For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

1222 / 1222 / 1222 / 1222
-
ग़ज़ल ने यूँ पुकारा है मेरे अल्फाज़, आ जाओ 
कफ़स में चीख सी उठती, मेरी परवाज़ आ जाओ

 

 

चमन में फूल खिलने को, शज़र से शाख कहती है 
बहारों अब रहो मत इस कदर नाराज़ आ जाओ



किसी दिन ज़िन्दगी के पास बैठे, बात हो जाए
खुदी से यार मिलने का करें आगाज़, आ जाओ



भला ये फ़ासलें क्या है, भला ये कुर्बतें क्या है
बताएँगे छुपे क्या-क्या दिलों में राज़, आ जाओ



हमारे बाद फिर महफिल सजा लेना ज़माने की
तबीयत हो चली यारों जरा नासाज़, आ जाओ



अकीदत में मुहब्बत है सनम मेरा खुदा होगा
अरे दिल हरकतें ऐसी ज़रा सा बाज़ आ जाओ



मरासिम है गज़ब का मौज़ से, साहिल परेशां है
समंदर रेत को आवाज़ दे- ‘हमराज़ आ जाओ’



ख़ुशी ‘मिथिलेश’ अपनी तो हमेशा बेवफा निकली
ग़मों ने फिर पुकारा है- ‘मिरे सरताज़ आ जाओ’

---------------------------------------------
(मौलिक व अप्रकाशित) © मिथिलेश वामनकर 
---------------------------------------------


बह्र-ए-हज़ज मुसम्मन सालिम
अर्कान – मुफाईलुन / मुफाईलुन / मुफाईलुन / मुफाईलुन
वज़्न – 1222 / 1222 / 1222 / 1222

 

Views: 2983

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Rahul Dangi Panchal on January 5, 2015 at 9:10am
आदरणीय शिज्जु "शकूर" सर जी शुक्रिया!, मैं समझ गया! सादर

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on January 5, 2015 at 8:22am
आदरणीय राहुलजी आप आदरणीय सौरभ सर की टिप्पणी को ध्यान से पढ़ें बात साफ हो जायेगी

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 4, 2015 at 11:42pm

आदरणीय मिथिलेश भाईजी. खयाल, कहन, शिल्प, और महीनी को संतुष्ट करती इस ग़ज़ल केलिए हृदयतल से बधाइयाँ.

अलबत्ता, मैंने इस ग़ज़ल पर कुछ विशिष्ट टिप्पणियाँ पढ़ीं. क़ाफ़िया को लेकर.
 
ऐसे प्रश्न आजसे नहीं उठाये जा रहे हैं. उच्चारण और अक्षरी (वर्तनी) अपनी जगह वर्णमाला तक सीखने की बाध्यता लादी जाती है. तब ग़ज़ल सीखने को तैयार होइये. भाषा तक बदलिये ! यानि सोनेट की विधा में लिखना है तो पहले अंग्रेज़ी जानिये... हाइकू, हाइगा, तांका आदि विधाओं का उपयोग करना है तो पहले जापानी सीखें.. :-))

देवनागरी वर्णमाला में जितने अक्षर अभी विद्यमान हैं, उनका ही प्रयोग कर हिन्दी भाषा का लिखित रूप चलता है और आपने अवश्य ही हिन्दी भाषा की देवनागरी लिपि में कोई रचना प्रस्तुत की है. उस रचना की विधा है ग़ज़ल.
हाँ, कुछ विशिष्ट शब्दों के उच्चारण अब इतने भर अक्षर से संभव नहीं हो पा रहे हैं. तो वैयाकरणों की स्वीकृति से पहले ही जागरुक प्रयोगकर्ताओं ने कुछ विशेष अक्षर अपना लिये हैं  और उनका प्रयोग ऐसे-वैसे चल पड़ा है. वही तो आपने किया है.या जबतब हम भी करने का प्रयास करते हैं !  वर्ना ’ज’ जिस वर्णमाला के वर्ग से आता है, वह है चवर्ग. इसमें मात्र एक ज है.

