For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

उसे नहीं बनना सिन्ड्रैला


तुम्हारे उदार आमन्त्रण पर
अब नहीं आयेगी
परीकथा की नायिका
दौड़ाकर पवन के घोड़े
लुभावने इंद्रजाल को ओढ़े-
वह एक रात की
राजकुमारी...
नही... उसे नहीं
बनना सिन्ड्रैला!
काँटों में ही खिलता है
शोख जंगली गुलाब
गुलदान का बासी पानी 
चुरा लेता, उसकी आब
चौखटे में जड़ नहीं सकता  
वजूद उसका
मुखौटों की भीड़ में वह
गुमशुदा चेहरा...
जहाँ तंज कसती महफिलें-
सरगोशियों का मेला
नही... उसे नहीं
बनना सिन्ड्रैला!
वह सरल हृदया,
सहज माधुर्य का आगार
तुम अमीरों के लिए
तो प्रेम भी व्यापार
वह नहीं डोलेगी तुम संग
हाथ लेकर हाथ
धूसरित होगा नहीं
दिल का सुनहरा साज़
रूप का भौंडा प्रदर्शन-
स्वयंबर का खेला...
नही... उसे नहीं
बनना सिन्ड्रैला!
(मौलिक एवं अप्रकाशित)

Views: 850

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Vinita Shukla on August 21, 2013 at 9:15am

हार्दिक आभार, जितेन्द्र 'गीत' जी.

Comment by Vinita Shukla on August 21, 2013 at 9:15am

सराहना और समर्थन के लिए, कोटिशः धन्यवाद भ्रमर जी.

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on August 21, 2013 at 3:30am

सुंदर रचना अभिव्यक्ति पर, हार्दिक बधाई आदरणीया विनीता जी

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on August 21, 2013 at 12:54am

नहीं बिलकुल नहीं बनना उसे सिंड्रेला ....काश ऐसा ही हो ....अपनी धरोहर अभी बचे ...अद्भुत सोच ...सुन्दर रचना

आप सभी मित्र मण्डली को रक्षा बंधन के पावन पर्व पर ढेर सारी हार्दिक शुभ कामनाएं
भ्रमर

Comment by Vinita Shukla on August 20, 2013 at 9:49pm

सराहना और उत्साहवर्धन के लिए, अनेकानेक धन्यवाद डॉ. प्राची जी.

Comment by Vinita Shukla on August 20, 2013 at 9:48pm

बहुत बहुत धन्यवाद, अमन जी.

Comment by Vinita Shukla on August 20, 2013 at 9:48pm

कोटिशः धन्यवाद, राम शिरोमणि जी.

Comment by Vinita Shukla on August 20, 2013 at 9:47pm

हार्दिक आभार, गीतिका 'वेदिका' जी.

Comment by Vinita Shukla on August 20, 2013 at 9:47pm

अनेकानेक धन्यवाद गिरिराज जी.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on August 20, 2013 at 8:57pm

परी कथा की मासूम सिंड्रेला आज के प्रस्तर युग का सत्य समझ न ही आये तो बेहतर..

बहुत गहन अर्थों को जीती है आपकी यह अभिव्यक्ति 

हृदय से बधाई आ० विनीता शुक्ला  जी 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Admin posted discussions
18 hours ago
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  …See More
18 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"बहुत सुंदर अभिव्यक्ति हुई है आ. मिथिलेश भाई जी कल्पनाओं की तसल्लियों को नकारते हुए यथार्थ को…"
Friday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय मिथिलेश भाई, निवेदन का प्रस्तुत स्वर यथार्थ की चौखट पर नत है। परन्तु, अपनी अस्मिता को नकारता…"
Jun 6
Sushil Sarna posted blog posts
Jun 5
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार ।विलम्ब के लिए क्षमा सर ।"
Jun 5
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया .... गौरैया
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी । सहमत एवं संशोधित ।…"
Jun 5
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .प्रेम
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभार आदरणीय"
Jun 3
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .मजदूर

दोहा पंचक. . . . मजदूरवक्त  बिता कर देखिए, मजदूरों के साथ । गीला रहता स्वेद से , हरदम उनका माथ…See More
Jun 3

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सुशील सरना जी मेरे प्रयास के अनुमोदन हेतु हार्दिक धन्यवाद आपका। सादर।"
Jun 3
Sushil Sarna commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"बेहतरीन 👌 प्रस्तुति सर हार्दिक बधाई "
Jun 2
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी समीक्षात्मक मधुर प्रतिक्रिया का दिल से आभार । सहमत एवं…"
Jun 2

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service