For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल :-सभी कहते हैं अच्छा बोलता है

बह्र:- फ़ऊलुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन

सभी कहते हैं अच्छा बोलता है
जो हम बोलेंगे तोता बोलता है

हमारा काम क्या उन महफ़िलों में
जहाँ दौलत का नश्शा बोलता है

कोई लोरी सुनाओ,गीत गाओ
अधूरा एक सपना बोलता है

ज़रा महकी हुई ज़ुल्फों की ठंडक
कई रातों का जागा बोलता है

मैं सच्चाई की बातें कर रहा हूँ
समझते हैं दिवाना बोलता है

तिरी शक्ति है अपरम पार मौला
तिरे आगे तो गूंगा बोलता है

छुपाए से नहीं छुपती हक़ीक़त
ज़बाँ चुप हो तो चहरा बोलता है

बंधे हैं एकता की डोर से हम
गवाही में तिरंगा बोलता है

कोई महमान आने को है शायद
हमारी छत पे कौआ बोलता है

ग़ज़ल कहना नहीं है खेल कोई
सुना तुमने ,"समर" क्या बोलता है

"समर कबीर"
मौलिक/अप्रकाशित

Views: 1506

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Samar kabeer on April 7, 2015 at 11:05pm
जनाब सौरभ पाँडे जी,आदाब,आपकी बात से शत प्रतिशत सहमत हूँ,स्नेह बनाए रखियेगा |

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on April 7, 2015 at 10:42pm

आदरणीय समर कबीर साहब,प्रत्युत्तर में हुए विलम्ब के लिए क्षमा.

आपकी संवेदनशीलता का पूरा सम्मान करते हुए मैं आपकी इस ग़ज़ल को पढ़ गया. फिर इस ग़ज़ल पर आये सभी कोमेण्ट देखे. जैसा कि मैंने अपने पहले कोमेण्ट में ही कहा है कि मैं बहर के अरकान पर पहले ही इशारा कर चुका हूँ. तो फिर बार-बार दुहराने की आवश्यकता नहीं थी.

भाईजी, हमसभी कोई उस्ताद आदि नहीं हैं. इस मंच पर शायद ही कोई हो जिसे हम प्रचलित मानकों और जानकारियों के लिहाज से उस्ताद के तौर स्वीकार कर सकें. न कोई इस सम्बोधन को स्वीकारेगा. लेकिन अभ्यास करने के क्रम में सभी सीखते हुए विधान के तौर पर समृद्ध होते गये हैं. और, सीखी हुई जानकारियों को साझा करते रहते हैं. इस तरह इस मंच पर ’सीखने-सिखाने’ का क्रम चलता रहता है. यह लगातार ’सीखते रहना’ ही हमारे जैसों की पूँजी है.

भाई वीनसजी के कोमेण्ट में जो तार्किकता है वह किसी के पास अनायास नहीं आ जाती. बल्कि उसे अर्जित करनी होती है. वीनस भाई ने पिछले चार-पाँच वर्षों में जिस तरह से अरुज़ और ज़िहाफ़ पर मेहनत की है वह विरले देखने को मिलता है. अतः हम उनकी उम्र कत्तई न देखें.

अब उक्त मिसरे की बात जिसमें शक्ति शब्द आया है.


यह विन्दु मानक की अक्षरी (वर्तनी) और व्यवहार की अक्षरी के बीच फँसा हुआ विन्दु है. आपने ही नहीं हमने भी मोती की तुकान्तता में ज्योति को देखा है. उसी तर्ज़ पर शक्ति का भी प्रयोग होता है. ऐसा अकसर ज्योति या शक्ति जैसे शब्दों के आंचलिक अथवा प्रचलित उच्चारणों के अनुसार अक्षरी प्रयोग में लाने के कारण होता है.
महाराष्ट्र में शक्ति की अक्षरी (वर्तनी) शक्ती होती है. ज्योति को पूरे होशोहवास में ज्योती लिखते हैं. मराठी की लिपि देवनागरी ही है जो हिन्दी की है. अतः मराठी लिखने और जानने वाले हिन्दी भाषा के शब्दों को उसी हिसाब से प्रयोग कर लेते हैं. जैसा कि ब्राह्मण शब्द उर्दू में बिरहमन हो जाता है. या उर्दू का शह्र या फ़स्ल आदि हिन्दी में क्रमशः शहर या फ़सल हो जाता है. यही ज्योती या शक्ती शब्द फिर उर्दू या कई बार हिन्दी में इसी अक्षरी के साथ प्रयुक्त होने लगते हैं.
फ़िल्मी गीतों में अमूमन शक्ती का प्रयोग हो जाता है. मुझे लगता है आप उसी का उद्धरण दे रहे हैं कि शक्ति चार हर्फ़ी है अतः दो गुरुओं का वज़न होगा. जबकि शुद्ध शब्द वही है जिसका हवाला वीनस भाई ने दिया है.

