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कौन पी गया जल मेघों का …..

कौन पी गया जल मेघों का …..

कौन पी गया जल मेघों का …..
और किसने नीर बहाये //
क्योँ बसंत में आखिर …
पुष्प बगिया के मुरझाये //
प्रेम ऋतु में नयन देहरी पर …
क्योँ अश्रु कण मुस्काये //
विरह का वो निर्मम क्षण ….
धड़कन से बतियाये //
वायु वेग से वातायन के ….
पट क्योँ शोर मचाये //
छलिया छवि उस निर्मोही की …
तम के घूंघट से मुस्काये //
वो छुअन एकान्त की ….
देह विस्मृत न कर पाये //
तृषातुर अधरों से विरह की ….
तपिश सही न जाए //
नयन घटों पर व्याकुल तृप्ति …
दूर खड़ी सकुचाये //
गौर कपोल पे कुंतल-लट का …
नेह ये शोर मचाये //
पी वियोग में अंजन रेखा …..
संग अंसुअन के बही जाए //

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Hari Prakash Dubey on February 19, 2015 at 8:51am

आदरणीय सुशील सरना सर बहुत खूब कहा है आपने ,

कौन पी गया जल मेघों का …..
और किसने नीर बहाये //
क्योँ बसंत में आखिर …
पुष्प बगिया के मुरझाये //  सुन्दर रचना , हार्दिक बधाई ! सादर 

Comment by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on February 19, 2015 at 4:32am

सशक्त शब्द संयोजन ...भावपूर्ण ...बधाई 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on February 18, 2015 at 11:10pm

आदरणीय सुशील सरना सर, सुन्दर भावों से सजी रचना के लिए हार्दिक बधाई निवेदित है.

Comment by somesh kumar on February 18, 2015 at 7:26pm

वाह !शब्द कितनी सुन्दरता से संजोए आप ने |विरह का जो भी अवसाद हो ,पर उसका प्रकटीकरण बहुत सार्थक ढंग से किया है |बधाई !

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on February 18, 2015 at 6:20pm

सुंदर शब्द व् भाव से सजी हुई प्रस्तुति. बधाई आदरणीय सरना जी

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on February 18, 2015 at 1:16pm

SARNAA JEE

सुन्दर भावपूर्ण रचना i

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