फासलों की
हर पर्त को चीरते
चंद शब्द...
जिनका चेहरा,
कभी दिखाई ही नहीं देता..
आखिर देखूँ भी तो क्यों ?
लुका छिपी में उलझाते मुखौटे !
जिनकी आवाज,
कभी सुनायी ही नहीं देती..
आखिर सुनूँ भी तो क्यों ?
कृत्रिमता में गुँथे बंधित अल्फाज़ !
जिनके अर्थ,
कभी बूझने नहीं होते..
आखिर बूझूँ भी तो क्यों ?
सिर्फ भ्रमित करते से दृश्य तात्पर्य !
जबकि,
हृदय गुहा में
अंकित होते हों..
मुखौटों की कृत्रिमता से
सदा सर्वदा अस्पृष्ट..
अर्थ की बंदिशों से परे..
ऊर्जित भाव स्पंदन
अपने अनुगुंजन में
चिदानन्द संजोये
उसके चंद शब्द !!
Comment
आदरणीय सौरभ जी ,
एक बार गुरुमुख से सुना था "जो हम महसूस करते हैं सूक्ष्म ऊर्जा के स्तर पर वो कभी मैनीपुलेटेड नहीं हो सकता... कोई व्यक्ति अपने शब्दों के साथ तो बनावटी या कृत्रिम् हो सकता है, पर जो ऊर्जा वो संप्रेषित करता है वो कभी चाह कर भी उसे कृत्रिम नहीं कर सकता"
उस विषयवस्तु पर यथार्थ अनुभव प्राप्त करने के प्रयासों नें इस अभिव्यक्ति को यह स्वरुप दिया है.
आपको सम्प्रेषण शिल्प संतुष्ट कर सके, यह जानना लेखनी के लिए आवश्यक प्रोत्साहन है..
आपका धन्यवाद आदरणीय
सादर.
यह सर्व संभाव्य है किन्तु किसी-किसी को प्राप्य है. आपने आवरणों और मिथ्याभरणों को जिस तरह से नकारने की बातें की हैं ऐसा समस्त तात्पर्यों से परे कोई भावमुग्ध ही कह सकता है. अनश्वर का झंकृत होना, स्थूल से सूक्ष्म की अनुभूति, सनातन के मूल से समादृत होना सौभाग्य तथा समर्पित प्रयास का सुफल है.
संप्रेषण में कसावट है. शिल्प के संदर्भ में अन्यान्य सटीक है.
शुभ-शुभ
आ० वंदना जी
अभिव्यक्ति पर आपकी टिप्पणी सम्प्रेषण को आश्वस्त करती है और उत्साहवर्धन भी. आपका हृदय से धन्यवाद
'अस्पृष्ट' का अर्थ है जिसे स्पर्श किया ही ना जा सके , स्पर्श से परे
प्रिय राम शिरोमणि पाठक जी
अभिव्यक्ति की सराहना के लिए आपका धन्यवाद
प्रिय गीतिका जी
अभिव्यक्ति को महसूस कर भाव सम्प्रेषण की सफलता पर अपनी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया देने के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद
जबकि,
हृदय गुहा में
अंकित होते हों..
मुखौटों की कृत्रिमता से
सदा सर्वदा अस्पृष्ट..
अर्थ की बंदिशों से परे..
ऊर्जित भाव स्पंदन
अपने अनुगुंजन में
चिदानन्द संजोये
उसके चंद शब्द !!
आदरणीया प्राची जी अतीव सुन्दर ,अनुपम /////आपकी इस अनुपम लेखनी को बार बार नमन //सादर
आदरणीया डॉ प्राची जी , क्षमा करे , आपकी रचना पढ़ी जरूर थी पर अन्तर्निहित गूढ़|र्थ , ,जीवन दर्शन को आत्मसात नहीं कर सकी
अर्थ की बंदिशों से परे..
ऊर्जित भाव स्पंदन
अपने अनुगुंजन में
चिदानन्द संजोये .....
बहुत ही सुंदर और ह्रदयभेदी अभिव्यक्ति, वास्तव में प्रेम के सर्वोच्च आयाम पर पहुँच कर किसी शब्द की आवश्यकता नही रह जाती| ऊर्जित भाव स्पंदन ही सब कुछ है|
आप को हार्दिक बधाई इस सुंदर रचना हेतु
आ० शुभ्रा जी ,
रचना पर आपके अनुमोदन के लिए हार्दिक आभार!
आप शायद अभिव्यक्ति को सही से पढ़ नहीं पाईं..
इसमें किसी तरह के कृत्रिम या बनावटी व्यक्ति की सोच का चित्रण नहीं है..
बल्कि इसें तो हृदय में अथाह प्रेम को छुपाते और न जताते हुए व्यक्तित्व का वर्णन है, जिसे शब्दों की ज़रूरत नहीं सिर्फ भाव स्पंदन ही शब्दों से परे प्रेम को संप्रेषित करते हैं..
सादर.
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