई में पिसता रहा रात भर

 

दश्त ने फिर हवा को जो आवाज दी,

शाख पे फूल हँसता रहा रात भर

 

आपबीती वो अपनी सुनाता रहा 

सिलसिला गम का चलता रहा रात भर

 

क्या कहे चाँदनी  ये तो दस्तूर है

चाँद क्यूं हाथ मलता रहा रात भर

 

सरजमीं ने गले जब लगाया उसे

एक पत्थर भी गलता रहा रात भर

 

-----------------------------------------------------------
(मौलिक व अप्रकाशित © मिथिलेश वामनकर )
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Comment

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Comment by shree suneel on April 20, 2015 at 1:25am
आदरणीय मिथलेश वामनकर सर, ख़ूबसूरत रदीफ़ की इस ग़ज़ल के कुछ अशआर तो बहुत ही उम्दा हुए हैं.
बधाईयाँ...
Comment by Dr. Vijai Shanker on April 19, 2015 at 5:49pm
वो ग़ज़ल अपनी हमको सुना ही गया
सिलसिला गम का चलता रहा रात भर
बहुत खूब, बधाई, प्रिय मिथिलेश जी , सादर।
Comment by Samar kabeer on April 19, 2015 at 2:55pm
जनाब मिथिलेश वामनकर जी,आदाब,
"आपकी याद आती रही रात भर
चश्म-ए-नम मुस्कुराती रही रात भर"

इस ज़मीन में आपने अच्छा प्रयास किया है,दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाऐं |
मैं जनाब निलेश "नूर" जी की बात से सहमत हूँ | आप छोटी बह्र में भी प्रयास करके देखिये,मैंने अभी तक आपकी छोटी बह्र में कोई ग़ज़ल नहीं सुनी |
Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on April 19, 2015 at 2:01pm

उसके हिस्से शबे-गम अता हो गए

आँसुओं से जो डरता रहा रात भर

सुन्दर आदरणीय!बधाईयां

Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 19, 2015 at 1:07pm

बहुत खूब आ. 
अच्छी ग़ज़ल हुई है 
मैं निम्न शेर नहीं समझ पा रहा हूँ. यदि थोडा थॉट शेयर करेंगे तो आसानी होगी
.

खूब आई, न ठहरी मगर वो सदा

कोई दीवार करता रहा रात भर.

 

उसके हिस्से शबे-गम अता हो गए

आँसुओं से जो डरता रहा रात भर

 
सादर 

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