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गज़ल... बागों बुलाती है सुबह (कल्पना रामानी)

रात पर जय प्राप्त कर जब जगमगाती है सुबह।

किस तरह हारा अँधेरा, कह सुनाती है सुबह।

 

त्याग बिस्तर, नित्य तत्पर, एक नव ऊर्जा लिए,

लुत्फ लेने भोर का, बागों बुलाती है सुबह।   

 

कालिमा को काटकर, आह्वान करती सूर्य का,

बाद बढ़कर, कर्म-पथ पर, दिन बिताती है सुबह।

 

बन कभी तितली, कभी चिड़िया, चमन में डोलती,

लॉन हरियल पर विचरती, गुनगुनाती है सुबह।

 

फूल कलियाँ मुग्ध-मन, रहते सजग सत्कार को,

क्यारियों फुलवारियों को, खूब भाती है सुबह।

 

इस मधुर वेला में हम भी, क्यों न उठकर चल पड़ें,

मन उतारें रंग जो, हर दिन दिखाती है सुबह।

मौलिक व अप्रकाशित  

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by sharadindu mukerji on January 31, 2014 at 9:30pm

आदरणीया कल्पना जी, आप अनन्या हैं. इतना स्वत:स्फूर्त वर्णन कि पढ़कर लगा मैं सुबह की बेला में बाग में ही घूम रहा हूँ. नमन आपको.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on January 31, 2014 at 9:19pm

वाह! वाह! वाह! 

ऐसे जन्म लेती है ग़ज़ल बिलकुल सहजता से 

बहुत सुन्दर 

शुभकामनाएं 

Comment by coontee mukerji on January 31, 2014 at 8:47pm

रात पर जय प्राप्त कर जब जाग जाती है सुबह।

किस तरह हारा अँधेरा, कह सुनाती है सुबह।.....लजवाब .कल्पना जी  हार्दिक बधाई.

Comment by कल्पना रामानी on January 31, 2014 at 8:28pm

वाह, वाह!! सबको ताज़गी दे दी न मैंने! आज सुबह घूमते-घूमते ही लिख डाली और उसी समय आकर पोस्ट कर दी। आप सबका हार्दिक आभार। सादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on January 31, 2014 at 7:57pm

यहाँ नीचे ताजगी  शब्द को लेकर जरूर कुछ गड़बड़ है :))))))) इस लिए मैं ये शब्द नहीं लिखूंगी ..आ० कल्पना जी बहुत सुन्दर प्रस्तुति स्फूर्ति आ गई ...बहुत सुन्दर सभी अशआर अपना प्रभाव छोड़ते हैं ढेरों दाद इस हिंदी ग़ज़ल पर 

Comment by Sarita Bhatia on January 31, 2014 at 4:57pm

आदरणीया कल्पना दी खुबसूरत ताजगी भारी गजल 

Comment by Meena Pathak on January 31, 2014 at 4:47pm

बहुत सुन्दर आदरणीया कल्पना दी ..सादर बधाई 

Comment by pawan amba on January 31, 2014 at 1:05pm

बहुत खूबसूरत लिखा आपने ताज़गी
गयी पड़ कर

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