For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल : तुम्हारे लिए जश्न हाेगा ये मेला

सभी रास्ताें पर सिपाही खटे हैं 

ताे फिर लाेग क्याें रास्ते से हटे हैं । 

सियासत अाै मज़हब की दीवारें देखाे 

दीवाराें से ही लाेग गुमसुम सटे हैं । 

सरहद है सराें के लिए अाखरी हद 

अकारण यहाँ पर कई सर कटे हैं । 

चमकती फिसलती हैं कारें महंगी 

मगर अादमीयत के जूते फटे हैं । 

जिन्हें मुल्क बरबाद करने की जिद थी

वही लाेग सिंहासनाें पर डटे हैं । 

तुम्हारे लिए जश्न हाेगा ये मेला 

मुझे बेचने कुछ चने चटपटे हैं । 

(माैलिक व अप्रकाशित)

Views: 1055

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on April 14, 2014 at 10:21pm

वजन क्या लिया है आदरणीय ?

Comment by वेदिका on April 14, 2014 at 10:09pm
खूबसूरत गजल के लिए बधाई प्रेषित है!!
सादर

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 14, 2014 at 9:44pm

सरहद है सराें के लिए अाँखरी हद 

इस हद पर कई बेकसूर सर कटे हैं । -----बिलकुल सही कहा ...इस शेर ने कुछ दुखद यादें ताज़ा कर दी

चमकती फिसलती हैं कारें महंगी 

मगर अादमीयत के जूते फटे हैं । ----जबरदस्त शेर 

बहुत बढ़िया ग़ज़ल हुई तहे दिल से दाद कबूलें 

 

Comment by कल्पना रामानी on April 14, 2014 at 9:26pm

वाह, वाह!! शानदार गजल के लिए आपको हार्दिक बधाई

Comment by भुवन निस्तेज on April 14, 2014 at 9:10pm

तुम्हारे लिए जश्न हाेगा ये मेला 

मुझे बेचने कुछ चने चटपटे हैं । 

अंदाज़े बयाँ क्या कहें। 

Comment by Anurag Singh "rishi" on April 14, 2014 at 7:19pm

वाह खूबसूरत अंदाज़-ए-बयाँ

तुम्हारे लिए जश्न हाेगा ये मेला 

मुझे बेचने कुछ चने चटपटे हैं ।
............क्या कहने

Comment by Sachin Dev on April 14, 2014 at 4:51pm

चमकती फिसलती हैं कारें महंगी 

मगर अादमीयत के जूते फटे हैं । वाह ..... बहुत खूब आदरणीय भाई कृष्ण सिंह जी , क्या बेहतरीन गजल लिखी आपने ! हार्दिक बधाई स्वीकारें ! 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। आपने सही कहा…"
21 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"जी, शुक्रिया। यह तो स्पष्ट है ही। "
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"सराहना और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय उस्मानी जी"
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"लघुकथा पर आपकी उपस्थित और गहराई से  समीक्षा के लिए हार्दिक आभार आदरणीय मिथिलेश जी"
yesterday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आपका हार्दिक आभार आदरणीया प्रतिभा जी। "
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"लेकिन उस खामोशी से उसकी पुरानी पहचान थी। एक व्याकुल ख़ामोशी सीढ़ियों से उतर गई।// आहत होने के आदी…"
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"प्रदत्त विषय को सार्थक और सटीक ढंग से शाब्दिक करती लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदाब। प्रदत्त विषय पर सटीक, गागर में सागर और एक लम्बे कालखंड को बख़ूबी समेटती…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीय मिथिलेश वामनकर साहिब रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर प्रतिक्रिया और…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"तहेदिल बहुत-बहुत शुक्रिया जनाब मनन कुमार सिंह साहिब स्नेहिल समीक्षात्मक टिप्पणी और हौसला अफ़ज़ाई…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीया प्रतिभा जी प्रदत्त विषय पर बहुत सार्थक और मार्मिक लघुकथा लिखी है आपने। इसमें एक स्त्री के…"
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"पहचान ______ 'नवेली की मेंहदी की ख़ुशबू सारे घर में फैली है।मेहमानों से भरे घर में पति चोर…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service