For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

रांची का रेलवे स्टेशन.

फुलमनी ने देखा है

पहली बार कुछ इतना बड़ा .

मिटटी के घरों और

मिटटी के गिरिजे वाले गाँव में

इतना बड़ा है केवल जंगल.

जंगल जिसकी गोद में पली है फुलमनी

कुलांचे मारते मुक्त, निर्भीक. 

पेड़ों के जंगल से

फुलमनी आ गयी

आदमियों के जंगल में ,

जंगल जो लील जाता है 

जहाँ सभ्य समाज का आदमी

घूरता हैं

हिंस्र नज़रों से

सस्ते पोलिस्टर के वस्त्रों को

बेध देने की नियत से ....

फुलमनी बेच दी गयी है

दलाल के हाथों,

जिसने दिया है झांसा

काम का ,

साथ ही देखा है

उसके गुदाज बदन को

फुलमनी दिल्ली में मालिक के यहाँ

करेगी काम,

मालिक तुष्ट करेगा अपने काम

काम से भरेगा

उसका पेट

वह वापस आएगी जंगलों में

जन्म देगी

बिना बाप के नाम वाले बच्चे को.

(फिर कोई दूसरी फूलमनी देखेगी 

पहली बार रांची का रेलवे स्टेशन..) 

... नीरज कुमार ‘नीर’

पूर्णतः मौलिक एवं अप्रकाशित 

 

Views: 984

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on October 28, 2013 at 12:15pm

ऐसी रचनाए पढ़कर मन बेहद भावुक हो जाता है, उफ़ के सिवा शब्द मुहं से नहीं निकलता | भाई श्री शुशील जोशी जी

ने वह सब कह दिया है जो मै कहना चाहता था | ऐसी मार्मिक रचना के लिए हार्दिक बधाई 

Comment by VISHAAL CHARCHCHIT on October 27, 2013 at 1:48pm

फुलमनी के बहाने आज की तमाम कड़वी सच्चाइयों पर प्रहार करती रचना.......!!!!

Comment by Sushil.Joshi on October 27, 2013 at 5:57am

इस मार्मिक किंतु सच्चाई को बयान करती अभिव्यक्ति के लिए बधाई आ0 नीरज भाई जी...... जाने कितनी फूलमनी इस प्रकार 'आदमियों के जंगल' में फँस कर रास्ता भटक जाती हैं...... और फिर कथित 'जंगली जानवर' उसकी दावत उड़ाते हैं..... मन भर आया है इस प्रस्तुति को पढ़ कर........ आख़िर कब तक हम इस प्रकार की गतिविधियों को विकासशील देश की प्रगति तले नज़रंदाज़ करते रहेंगे.... आख़िर कब तक....??


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 26, 2013 at 6:57pm

आदरणीय नीरज भाई , आपकी कविता ने समाज की एक बहुत बड़ी समस्या और उसके निवारण के प्रयासों पर सवाल खड़ा किया है !!!!!

यही हाल छतीस गढ का भी है !!!!! आपको इस रचना के लिये ढेरों दाद !!! बहुत बधाई !!!!

Comment by Neeraj Neer on October 26, 2013 at 6:15pm

आदरणीय विजय निकोरे जी हार्दिक आभार ..

Comment by Neeraj Neer on October 26, 2013 at 6:15pm

आपका आभार आदरणीय विजय मिश्र जी .. 

Comment by Neeraj Neer on October 26, 2013 at 6:14pm

बहुत आभार आदरणीय अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव जी 

Comment by vijay nikore on October 26, 2013 at 6:07pm

नीरज जी, इस सुन्दर रचना से हृद्य-विदारक सच्चाई को सामने लाने के लिए धन्यवाद।

 

 भगवान करें, हज़ारों-लाखों लोग, हज़ारों "अन्ना" इस उत्पात के विरोध में सामने आएँ।

Comment by विजय मिश्र on October 26, 2013 at 5:01pm
नीरजी ! यह झारखण्ड की दुःख भरी कहानी है , इस कार्य में दलालों का एक साम्राज्य सा फैला है जो इन सीधे-सादे वनवासियों को ,छल-प्रपंच जिनकी कल्पना में भी नहीं है ,विश्वास में लेकर उत्पात कर रहे हैं .इनके विश्वास को तहस-नहस कर रहे हैं . आपकी कविता ने जीवन्त ढंग से इस ज्वलन्त प्रश्न को उभरा है .यह आपकी एक प्रतिनिधि कविता है .धन्यवाद .
Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on October 26, 2013 at 3:28pm

 लचर कानून लचर पुलिस व्यवस्था। लाखों फुल्मनी की व्यथा कह दी आपने नीरज भाई, बधाई।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Manjeet kaur replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. जयहिंद रायपुरी जी, अभिवादन, खूबसूरत ग़ज़ल की मुबारकबाद स्वीकार कीजिए।"
1 hour ago
Manjeet kaur replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय महेंद्र जी, सादर अभिवादन  आपने ग़ज़ल की बारीकी से समीक्षा की, बहुत शुक्रिया। मतले में…"
1 hour ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"हमको न/गर में गाँव/ खुला याद/ आ गयामानो स्व/यं का भूला/ पता याद/आ गया। आप शायद स्व का वज़्न 2 ले…"
3 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"बहुत शुक्रिया आदरणीय। देखता हूँ क्या बेहतर कर सकता हूँ। आपका बहुत-बहुत आभार।"
3 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय,  श्रद्धेय तिलक राज कपूर साहब, क्षमा करें किन्तु, " मानो स्वयं का भूला पता…"
4 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"समॉं शब्द प्रयोग ठीक नहीं है। "
4 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"हर सिम्त वो है फैला हुआ याद आ गया  ज़ाहिद को मयकदे में ख़ुदा याद आ गया यह शेर पाप का स्थान माने…"
4 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"तन्हाइयों में रंग-ए-हिना याद आ गया आना था याद क्या मुझे क्या याद आ गया लाजवाब शेर हुआ। गुज़रा हूँ…"
5 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"शानदार शेर हुए। बस दो शेर पर कुछ कहने लायक दिखने से अपने विचार रख रहा हूँ। जो दे गया है मुझको दग़ा…"
5 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"मिसरा दिया जा चुका है। इस कारण तरही मिसरा बाद में बदला गया था। स्वाभाविक है कि यह बात बहुत से…"
6 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"खुशबू सी उसकी लाई हवा याद आ गया, बन के वो शख़्स बाद-ए-सबा याद आ गया। अच्छा शेर हुआ। वो शोख़ सी…"
6 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"हमको नगर में गाँव खुला याद आ गया मानो स्वयं का भूला पता याद आ गया।१। अच्छा शेर हुआ। तम से घिरे थे…"
6 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service