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वो नदी जो गिरि

कन्दराओं से निकल

पत्थरों के बीच से

बनाती राह

 

कितनो की मैल धोते

कितने शव आँचल मे लपेटे

अन्दर कोलाहल समेटे

अपने पथ पर,

 

कोई पत्थर मार

सीना चीर देता 

कोई भारी चप्पुओं से

छाती पर करता प्रहार

लगातार,

 

सब सहती हुई

राह दिखाती राही को

तृप्त करती तृषा सब की

अग्रसर रहती अनवरत

तब तक, जब तक खो न दे

आस्तित्व,अपने 

प्रियतम से मिल कर ||

मीना पाठक 
मैलिक अप्रकाशित 

Views: 781

Comment

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Comment by mrs manjari pandey on June 15, 2014 at 9:47pm
आदरणीया मीना पाठक जी सुन्दर चित्रण . बधाई स्वीकारें

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 9, 2014 at 5:42pm

उत्सर्ग के भाव को यथोचित बिम्ब और आवश्यक शब्द मिले हैं.

प्रस्तुति हेतु शुभकामनाएँ, आदरणीया


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 8, 2014 at 9:46pm

सब सहती हुई

राह दिखाती राही को

तृप्त करती तृषा सब की

अग्रसर रहती अनवरत

तब तक, जब तक खो न दे

आस्तित्व,अपने 

प्रियतम से मिल कर ||---नदी के स्वरुप उसके निःस्वार्थ प्रेम ,उपकार ,बलिदान को कितनी सुन्दरता से पिरोया है शब्दों में बहुत सुन्दर ,हार्दिक बधाई आपको आ० मीना जी 

Comment by Meena Pathak on June 7, 2014 at 5:32pm

आदरणीय Sharadindu सर जी ..आप की उत्साहवर्धन करती टिप्पणी हेतु हृदयतल से आभार | सादर नमन 

Comment by Meena Pathak on June 7, 2014 at 5:32pm

आदरणीय आशुतोष जी बहुत बहुत आभार | सादर 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on June 7, 2014 at 12:22pm

आदरणीया मीना जी ...नदी पर आपने बहुत ही बेहतरीन चितन किया है ,,,रचना नदी की ही तरह बहती हुई ..इस शानदार रचना पर हार्दिक बधाई स्वीकार करें ..सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by sharadindu mukerji on June 7, 2014 at 3:32am
रचना और रचना के विषयवस्तु के साथ मन स्वत: प्रवाहित होने लगता है. यहीं आपकी लेखनी की सार्थकता है आदरणीया मीना जी.
//....अंदर कोलाहल समेटे
अपने पथ पर// आप मुझे ऐसी ही पंक्तियों के माध्यम अपनी भावनाओं से हमेशा चमत्कृत करती रहती हैं. अनंत साधुवाद.
सादर
Comment by Meena Pathak on June 6, 2014 at 10:25am

बहुत बहुत आभार आदरणीय भ्रमर जी | सादर 

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on June 5, 2014 at 10:57pm

बहुत सुन्दर रचना सुन्दर भाव। तभी तो याद आता है नदी न संचै नीर परमारथ के कारने साधुन धरा शरीर
भमर ५

Comment by Meena Pathak on June 5, 2014 at 10:13pm

प्रिय गीतिका बहुत बहुत आभार | सस्नेह 

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