आप ग़ज़ल विधा पर अभ्यासरत रहें.. बाकी बातें ग़ज़ल विधा के अलावा की बातें हैं.
शुभ-शुभ

Comment by Rahul Dangi Panchal on January 4, 2015 at 8:57pm
आदरणीय शिज्जू शकूर जी उर्दू तो मैं बिल्कुल भी नहीं जानता ! मेरा प्रश्न यह है कि गर हम हिन्दी गजल कह कर मंच पर पढ़ने जाते है तो भी क्या किसी उर्दूदां को आपत्ति होगी?
Comment by Rahul Dangi Panchal on January 4, 2015 at 8:50pm
आदरणीय मिथिलेश वामनकर सर जी बहुत ही खूबसूरत गजल! वाह! रदीफ बहुत सुन्दर लगा!

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 4, 2015 at 5:15pm

आदरणीय  maharshi tripathi  जी  हौसलाअफजाई के लिए तहे-दिल से शुक्रिया 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 4, 2015 at 5:14pm

आदरणीय  Er. Ganesh Jee "Bagi"  सर आपको प्रयास पसंद आया लिखना सार्थक हुआ, आपके कमेन्ट से बहुत उत्साह मिलता है और रचनाकर्म को भी बहुत बल मिलता है आभार हार्दिक धन्यवाद, नमन 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 4, 2015 at 5:07pm

आदरणीय  ram shiromani pathak जी इस प्रयास को आपने पसंद किया आभार.... हौसलाअफजाई के लिए तहे-दिल से शुक्रिया 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 4, 2015 at 5:05pm

 आदरणीय   डॉ.कंवर करतार 'खन्देह्ड़वी'   जी  हौसलाअफजाई के लिए तहे-दिल से शुक्रिया 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 4, 2015 at 5:04pm

आदरणीय शिज्जु भाई जी  हौसलाअफजाई के लिए तहे-दिल से शुक्रिया 

आपने जो त्रुटी बताई वो सही है कृपया इसका समाधान भी बताने की कृपा करें फिलहाल मुझे नए काफिया नहीं सूझ रहे है....  उर्दू के मुताबिक ज़ाल(ز)ज़्वाद(ض) ज़ो (ظ)जीम( ج) हमकाफिया नहीं हैं ये जानकारी मुझे आज ही हुई है.   पर नुक्ते का अब तक मैं एक ही उच्चारण करता हूँ इसलिए ये भेद ज्ञात नहीं थे.  सादर 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . विविध
"आदरणीय जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय । हो सकता आपको लगता है मगर मैं अपने भाव…"
14 hours ago
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . विविध
"अच्छे कहे जा सकते हैं, दोहे.किन्तु, पहला दोहा, अर्थ- भाव के साथ ही अन्याय कर रहा है।"
17 hours ago
Aazi Tamaam posted a blog post

तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या

२१२२ २१२२ २१२२ २१२इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्यावैसे भी इस गुफ़्तगू से ज़ख़्म भर…See More
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"परम् आदरणीय सौरभ पांडे जी सदर प्रणाम! आपका मार्गदर्शन मेरे लिए संजीवनी समान है। हार्दिक आभार।"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . . . विविध

दोहा सप्तक. . . . विविधमुश्किल है पहचानना, जीवन के सोपान ।मंजिल हर सोपान की, केवल है  अवसान…See More
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"ऐसी कविताओं के लिए लघु कविता की संज्ञा पहली बार सुन रहा हूँ। अलबत्ता विभिन्न नामों से ऐसी कविताएँ…"
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

छन्न पकैया (सार छंद)

छन्न पकैया (सार छंद)-----------------------------छन्न पकैया - छन्न पकैया, तीन रंग का झंडा।लहराता अब…See More
yesterday
Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"आदरणीय सुधार कर दिया गया है "
Tuesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"आ. भाई सुरेश जी, सादर अभिवादन। बहुत भावपूर्ण कविता हुई है। हार्दिक बधाई।"
Monday
Aazi Tamaam posted a blog post

ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के

२२ २२ २२ २२ २२ २चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल केहो जाएँ आसान रास्ते मंज़िल केहर पल अपना जिगर जलाना…See More
Monday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

गहरी दरारें (लघु कविता)

गहरी दरारें (लघु कविता)********************जैसे किसी तालाब कासारा जल सूखकरतलहटी में फट गई हों गहरी…See More
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

शेष रखने कुटी हम तुले रात भर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

212/212/212/212 **** केश जब तब घटा के खुले रात भर ठोस पत्थर  हुए   बुलबुले  रात भर।। * देख…See More
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service