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यूँ ही सोचा ज़माने की रविश भी जान ली जाये - ग़ज़ल

1222/ 1222/ 1222/ 1222

यूँ ही सोचा ज़माने की रविश भी जान ली जाये

पसे तस्वीर सूरत किसकी है पहचान ली जाये               पसे तस्वीर= तस्वीर के पीछे

 

ज़रा देखूँ कि सच कितना है तेरे इन दिखावो में

चलो कुछ देर को तेरी कही भी मान ली जाये         

 

कभी तो आप अपने तज़्रिबे से तौलें सच्चाई

ज़रूरी तो नहीं है हाथ में मीज़ान ली जाये                    मीज़ान =तराजू

 

नहीं लगती मुझे अनुकूल मौसम की तबीयत क्यूँ

बरस जायें न ओले जल्द ही छत तान ली जाये

 

घिरे हैं आफतों से इन दिनों अंजाम जो भी हो

हर इक दम सामना करने की दिल में ठान ली जाये

(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment

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Comment by Mukesh Verma "Chiragh" on May 3, 2014 at 5:15pm

वाह वाह सिज़्जु भाई
बहुत खूबसूरत ग़ज़ल कही है आपने. मेरी जानिब से मुबारकबाद क़ुबूल करें

कुछ इक बातों को अपने तज़्रुबे से तौल के देखें

ज़रूरत क्या कि अपने हाथ में मीज़ान ली जाये              मीज़ान =तराजू

 

घिरे हैं आफतों से इन दिनों अंजाम जो भी हो

हर इक दम सामना करने की दिल में ठान ली जाये

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on May 3, 2014 at 5:04pm

गज़ल अच्छी लगी बधाई शिज्जु भाई 

Comment by नादिर ख़ान on May 3, 2014 at 4:48pm

बहुत खूब... बहुत खूब... बहुत खूब...

अदरणीय शिज्जु जी कमाल के अशआर है।

सिर्फ 5 शेर है पर सब भारी है ।

शेरों में कमाल की र वानी  है ।

और हर शेर दिल में दस्तक दे रहा है ....

उम्दा शायरी के लिए बधाई ........

कृपया ध्यान दे...

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