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सुन री सखी
दो शब्द भी प्रेम के
नही लिखती
चीखें,दर्द कराहें
लिखती हूँ प्रेम से
|

उनकी बात
कम नही सजा से
तुम्हारे साथ
बिताये हुए पल
सखी कैसे कहूँ मै
|

जीवन मेला
लिए रिश्तों का रेला
जाना था दूर
रह गया अकेला
नयनो में अन्धेरा
|

आहूती स्वप्न
साँसों की है सविधा
जीवन यज्ञ
धुँआ हुई भावना
सुलगी हर आस
|

मीना पाठक 
मौलिक/अप्रकाशित 

Views: 687

Comment

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Comment by Dr Ashutosh Mishra on May 30, 2014 at 4:04pm

अंतर्मन की वेदना को दर्शाती भावमयी इस शानदार रचना के लिए तहे दिल बढ़ाये आदरणीया मीना जी 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on May 29, 2014 at 9:58am

बहुत सुन्दर रचना है आदरणीया मीना जी बहुत बहुत बधाई आपको

Comment by coontee mukerji on May 28, 2014 at 8:04pm

एक नारी हृदय की चीख इस रचना में साफ़ झलकती है....पिंज़ड़े के पंछी तेरा दर्द न जाने कोई.'....अनेक साधुवाद.मीना जी.....महादेवी वर्मा जी ने अपनी पीड़ाओं का इस कदर वर्णन किया है कि वह स्थूल शरीर से उठकर सूक्ष्म शरीर का सफ़र करते हुए परमात्मा तक जा पहूँची.है...कभी कभी दर्द की चरमसीमा हमें उस असीम परमात्मा के बहुत करीब पहूँचा देते हैं....सुन री सखी
दो शब्द भी प्रेम के
नही लिखती
चीखें,दर्द कराहें
लिखती हूँ प्रेम से
|
सादर.

Comment by Shyam Narain Verma on May 28, 2014 at 2:31pm
सुंदर रचना के लिए बहुत बधाई सादर.............
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on May 28, 2014 at 2:16pm

मीना जी

हम सब यही तो करते है i

चीख, दर्द  कराहों की ही अभिव्यक्ति करते है i 

बधाई हो i

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