For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मन की...

तपती धरा पर

कुछ  बूंदें  ही बारिश की

यूँ पड़ी..

न कोई राहत ,न ही सौंधी सी महक

सिर्फ बेचैनी और उमस

कहीं संवेदनाओं की मिट्टी

पत्थर तो नहीं हो गई

 

या वर्ष भर के

लम्बे विरह से

मिलन की ,भूख-प्यास चाहती हो

खूब टूट-टूट कर 

बरसें   ये बादल

हाँ..! यही सच है

शायद..

मन भी यही चाहता है.

जितेन्द्र’गीत’

(मौलिक व् अप्रकाशित)

Views: 677

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on June 30, 2014 at 10:43pm

आपका ह्रदय से आभार आदरणीय शुशील जी

सादर!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on June 30, 2014 at 1:29pm

मेरे इस नाम के साथ, रचना पर आपके आशीर्वाद से बहुत अपनापन मिला आदरणीय डा. गोपाल जी, अपना स्नेहिल आशीर्वाद युहीं बनाये रखियेगा

सादर !

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on June 30, 2014 at 1:27pm

रचना पर आपका स्नेह , मुझे हमेशा सम्बल देता है आदरणीया राजेश दीदी .अपना स्नेह व् आशीर्वाद बनाये रखियेगा
सादर !

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on June 30, 2014 at 1:23pm

आप काफी हद तक सही ही कह रहे है आदरणीय जवाहर जी, रचना पर आपकी उपस्थिति हेतु आपका ह्रदय से आभार

सादर !

Comment by Sushil Sarna on June 30, 2014 at 1:23pm

आंतरिक मनोभावों का सुंदर चित्रण  करती इस सुंदर रचना के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय जितेन्द्र गीत जी 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on June 30, 2014 at 1:20pm

रचना के भाव ने आपके मन को छुआ, लेखनकर्म सार्थक हुआ आदरणीय डा विजय जी. स्नेह बनाये रखियेगा
सादर !

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on June 30, 2014 at 1:17pm

रचना पर आपकी उपस्थिति हेतु आपका हार्दिक आभार आदरणीया माहेश्वरी जी

सादर !

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 30, 2014 at 11:37am

जीतू जी

बहुत ही अच्छे भाव है i  आपने कम शब्दों में बड़ी बात कही i 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 30, 2014 at 10:23am

मन के भाव को कितने सुन्दर शब्दों से पिरोया है इस रचना में ....बहुत ज्यादा पसंद आई ये रचना |

हार्दिक बधाई जितेन्द्र भैय्या |

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on June 29, 2014 at 8:01pm

कहीं संवेदनाओं की मिट्टी

पत्थर तो नहीं हो गई

आज हम सभी पाषाण हो गए है… संवेदना बची ही नही आदरणीय जितेंद्र जी!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post साथ करवाचौथ का त्यौहार करके-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, करवा चौथ के अवसर पर क्या ही खूब ग़ज़ल कही है। इस बेहतरीन प्रस्तुति पर…"
28 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

साथ करवाचौथ का त्यौहार करके-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२२ **** खुश हुआ अंबर धरा से प्यार करके साथ करवाचौथ का त्यौहार करके।१। * चूड़ियाँ…See More
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"आदरणीय सुरेश कुमार कल्याण जी, प्रस्तुत कविता बहुत ही मार्मिक और भावपूर्ण हुई है। एक वृद्ध की…"
3 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
23 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर left a comment for लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार की ओर से आपको जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं।"
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक धन्यवाद। बहुत-बहुत आभार। सादर"
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज भंडारी सर वाह वाह क्या ही खूब गजल कही है इस बेहतरीन ग़ज़ल पर शेर दर शेर  दाद और…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .इसरार
" आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय जी…"
Tuesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, आपकी प्रस्तुति में केवल तथ्य ही नहीं हैं, बल्कि कहन को लेकर प्रयोग भी हुए…"
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .इसरार
"आदरणीय सुशील सरना जी, आपने क्या ही खूब दोहे लिखे हैं। आपने दोहों में प्रेम, भावनाओं और मानवीय…"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post "मुसाफ़िर" हूँ मैं तो ठहर जाऊँ कैसे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए शेर-दर-शेर दाद ओ मुबारकबाद क़ुबूल करें ..... पसरने न दो…"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"आदरणीय धर्मेन्द्र जी समाज की वर्तमान स्थिति पर गहरा कटाक्ष करती बेहतरीन ग़ज़ल कही है आपने है, आज समाज…"
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service