For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल :- तिरा दिल है कि पत्थर हँस रहा है

तिरा दिल है कि पत्थर हँस रहा है
ख़ुद अपना घर जलाकर हँस रहा है

बड़े लोगों की बातें भी बड़ी हैं
लगा,जैसे समन्दर हँस रहा है

सलीक़ा मन्द रो देते हैं जिस पर
तू ऐसी बात सुन कर हँस रहा है

बुराई का बुरा अंजाम होगा
फ़क़ीरों पर तुअंगर हँस रहा है

नहीं है ख़ुश कोई आबाद होकर
कोई बर्बाद होकर हँस रहा है

समझ लेना क़यामत आ गई है
अगर देखो,सुख़न्वर हँस रहा है

मिरी बर्बादियों पर ख़ुश है इतना
वो दिल पर हाथ रखकर हँस रहा है

विदाई हो गई बेटी की शायद
तभी मज़दूर खुलकर हँस रहा है

इसी दिन की दुआऐं माँगता था
मिरी क़ीमत लगाकर हँस रहा है

कभी "मारूफ़" को हँसता जो देखूँ
लगे,माह-ए-मुनव्वर हँस रहा है

"समर",ग़ैरत दिलाओ फ़ौजियों को
उधर दुश्मन का लश्कर हँस रहा है

"समर कबीर"
मौलिक/अप्रकाशित

Views: 808

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Samar kabeer on April 8, 2015 at 10:55am
जनाब शिज्जु "शकूर" जी,आदाब,हौसला अफ़ज़ाई के लिये तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ |
Comment by Samar kabeer on April 8, 2015 at 10:52am
जनाब वीनस केसरी जी,आदाब,मेरी ग़ज़लें और कमेंट मेरा बेटा टाईप करता है,टाईपिंग के वक़्त मैं उसे ज़बानी बताता रहता हूँ कि कौन सा शब्द किस तरह टाईप करना है,आप महसूस करेंगे तो समझ लेंगे कि ये मेरे लिये कितना दुश्वार होता होगा और इसमें कितना एक्स्ट्रा समय लगता है |
जनाब सौरभ पाँडे जी ने बताया कि आप अरूज़ और ज़िहाफ़ पर पिछले चार पाँच वर्षों से काम कर रहे हैं,मैं यह जानने के लिये उत्सुक हूँ कि आप अरूज़ के किन बिन्दुओं पर काम कर रहे हैं,ज़िहाफ़ के बारे में तो मैं जानता हूँ कि बह्रों के अरकान के तग़य्युर को ज़िहाफ़ कहते हैं,कृपया मुझे ज़रूर बताऐं क्यूँकि इस संबंध में कुछ तिश्ना सवालात हैं जिनके जवाब अभी तक नहीं मिल सके हैं,मेरे नज़दीक इन चार पाँच वर्षों में आप बहुत कुछ काम कर चुके होंगे,कहते हैं इल्म(ज्ञान) बाँटने से बड़ता है तो क्यूँ न हम एक दूसरे के ज्ञान को शेयर करें,अगर आप इस के लिये तय्यार हैं तो मुझे बताऐं ताकि मैं अपने अगले कमेंट में आपके समक्ष कुछ सवालात रख सकूँ,आम तौर पर यह देखा गया है कि जो शाईर अरूज़ के माहिर होते हैं उनकी ग़ज़लें इतनी अच्छी नहीं होतीं,उनमें एक अजीब सा फीका पन रहता है,एक शाईर के लिये अरूज़ का ईल्म सीखना आवश्यक तो है लेकिन इसमे डूब जाने से शाईरी से हाथ धोना पड़ते हैं,आपके जवाब की प्रतीक्षा में |

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on April 8, 2015 at 10:20am

वाह बेहद खूूबसूरत ग़ज़ल है हर शेर के लिये दिली दाद कुबूल फरमायें

Comment by वीनस केसरी on April 7, 2015 at 10:57pm

तुअंगर शब्द मुझे अर्थहीन लगा और काफिया रदीफ़ की और ध्यान ही न गया ..
स्वीकार करता हूँ निश्चित ही मेरा कमेन्ट जल्दीबाजी में हुआ है ..

