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गुलाब और स्वतंत्रता

समतल उर्वर भूमि पर

उग आयी स्वतंत्रता

जंगली वृक्ष की भांति

आवृत कर लिया इसे

जहर बेल की लताओं ने

खो गयी इसकी मूल पहचान

अर्थहीन हो गए इसके होने के मायने .

..

गुलाब की पौध में,

नियमित काट छांट के आभाव में

निकल आती हैं जंगली शाख.

इनमे फूल नहीं खिलते

उगते हैं सिर्फ कांटे.

लोकतंत्र होता है गुलाब की तरह ...

… नीरज कुमार ‘नीर’

पूर्णतः मौलिक एवं अप्रकाशित 

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Comment by Neeraj Neer on November 3, 2013 at 8:48pm
अति आभार आदरणीय विजय निकोरे साहब .
Comment by vijay nikore on November 3, 2013 at 3:28pm

अति सुन्दर बिम्ब। बधाई आदरणीय नीरज जी।

Comment by Neeraj Neer on October 26, 2013 at 9:52am

आप सभी का हार्दिक आभार 

Comment by Neeraj Neer on October 25, 2013 at 8:53am

आभार आदरणीय जितेन्द्र गीत जी 

Comment by Neeraj Neer on October 25, 2013 at 8:53am

आदरणीय सुशील जोशी साहब आभार . 

Comment by Neeraj Neer on October 25, 2013 at 8:52am

आदरणीय सौरभ जी , रचना पर आपकी टिपण्णी के लिए हार्दिक आभार , बेहतर की कोशिश होगी :) :) 

Comment by Sushil.Joshi on October 24, 2013 at 9:28pm

वाह वाह... बेहद शानदार उपमा दी है आपने..... सुंदर एवं सार्थक रचना हेतु बधाई आ0 नीरज जी...

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on October 23, 2013 at 11:54pm

गुलाब की पौध में,

नियमित काट छांट के आभाव में

निकल आती हैं जंगली शाख.

इनमे फूल नहीं खिलते

उगते हैं सिर्फ कांटे.

लोकतंत्र होता है गुलाब की तरह ...वाह!

अथाह गहन भाव ली हुयी रचना, बधाई स्वीकारें आदरणीय नीरज जी


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 23, 2013 at 10:45pm

अपने बिम्बों के कारण यह रचना आकर्षित करती है. कथ्य उभर कर आता भी है. लेकिन ऐसा महसूस होता है कि काश आपने थोड़ा और समय दिया होता ! ..  :-))

रचना की प्रस्तुति हेतु हार्दिक शुभकामनाएँ  भाईजी.

Comment by ram shiromani pathak on October 23, 2013 at 8:21pm

बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति आदरणीय नीरज  जी //बहुत बहुत बधाई 

कृपया ध्यान दे...

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