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ग़ज़ल - हमारी बात उन्हें इतनी नागवार लगी

१२१२      ११२२      १२१२     ११२  

हमारी बात उन्हें इतनी नागवार लगी

गुलों की बात छिड़ी और उनको खार लगी

बहुत संभाल के हमने रखे थे पाँव मगर

जहां थे जख्म वहीं चोट बार-बार लगी

कदम कदम पे हिदायत मिली सफर में हमें

कदम कदम पे हमें ज़िंदगी उधार लगी

नहीं थी कद्र कभी मेरी हसरतों की उसे

ये और बात कि अब वो भी बेकरार लगी

मदद का हाथ नहीं एक भी उठा था मगर

अजीब दौर कि बस भीड़ बेशुमार लगी

संजू शब्दिता मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by sanju shabdita on May 23, 2014 at 8:55pm

हार्दिक धन्यवाद आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी

Comment by sanju shabdita on May 23, 2014 at 8:54pm

आदरणीय laxman dhami जी आपका हार्दिक धन्यवाद

Comment by sanju shabdita on May 23, 2014 at 8:53pm

बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय शिज्जु शकूर जी

Comment by gumnaam pithoragarhi on May 23, 2014 at 6:41pm

वाह बहुत खूबसूरत ग़ज़ल कही है बधाई स्वीकारें

Comment by Asif Amaan on May 23, 2014 at 2:55pm

अच्छी ग़ज़ल , मतला और पहला शेर बहुत अच्छे हैं.. दाद क़ुबूल करें...

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on May 23, 2014 at 12:46pm

सुन्दर i अर्थपूर्ण  i जीवन का अनुभव  झलकता है i  

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 23, 2014 at 11:38am

एक सुन्दर रचना के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय .


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on May 23, 2014 at 10:38am

बहुत खूब आदरणीय संजूजी बहुत बहुत बधाई इस रचना के लिये

कृपया ध्यान दे...

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