For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"भई वाह, तुम्हारे हरे भरे केक्टस देख कर तो मज़ा ही आ गया."
"बहुत बहुत शुक्रिया."
"लेकिन पिछले महीने तक तो ये मुरझाए और बेजान से लग रहे थे"
"बेजान क्या, बस मरने ही वाले थे."
"तो क्या जादू कर दिया इन पर ?"
"घर के पिछवाड़े जो बड़ा सा पेड़ था वो पूरी धूप रोक लेता था,  उसे कटवाकर दफा किया, तब कहीं जाकर बेचारे केक्टस हरे हुए."

(मौलिक और अप्रकाशित)

Views: 891

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on February 24, 2014 at 5:08am

लघुकथा को मान देने के लिए दिल से शुक्रिया अदा करता हूँ आपका मा० वंदना जी. दरअसल कम शब्दों में लघुकथा कहना कोई विशेषता नहीं है, बल्कि यह तो इस विधा की एक ज़रूरी शर्त है.


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on February 24, 2014 at 5:05am

भाई शुभ्रांशु जी, आप बिलकुल सही कह रहे हैं. आपकी बात से पंजाबी की एक कहावत याद आ रही है:

मज्झ बेच के घोड़ी लई

दुद्ध पीणों गए लिद्द चक्क्णी पई  

यानि भैंस बेच कर घोड़ी खरीदी, दूध से तो वंचित हुए ही ऊपर से लीद भी साफ़ करनी पड़ी

कुछ ऐसा ही हाल आजकल की आधुनिकता का  भी है. बहरहाल आपने रचना के मर्म को समझ कर उसे मान दिया, जिसके लिए आपका हार्दिक धन्यवाद

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on February 22, 2014 at 9:44pm

आदरणीय योगराज भाईजी,

कटु व्यंग्य और सच्चाई। हमारे राजनेता भी आजकल ऐसा ही निर्णय लेते हैं। कुछ "खास"  को खुश करने और लाभ पहुँचाने के लिए लाखों " आम आदमी" का बुरा करने से नहीं चूकते । मेरी हार्दिक बधाई इस लघु कथा पर॥

Comment by Vindu Babu on February 22, 2014 at 8:40pm

आज के परिदृश्य पर कितना सटीक व्यंग किया है आपने आदरणीय वो भी इतने कम शब्दों में!

वाह आदरणीय.

सादर बधाई.

Comment by Shubhranshu Pandey on February 22, 2014 at 8:30pm

आदरणीय योगराज जी,

एक भरे पूरे दरख्त के छाये को कटवाकर कैक्टस को हरा भरा करना आज की आधुनिक और तात्कालिक मानसिकता को दिखाता है बहुत सुन्दर, सादर.


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on February 22, 2014 at 7:37pm

दिल से शुक्रिया भाई राम शिरोमणि जी.


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on February 22, 2014 at 7:37pm

सादर अभार आ० लड़ीवाला जी

Comment by ram shiromani pathak on February 22, 2014 at 2:16pm

बहुत गहरी बात कही है आपने आदरणीय योगराज जी। ……। हार्दिक बधाई आपको //सादर

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on February 22, 2014 at 11:32am

छोटे लाभ के लिए स्थाई नुकसान कर बैठने वाले कृत्य पर गहरा कटाक्ष कर सुन्दर सन्देश देती लघु कथा के लिए हार्दिक बधाई श्री योगराज भाई जी 


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on February 22, 2014 at 10:30am

आपकी सराहना का दिल से शुक्रगुज़ार हूँ आ० वंदना जी.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"बेहतरीन 👌 प्रस्तुति सर हार्दिक बधाई "
3 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी समीक्षात्मक मधुर प्रतिक्रिया का दिल से आभार । सहमत एवं…"
3 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
3 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन आपकी स्नेहिल प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
3 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय"
3 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक ..रिश्ते
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार आदरणीय"
3 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"आ. भाई आजी तमाम जी, अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
3 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। उत्तम गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
4 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on AMAN SINHA's blog post काश कहीं ऐसा हो जाता
"आदरणीय अमन सिन्हा जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकार करें। सादर। ना तू मेरे बीन रह पाता…"
7 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on दिनेश कुमार's blog post ग़ज़ल -- दिनेश कुमार ( दस्तार ही जो सर पे सलामत नहीं रही )
"आदरणीय दिनेश कुमार जी बहुत बढ़िया ग़ज़ल हुई है शेर दर शेर दाद ओ मुबारकबाद कुबूल कीजिए। इस शेर पर…"
7 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया .... गौरैया
"आदरणीय सुशील सरना जी बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। हार्दिक बधाई। गौरैया के झुंड का, सुंदर सा संसार…"
7 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on AMAN SINHA's blog post यह धर्म युद्ध है
"आदरणीय अमन सिन्हा जी, इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर"
7 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service