एक बात और, आदरणीय, आप अपनी बातें, अपने विन्दु खुल कर कहें. हम चाहते हैं कि बातें खुल कर हों. लेकिन कोई चर्चा मुर्गे की टांग के हश्र को प्राप्त न हो जाये. सबको अपनी बातें कहने का अधिकार है. अतः आप फिर मैं तवील कोमेण्ट न करूँगा न कहें. आपसे सुनना हमें कई तथ्य से परिचित करायेगा.
विश्वास है, मैं अपनी बातें कह पाया.
सादर

Comment by Samar kabeer on April 7, 2015 at 9:51am
जनाब धर्मेन्द्र कुमार सिंह जी,आदाब,हौसला अफ़ज़ाई के लिये तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ |
Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 7, 2015 at 9:47am

अच्छी ग़ज़ल हुई है जनाब समर साहब, दाद कुबूल करें

Comment by Samar kabeer on April 6, 2015 at 11:41pm
जनाब सौरभ पाँडे जी,आदाब,आपसे एक दोस्ताना शिकायत है कि आपने मेरी ग़ज़ल में शिर्कत नहीं की और न ही मेरी हौसला अफ़ज़ाई की इसका अफ़सोस है, "इन आँखो ने ये दिन मुझ को दिखाया कभी ख़ुद से में शर्मिंदा नहीं था " आपके क़ीमती वक़्त में से थोड़ा सा वक़्त लेना चाहूँगा,ये मेरा आख़री तवील कमेंट होगा, ओ.बी.ओ और उसके सदस्यों की मेरी नज़र में जो इज़्ज़त है उसके सबूत मैं बारहा पेश कर चुका हूँ ,मैने अपने किसी भी कमेंट में कभी अपशब्द का इस्तेमाल नहीं किया,जो भी कहा शाईस्ता लहजे में ही कहा,आप को मैं अपनी विपदा एक दोस्त की तरह बता रहा हूँ,कृपया इसका कोई और मतलब नहीं निकालियेगा ,यह एक शाईर की विपदा है,क़ाबिले ज़िक्र मिसरे केबारे में जो बहस हुई उसमें जब ये कहा गया है कि यह मिसरा बह्र से ख़ारिज हो रहा है,बह्र के बारे में आप कहेंगे तो मान लूँगा कि मैने ग़लत अरकान लिख दिये लेकिन ये बात कि मिसरा "शक्ति" शब्द की वजह से बह्र से ख़ारिज हो रहा है किसी क़ीमत पर तस्लीम नहीं करूँगा कि ये मिसरा बह्र से ख़ारिज है,क्यूँकि यह मेरा प्रेस्टिज पोईन्ट है,अपने पचास साला अदबी सफ़र में अगर मुझे इतना तमीज़ भी नहीं आया तो मेरे शाईर होने पर सवालिया निशान बन जाता है और ये मैं कभी गवारा नहीं कर सकता,15 वर्षों से मैने किसी किताब का मुतालिआ नहीं किया,आप विद्वान हैं मेरी इस बात का समर्थन करेंगे कि जब मुतालिआ नहीं होता तो ज्ञान में व्रद्धी नहीं होती,अपनी ग़ज़ल पोस्ट करने से लेकर कमेंट करने तक मैं किन मराहिल से गुज़रता हूँ,मेरा दिल जानता है,अगर आप दिल की गहराई से मेरी तकलीफ़ को सोचेंगे तो मेरा दर्द यक़ीनन समझ लेंगे,बात बहुत तवील कर दी मैने,विद्वानों के लिये तो थोड़ा लिखा ही काफ़ी होता है,थोड़ी देर से ग़ज़ल पोस्ट कर रहा हूँ ,पढ़ कर राय ज़रूर दीजियेगा,कष्ट के लिये क्षमा प्रार्थी हूँ |
Comment by वीनस केसरी on April 6, 2015 at 2:28pm

