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मुझे जो कहना है कहूँगा
तुम चाहे जो सजा दो
छड़ी मार या तड़ी पार
फिर भी कहूँगा बारम्बार.
क्यों सपने दिखाते हो?
अपनी बातों में उलझाते हो
देश अब कराह रहा है
फिर भी तुम्हे सराह रहा है .
सपनों के साकार होने का
वख्त शायद आ गया है
अच्छे दिन कब आएंगे?
हर  जेहन में आ गया है.
जिस उंगली ने वोट किया
वो अब उठने लगी है,
शायद तुन्हारी इक्षाशक्ति
तुमसे रूठने लगी है.
कुछ करो न चमत्कार
जिसे जनता करे स्वीकार
फिर होगी जयकार.

विजय प्रकाश
मौलिक व अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Dr.Vijay Prakash Sharma on November 29, 2014 at 11:04am

बहुत आभार आ . दुबे जी.सादर

Comment by Dr.Vijay Prakash Sharma on November 29, 2014 at 11:03am

बहुत आभार आ . वर्मा जी.सादर

Comment by Shyam Narain Verma on November 29, 2014 at 9:58am

बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ... सादर बधाई

Comment by Hari Prakash Dubey on November 28, 2014 at 11:47pm

वर्तमान सन्दर्भ मे कही गयी सुन्दर रचना ,सर हार्दिक बधाई !

Comment by Dr.Vijay Prakash Sharma on November 28, 2014 at 3:53pm

आभार सोमेश जी

Comment by somesh kumar on November 28, 2014 at 9:11am

देश अब कराह रहा है 
फिर भी तुम्हे सराह रहा है |

बहुत सटीकता से जन-जन की बात कह डाली ,सुंदर प्रस्तुति 

 

Comment by Dr.Vijay Prakash Sharma on November 27, 2014 at 10:40pm

रचना पसंद करने के लिए बहुत आभार श्री जितेंद्र जी, सादर. 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on November 27, 2014 at 10:32pm

छोटी सी कविता में, बड़ी बात कह ही डाली आपने. बधाई , सर

Comment by Dr.Vijay Prakash Sharma on November 27, 2014 at 10:15pm

आपकी सराहना पाकर धन्य हो गया आ.विजय शंकर जी,

Comment by Dr.Vijay Prakash Sharma on November 27, 2014 at 10:11pm

बहुत आभार योगराज भाई.सादर.

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