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मेरा ब्लड ग्रुप?... याद नहीं है! (लघुकथा)

एक अस्पताल में भर्ती बुजुर्ग की आप बीती---उनके ही मुख से-

"मेरे दो लडके हैं, दोनों एक्सपोर्ट इम्पोर्ट का कारोबार करते हैं.

दो लड़कियां विदेश में हैं, दामाद वहीं सेटल हो गए हैं.

मेरा एक भगीना बड़े अस्पताल में डॉक्टर है ...मुझे उसका टेलीफोन नंबर नहीं मिल रहा ..आप पताकर बताएँगे क्या?

आज मेरे घाव का ओपेरेसन होनेवाला है. मेरा लड़का आयेगा ...ओपेरेसन के कागजात पर हस्ताक्षर करने."

लड़का आया भी और हस्ताक्षर कर चुपचाप चला गया. मैंने महसूस किया दोनों में कोई विशेष बात चीत नहीं हुई .. सामान्य शिष्टाचार भी नहीं....

ये मेरा बड़ा लड़का था - एक्सपोर्ट-इमपोर्ट कंपनी में चीफ कमर्शियल एग्जीक्यूटिव है ...उन्होंने दुहराया, इसलिए कि शायद मैंने सुना नहीं.

बुजुर्ग व्यक्ति मेरे द्वारा खरीदे गए अखबार के हरेक पन्ने की हरेक पंक्तियों को बड़े गौर से पढ़ते हैं. शुबह से रात ग्यारह बजे तक या तो मोबाइल पर बात करते रहते हैं, या पेपर में सिर घुन्साये रहते हैं. 

तीन चार दिनों के अन्दर कोई उनसे मिलने नहीं आया - वे कहते हैं - "मैं ही सबको मना कर रखता हूँ  -- क्या करेगा यहाँ आकर ...अपना वक्त खराब करेगा. सभी अपने अपने काम में ब्यस्त हैं!"

ओपेरेसन में ले जाने से पहले नर्स ने पूछा- "बाबा आपका ब्लड ग्रुप क्या है?"

"ब्लड ग्रुप ?... ठीक याद तो नहीं ... कितना चीज याद रक्खेगा ..."

(मौलिक व अप्रकाशित) 

जवाहर लाल सिंह 

Views: 785

Comment

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Comment by coontee mukerji on June 8, 2014 at 4:04pm

कितना डेस्टर्ब था बुजुर्ग....आजकल बुढ़े माँ अपने प्रगतिशील संतान को लेकर कितने दुखी है...लेकिन इस दुख का बीच किसने बोया है...?

सोचनेवाली बात है जवाहर जी, ज़मीन से उठाकर हमें चाहते हैं हमारी संतान आकाशवासी हो और उसे हम मिट्टी की खुशबू से वंचित रखते है.....और नतीजा देखिये....(वे कहते हैं - "मैं ही सबको मना कर रखता हूँ  -- क्या करेगा यहाँ आकर ...अपना वक्त खराब करेगा. सभी अपने अपने काम में ब्यस्त हैं!"

ओपेरेसन में ले जाने से पहले नर्स ने पूछा- "बाबा आपका ब्लड ग्रुप क्या है?"

"ब्लड ग्रुप ?... ठीक याद तो नहीं ... कितना चीज याद रक्खेगा ...")बहुत अच्छा उदाहरण आपने पेश किया है...साधुवाद.

Comment by vijay nikore on June 8, 2014 at 4:00am

  लघुकथा में निहित संदेश अच्छे हैं। बधाई।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 7, 2014 at 9:15pm

आज कल के वृद्ध सबके होते हुए भी कितने अकेले ....जीने की कोई ख्वाहिश नहीं ..एक मार्मिक लघु कथा ..बधाई आपको आ० जवाहर लाल जी 

Comment by Meena Pathak on June 7, 2014 at 5:55pm

क्या कहूँ ...लघुकथा  के भाव मन को झकझोर गये .. कितने व्यस्त हो गये हैं आजकल के बच्चे .... मर्मस्पर्शी लघुकथा हेतु बधाई स्वीकारें आदरणीय | सादर 

Comment by annapurna bajpai on June 7, 2014 at 5:33pm

आ0 जवाहर लाल जी बहुत ही मर्म स्पर्शी लघुकथा , आज के संवेदन हीन समाज का रूप दिखाती हुई । आपको बधाई इस लघु कथा हेतु 

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on June 7, 2014 at 3:58pm

आदरणीय श्री जितेन्द्र 'गीत' साहब, आपकी महत्वपूर्ण टिप्पणी का हार्दिक आभार. मेरा उद्देश्य सफल हुआ. सादर!

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on June 7, 2014 at 3:56pm

आदरर्णीय डॉ गोपाल नारायण सर, आपकी बहुमूल्य टिप्पणी का आभार !

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on June 7, 2014 at 3:54pm

आदरणीया डॉ, प्रांची सिंह शिल्प और टंकण की त्रुटियों पर आपकी टिप्पणी का स्वागत करता हूँ. यह आँखों देखी/कानों सुनी घटना का चित्रण भर है पर विषय की मर्म को आपने समझा ..मेरा उद्देश्य सफल हुआ. मैं अपनी रचनाओं में सुधार/सुझाव अ हमेशा ही आदर करता हूँ. सादर! 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on June 7, 2014 at 1:50pm

आज के इस आपा-धापी भरे जीवन में बहुत से बुजुर्गों के साथ यही सब कुछ घट रहा है, बच्चे उनके अपने हिसाब से जीवन जी रहे है पैदा करने वाले माता-पिता की कोई फिक्र नही....इस मार्मिक कथा पर आपको बहुत बहुत बधाई आदरणीय जवाहर जी

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 7, 2014 at 1:05pm

बहुत मार्मिक चित्रण है  i   आपको बधाई i

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