आपके रुख़ को देख कर हैरानी हुई और सख्त अफ़सोस हुआ था इसीलिए शायद मेरे बयान में कुछ तल्खी आ गयी थी ...

इस मंच की परिपाटी आपस में सीखने सिखाने की है और माहौल को समरस बनाए रखने के लिए इस मंच के कर्ता-धर्ता जी जान से जुटे रहते हैं इसलिए अगर मुआमला एकतरफ़ा हो जाता है तो संवाद मुझे विचलित करते हैं ...

आप जानकार हैं वरिष्ठ हैं आपसे इस मंच को उम्मीदें हैं
मैं दुआ करता हूँ कि हम सब इस मंच की गरिमा को बनाए रखें

आमीन

Comment by Nirmal Nadeem on April 6, 2015 at 12:46pm

आदरणीय समर कबीर साहेब, मुझे किसी बात का कोई मलाल नहीं है।  आपकी आँखों के  बारे में  मुझे कोई ज्ञान नहीं  था  इसलिए मुआफ़ी चाहता हूँ।  यहाँ पे सब अपने ज्ञान  पर ही बात करते है. कोई हवा में पत्थर नहीं उछालता।  मेरी जहाँ तक बात है वह पहले कमेंट में साफ़ लिखा है हालांकि आपने तमाम अशआर पेश किये जिनसे थोड़ी तकलीफ तो हुई लेकिन मुझे इस बात का ग़िला नहीं है।  मैं कभी बग़ैर प्रमाण के बात ही नहीं करता , जहाँ मुझे नहीं आता मैं नहीं बोल देता हूँ कभी भी मैं ग़लत राय नहीं देता। आप की ग़ज़ल बहुत ही खूबसूरत है इसलिए मुझे ये एक शेर खटका तो मैंने कह दिया। बाकी आप समझदार हैं।  शुक्रिया। 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on April 6, 2015 at 12:07pm

आदरणीय समर कबीरजी, मै आपके इस ’बहर’ के वज़न और अरकान पर आपको पहले भी अग़ाह कर चुका हूँ (आपकी ही किसी औरप्रस्तुति पर). लेकिन आपने उसे हल्के में सुन कर निकाल दिया था. ज़ाहिर है, इस मंच के हमसभी अपनी-अपनी दुनिया में व्यस्त लोग हैं. फिर भी, आपसी समझ से सीखने-सिखाने के तौर पर कोशिशें करते हैं. अब हर विन्दु पर उचित बहस हो पाये, ऐसा हमेशा नहीं हो पाता. उस टिप्पणी के बाद हम भी व्यस्त हो गये.
अभी निर्मल भाई की टिप्पणियों के हवाले से और भाई वीनस केसरी की टिप्पणी के हवाले से कई बातें साझा हुई हैं. विश्वास है, आप ध्यान देंगे. आपसे बहुत कुछ सीखना है, आदरणीय. लेकिन अव्वल आप इस मंच की परिपाटी को समझें और इज़्ज़त दें.
सादर

Comment by Samar kabeer on April 6, 2015 at 11:54am

जनाब निर्मल नदीम जी,आदाब,मेरी किसी बात से अगर आप के दिल को ठेस पहुँची हो तो मैं आपसे मुआफ़ी चाहता हूँ,आपको शायद यह बात मालूम नहीं (मंच को मालूम है ) कि मैं आँखो से माज़ूर हूँ, अगर आप का दिल साफ़ हो गया हो तो मुझे ज़रूर बताऐं | शुक्रिया!

