For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

नीड़ का निर्माण फिर फिर टल रहा है (गजल) - कल्पना रामानी

212221222122

बल भी उसके सामने निर्बल रहा है।

घोर आँधी में जो दीपक जल रहा है।

 

डाल रक्षित ढूँढते, हारा पखेरू,

नीड़ का निर्माण, फिर फिर टल रहा है।

 

हाथ फैलाकर खड़ा दानी कुआँ वो,

शेष बूँदें अब न जिसमें जल रहा है।

 

सूर्य ने अपने नियम बदले हैं जब से,

दिन हथेली पर दिया ले चल रहा है।

 

क्यों तुला मानव उसी को नष्ट करने,

जो हरा भू का सदा आँचल रहा है।

 

मन को जिसने आज तक शीतल रखा था,

सब्र का घन धीरे-धीरे गल रहा है।

 

ख्वाब है जनतन्त्र का अब तक अधूरा,

आदि से जो इन दृगों में पल रहा है।

मौलिक व अप्रकाशित   

Views: 645

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by कल्पना रामानी on February 6, 2014 at 10:30pm

आदरणीय सौरभ जी, आपकी टिप्पणी से एक नई ऊर्जा तो मिलती ही है, और मन बेहतर लेखन के लिए भी प्रेरित होता है। आपका हृदय से आभार।  

Comment by कल्पना रामानी on February 6, 2014 at 10:28pm

आदरणिनीय रमेश जी, हार्दिक आभार आपका

Comment by कल्पना रामानी on February 6, 2014 at 10:27pm

आदरणीया अन्नपूर्णा जी, बहुत बहुत धन्यवाद


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 6, 2014 at 5:04pm

आपकी कई ग़ज़लें पहले भी चकित करती रही हैं, आदरणीया कल्पनाजी. इस ग़ज़ल से भी मन प्रसन्न है.

यह अवश्य है, आदरणीया,  जो अच्छा कहता-लिखता है उसीसे बेहतर और अच्छे की अपेक्षा भी होती है

सादर शुभकामनाएँ.

Comment by रमेश कुमार चौहान on February 6, 2014 at 10:52am

बेहतरीन गजल कही है आदरणीया आपने मन गदगद हो गया । बहुत बहुत बधाई

Comment by annapurna bajpai on February 6, 2014 at 1:49am

आ0 कल्पना दी बहुत सुंदर गजल हुई है बधाई आपको । 

Comment by कल्पना रामानी on February 5, 2014 at 10:23pm

आदरणीय नीरज जी, गजल की प्रशंसात्मक टिप्पणी के लिए हार्दिक धन्यवाद।

डाल रक्षित ढूँढते, हारा पखेरू,//इसका भावार्थ  यह है कि सुरक्षित  डाल ढूंढते-ढूंढते  पखेरू हार चुका  है जो नीड़  बनाना चाहता है। 

Comment by कल्पना रामानी on February 5, 2014 at 10:18pm

आदरणीय मित्रों अनिल जी, केवल प्रसाद जी, जितेंद्र जी, गिरिराज जी,आदरणीया राजेश कुमारी जी, मोहिनी जी, कुंती जी, मीना जी, सरिता जी, आप सबकी अपनत्व से भरी प्रोत्साहित करती हुई टिप्पणियों के लिए हार्दिक आभार। सादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on February 5, 2014 at 8:58pm

वाह वाह वाह बहुत सुन्दर ग़ज़ल लिखी है आ.कल्पना जी दिली दाद स्वीकारें 

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on February 5, 2014 at 8:42pm

लाजवाब गजल...वाह! बहुत खूब! हार्दिक बधार्इ स्वीकारें।  सादर,

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" commented on Sushil Sarna's blog post दोहा दशम -. . . . . शाश्वत सत्य
"आदरणीय सुशील सरना सर, सर्वप्रथम दोहावली के लिए बधाई, जा वन पर केंद्रित अच्छे दोहे हुए हैं। एक-दो…"
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आदरणीय सुशील सरना जी उत्सावर्धक शब्दों के लिए आपका बहुत शुक्रिया"
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आदरणीय निलेश भाई, ग़ज़ल को समय देने के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया। आपके फोन का इंतज़ार है।"
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"मोहतरम अमीरुद्दीन अमीर 'बागपतवी' साहिब बहुत शुक्रिया। उस शे'र में 'उतरना'…"
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आदरणीय सौरभ सर,ग़ज़ल पर विस्तृत टिप्पणी एवं सुझावों के लिए हार्दिक आभार। आपकी प्रतिक्रिया हमेशा…"
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आदरणीय गिरिराज भंडारी जी, ग़ज़ल को समय देने एवं उत्साहवर्धक टिप्पणी के लिए आपका हार्दिक आभार"
2 hours ago
Sushil Sarna posted blog posts
2 hours ago
Nilesh Shevgaonkar posted a blog post

ग़ज़ल नूर की - आँखों की बीनाई जैसा

आँखों की बीनाई जैसा वो चेहरा पुरवाई जैसा. . तेरा होना क्यूँ लगता है गर्मी में अमराई जैसा. . तेरे…See More
2 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आदरणीय सौरभ सर, मैं इस क़ाबिल तो नहीं... ये आपकी ज़र्रा नवाज़ी है। सादर। "
18 hours ago
Sushil Sarna commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आदरणीय जी  इस दिलकश ग़ज़ल के लिए दिल से मुबारकबाद सर"
19 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . . उमर
"आदरणीय गिरिराज जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया और सुझाव  का दिल से आभार । प्रयास रहेगा पालना…"
19 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service