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मैंने बस राख में हवा की है -अभिनव अरुण ||ग़ज़ल||

ग़ज़ल –

२१२२  १२१२  २२

तुझसे मिलने की इल्तिज़ा की है ,

माफ़ करना अगर खता  की है |

 

राज़ पूछो न मुस्कुराने का ,

चोट खायी तो ये दवा की है |

 

अब मुझे हिचकियाँ नहीं आतीं ,

मेरे हक़ में ये क्या दुआ की है |

 

फूल तो सौ मिले हैं गुलशन में ,

खुशबुओं की तलाश बाकी है |

 

तुम इसे शाइरी समझते हो ,

मैंने बस राख में हवा की है |

 

एक पत्थर ख़ुशी से पागल था ,

आईनों ने ये इत्तिला की है |

 

था मुझे टूटना बिखरना तो  ,

क्यों मुझे ज़िन्दगी अता की है |

* सर्वथा मौलिक अप्रकाशित .

                      - अभिनव अरुण 

                        [19092013]

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Comment by Abhinav Arun on September 21, 2013 at 7:12am

अहा  आपकी बधाई पा गद गद हूँ गद गद हूँ आ. धर्मेन्द्र श्री ..ये तय हुआ की आप नाराज़ नहीं है ....  :-) मैं तो टिप्पणी वापस लेने को वो ग़ज़ल ढूंढ रहा था पर वो मिली नहीं गजाला हो गयी :-)

Comment by vineet agarwal on September 20, 2013 at 10:25pm
Bahut bahut khoob bhayi
Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on September 20, 2013 at 9:38pm

बहुत खूब अभिनव जी, खूबसूरत ग़ज़ल है। दिली दाद कुबूल करें।

Comment by Abhinav Arun on September 20, 2013 at 6:41pm

आ. अरुण जी ग़ज़ल आपके अनुमोदन को पाकर हर्षित हुई ..बहुत शुक्रिया आदरणीय 

Comment by Abhinav Arun on September 20, 2013 at 6:40pm

आ. चन्द्र शेखर जी ह्रदय से धन्यवाद आदरणीय आपका !1

Comment by Abhinav Arun on September 20, 2013 at 6:40pm

बहुत शुक्रिया आदरणीय अखिलेश जी मुस्कुराने के बारे में आशुतोष जी के प्रति टिप्पणी में लिखा है आभार संकेत हेतु !

Comment by Abhinav Arun on September 20, 2013 at 6:39pm

आ. आशुतोष जहिब जो शेर आपने उद्धृत किया है उसमे बिखरना है ..मुस्कराने में u लगाने पर कुराने टाइप हो जा रहा है ...काफी प्रयास के बाद भी एक दो टंकण मिस्टेक रह ही जा रहे हैं ..बहर हाल ग़ज़ल की सराहना के लिए ह्रदय से आभार आपका !!

Comment by Dr Ashutosh Mishra on September 20, 2013 at 5:07pm

आदरणीय अभिनव जी

था मुझे टूटना बिखरा तो  ,

क्यों मुझे ज़िन्दगी अता की है ..इस उम्दा ग़ज़ल का ये शेर मुझे बेहद रास आया ..मेरी तरफ से हार्दिक बधाई स्वीकारें 

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on September 20, 2013 at 12:49pm

राज़ पूछो न मुस्कुराने का ,चोट खायी तो ये दवा की है | ' ( मुस्कराने )'

अरुण भाई यह शेर भारत के हर व्यक्ति पर सटीक बैठता है, आज के हालात में और भी ज्यादा ।  हार्दिक बधाई । 

Comment by CHANDRA SHEKHAR PANDEY on September 20, 2013 at 12:23pm

एक पत्थर ख़ुशी से पागल था ,

आईनों ने ये इत्तिला की है | सभी अशआर बेहद सुन्दर हैं। बधाई कुबुलें। मेरा पसंदीदा 

एक पत्थर ख़ुशी से पागल था ,

आईनों ने ये इत्तिला की है | आनंद आ गया आदरणीय।

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