Comment by Samar kabeer on April 6, 2015 at 11:44am
जनाब वीनस केसरी साहिब,आदाब,बात यहाँ से शुरू होती है कि मिसरा "तिरी शक्ति है अपरम पार मौला" को बह्र से ख़ारिज क़रार दिया गया जबकि ऐसा नहीं है,उर्दू में "शक्ति" शब्द चार हरफ़ी है,इस लिहाज़ से इसका वज़्न 22 होना चाहिये,मैं पहले भी अर्ज़ कर चुका हूँ कि मुझे हिन्दी भाषा का ज्ञान कम है,मुझसे पहली ग़लती तो यह हुई कि क़ाबिल-ए-ज़िक्र मिसरे में मैने हिन्दी शब्दों का इस्तेमाल किया और बह्र के अरकान फ़ऊलुन फ़ाईलातुन फ़ाईलातुन लिखे,जैसा कि आपने लिखा है कि इस बाबत असातज़ा से मशवरा कर लूँ तो यह अमल कमेंट देने से पहले ही कर चुका हूँ,मुझे बताया गया कि यह अरकान भी ग़लत नहीं कहे जा सकते और ये मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन फ़ऊलुन भी सही हैं, अपनी तहरीर में लहजे की सख़्ती के लिये शर्मिन्दा हूँ,इस का एक सबक़ तो ये है कि मुझे ग़ज़ल पोस्ट करने में और कमेंट करने में जिन मराहिल से गुज़रना पड़ता है वह मैं ही जानता हूँ ,मेरी इस मजबूरी से शायद आप वाक़िफ़ नहीं हैं,इसी वजह से लहजे में कड़वाहट आ गई,जिसके लिये मैं एक बार फिर माज़रत तलब हूँ ,मुझे भी आप की इस बात से इत्तिफ़ाक़ है कि किसी भी अदबी बहस में उम्र का कोई दख़्ल नहीं होता,मैं तो बक़ौल दिवाकर "राही" :-
"बात सच है तो फिर क़ुबूल करो
ये न देखो कि कौन कहता है "

पर अमल करता आया हूँ, कोई भी बहस या तनक़ीद बराए इस्लाह होना चाहिये,तनक़ीद बराए तनक़ीद नहीं होना चाहिए,आपने बात करने का जो तरीक़ा इख़्तियार किया है वह पसंद आया,आपने मेरी आँखे खोल दी,इसके लिये मैं आपका शुक्रगुज़ार हूँ ,आईन्दा मैं इस बह्र के अरकान "मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन फ़ऊलुन" ही लिखा करूँगा,ग़ज़ल में शिर्कत के लिये और हौसला अफ़ज़ाई के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ,आपने अगर मेरी माज़रत क़ुबूल करली हो तो मुझे एक लाईन लिख कर ज़रूर बताऐं |

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी

२१२२       २१२२        २१२२   औपचारिकता न खा जाये सरलता********************************ये अँधेरा,…See More
4 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post छन्न पकैया (सार छंद)
"आयोजनों में सम्मिलित न होना और फिर आयोजन की शर्तों के अनुरूप रचनाकर्म कर इसी पटल पर प्रस्तुत किया…"
7 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन पर आपकी विस्तृत समीक्षा का तहे दिल से शुक्रिया । आपके हर बिन्दु से मैं…"
18 hours ago
Admin posted discussions
yesterday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपके नजर परक दोहे पठनीय हैं. आपने दृष्टि (नजर) को आधार बना कर अच्छे दोहे…"
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"प्रस्तुति के अनुमोदन और उत्साहवर्द्धन के लिए आपका आभार, आदरणीय गिरिराज भाईजी. "
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी

२१२२       २१२२        २१२२   औपचारिकता न खा जाये सरलता********************************ये अँधेरा,…See More
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा दशम्. . . . . गुरु

दोहा दशम्. . . . गुरुशिक्षक शिल्पी आज को, देता नव आकार । नव युग के हर स्वप्न को, करता वह साकार…See More
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल आपको अच्छी लगी यह मेरे लिए हर्ष का विषय है। स्नेह के लिए…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति,उत्साहवर्धन और स्नेह के लिए आभार। आपका मार्गदर्शन…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय सौरभ भाई , ' गाली ' जैसी कठिन रदीफ़ को आपने जिस खूबसूरती से निभाया है , काबिले…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service