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जिन्दा रखना - लघुकथा

सुकन्या भारतीय वायुसेना में नौकरी के पहले दिन तैयार होते ही भागी भागी आयी और अपनी माँ मधु को एक सैल्यूट करते हुए कहा, "माँ देखो, तुम्हारा सपना, तुम्हारे सामने| अब और क्या चाहिये तुम्हे?"

मधु की आखों में चमक के साथ साथ आंसू भी आ गये| उसने कहा, "एक वादा और चाहिये, बेटे| यदि तेरे भी बेटी हुई और तेरा पति और सास उसकी हत्या करने की कोशिश करे, तो तू मेरे जैसे अपनी बेटी को लेकर भाग मत आना| तेरी बेटी की रक्षा करने का कोई न कोई तरीका तुझे तेरे अफसर सिखा ही देंगे|"

(मौलिक और अप्रकाशित)

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Comment by rajesh kumari on January 31, 2015 at 10:19am

बहुत बढ़िया सन्देश एवं प्रेरणा  देती हुई लघु कथा ....हार्दिक बधाई चंद्रेश जी |

Comment by VIRENDER VEER MEHTA on January 31, 2015 at 9:53am

Aadharniya Chandreshji khoobsurat....Beti ko sangharsh karne ki preena deti huyi sundar rachna.

Comment by somesh kumar on January 30, 2015 at 10:47pm

बदलते समय के साथ नारी इतनी सशक्त हो जाएगी यही उम्मीद जगाती है ये लघुकथा |उम्मीदों की इस लघुकथा के सराहनीय प्रयास पर बधाई |

Comment by Hari Prakash Dubey on January 30, 2015 at 9:28pm

आदरणीय चन्द्रेश जी , सुन्दर और सार्थक लघुकथा पर हार्दिक बधाई आपको !

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