मुझे लगा आप स्वयं टाईप नहीं करते और जो कोई टाईप करता होगा ज़रूरी नहीं कि उसे बहर का ज्ञान हो... इसलिए टाईपिंग मिस्टेक के आलावा और कुछ सूझा ही नहीं ...

तुअंगर शब्द का अर्थ ग़ज़ल के साथ लिख दें तो अन्य पाठकों को आसानी होगी ..

सादर

Comment by Samar kabeer on April 7, 2015 at 10:54pm
जनाब गिरिराज भंडारी जी,आदाब,विद्वानों की शिर्कत ग़ज़ल में चार चाँद लगा देती है,सुख़न नवाज़ी और हौसला अफ़ज़ाई के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ |
Comment by Samar kabeer on April 7, 2015 at 10:49pm
जनाब वीनस केसरी जी,आदाब,आपका हुक्म सर आँखो पर,लेकिन जनाब यह टाईपिंग मिस्टेक नहीं है,आपने कमेंट शायद जल्दबाज़ी में कर दिया,"तुअंगर" फ़ारसी भाषा का शब्द है,इसका अर्थ होता है अमीर,दौलतमंद,मालदार|
ये मेरी ग़ज़ल का क़ाफ़िया है आपने लिखा है ऐसा कर लूँ :-
"फ़क़ीरों पर अगर तू हँस रहा है"

तो जनाब ज़रा ग़ौर तो कीजिये इस तरह तो क़ाफ़िया ही बदल जाता है,ग़ज़ल में शिर्कत के लिये और हौसला अफ़ज़ाई के लिये तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ |
Comment by Samar kabeer on April 7, 2015 at 10:36pm
आली जनाब डा.विजय शंकर जी,आदाब,ग़ज़ल में शिर्कत और हौसला अफ़ज़ाई के लिये तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ |
Comment by Samar kabeer on April 7, 2015 at 10:34pm
जनाब मिथिलेश वामनकर जी,आदाब,आप ख़ुद अच्छी ग़ज़ल कहते हैं, ग़ज़ल में आपकी शिर्कत से ही दिल बाग़ बाग़ हो जाता है,सुख़न नवाज़ी के लिये तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ |
Comment by Samar kabeer on April 7, 2015 at 10:29pm
जनाब "जान" गोरखपुरी साहिब,आदाब,ग़ज़ल में शिर्कत के लिये और हौसला अफ़ज़ाई के लिये तहे दिल से शुक्रिया |
Comment by Samar kabeer on April 7, 2015 at 10:27pm
जनाब श्याम नारायण वर्मा जी,आदाब,ज़र्रा नवाज़ी के लिये तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ |

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

आशीष यादव added a discussion to the group भोजपुरी साहित्य
Thumbnail

दियनवा जरा के बुझावल ना जाला

दियनवा जरा के बुझावल ना जाला पिरितिया बढ़ा के घटावल ना जाला नजरिया मिलावल भइल आज माहुर खटाई भइल आज…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय सौरभ सर, क्या ही खूब दोहे हैं। विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी जी।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . शृंगार

दोहा पंचक. . . . शृंगारबात हुई कुछ इस तरह,  उनसे मेरी यार ।सिरहाने खामोशियाँ, टूटी सौ- सौ बार…See More
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन।प्रदत्त विषय पर सुन्दर प्रस्तुति हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"बीते तो फिर बीत कर, पल छिन हुए अतीत जो है अपने बीच का, वह जायेगा बीत जीवन की गति बावरी, अकसर दिखी…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे,  ओ यारा, ओ भी क्या दिन थे। ख़बर भोर की घड़ियों से भी पहले मुर्गा…"
Sunday
Ravi Shukla commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज जी एक अच्छी गजल आपने पेश की है इसके लिए आपको बहुत-बहुत बधाई आदरणीय मिथिलेश जी ने…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service