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"एक लाख पचपन हजार..  एक

एक लाख पचपन हजार..  दो

एक लाख पचपन हजार..  तीन ..."

अधिकारी महोदय ने जोर से लकड़ी का हथौड़ा मेज पर दे मारा. रघुराज ठेकेदार की तरफ देखते हुए वे धीरे से मुस्कुरा दिए.

रघुराज ठेकेदार ने भी आँखों ही आँखों में अधिकारी महोदय को मुस्कुराते हुए अपनी सहमति जतायी और अपने मित्र मोहन के कंधे पर हाथ रख धीरे से बोल उठे,  ''ओये मोहन्या..चल भाई, हम भी अब अपना काम करें. अधिकारी महोदय के लिए पूरा इंतजाम करना है ''

दोनों खुश-खुश नीलामी स्थल से बाहर निकल गये...

 

जितेन्द्र ' गीत '

( मौलिक व् अप्रकाशित )

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Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on December 4, 2013 at 10:58am

रचना पर आपकी प्रतिक्रिया से बहुत मनोबल मिला आदरणीया राजेश जी, आपका हृदय से आभार

सच कहा आपने घपला, भृष्टाचार हर जगह बांह पसारे खड़ा हुआ है सिर्फ कागजी ओपचारिकता निभाई जा रहीं है,

Comment by vandana on December 4, 2013 at 6:52am

हकीकत बयान करती लघुकथा बहुत बहुत बधाई आदरणीय जितेन्द्र जी 

Comment by CHANDRA SHEKHAR PANDEY on December 4, 2013 at 12:04am

एक दम कसी हुई कहानी, वाह्ह्ह्ह्ह्ह्ह क्या कहने। ऐसा शिल्प देखने को कम ही मिलता है।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on December 3, 2013 at 11:51pm

ये है भ्रष्ट भारत का एक रूप। कभी कभी तो ये लगता है सिर्फ भ्रष्टचार करने लोग सरकारी नौकरी करते हैं, बहुत बढ़िया भाई जितेन्द्र जी

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on December 3, 2013 at 5:20pm

लघु कथा स्वयं बोलती लग रही है, जो लेखक कहना चाह रहा है | इस सफल प्रयास के लिए हार्दिक बधाई श्री जितेन्द्र "गीत" जी 


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on December 3, 2013 at 5:09pm

लघुकथा में हकीकत बयान कर दी भाई जितेन्द्र जीत जी, बधाई स्वीकारें। 

Comment by coontee mukerji on December 3, 2013 at 4:37pm

लघु कथा वहीं जो सीमित शब्दों में बृहद अर्थ उजाकर करे.

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 3, 2013 at 4:20pm

गीत जी

आपका व्यंग  अच्छा है i

मै भी मुस्कुरा उठा i

आपको  मुबारकवाद i

Comment by बृजेश नीरज on December 3, 2013 at 9:51am

अच्छा प्रयास है! सुन्दर कथ्य! आपको बहुत बधाई!

Comment by ram shiromani pathak on December 2, 2013 at 11:19pm

 सुन्दर प्रस्तुति ...बहुत-बहुत बधाई भाई जीतेंद्र  जी .............

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