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वज्न - 2122 1122 22

 

महफिलें यूँ ही सजाये रखना

हौसला अपना बनाये रखना

 

चाँद के पहलू में अन्धेरा है

इन चिरागों को जलाये रखना

 

रविशे-आम आज हरीफ़ाना है

संग हाथों में उठाये रखना 

 

अपनी यादों के वही दिलकश पल

इन निगाहों में छिपाये रखना

 

दरमियां फूलों के गुज़रो तुम तो

गुलचीं से खुद को बचाये रखना

 

(हरीफ़ाना= दुश्मनों सा. संग= पत्थर

गुलचीं= फूल तोड़ने वाला)

 

-मौलिक अप्रकाशित*

 

*संशोधित

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Comment by वेदिका on July 19, 2013 at 4:18pm

चाँद के पहलू में अन्धेरा है

तुम चिरागों को जलाये रखना

 

वाह वा ,,सुंदर 

Comment by Ketan Parmar on July 19, 2013 at 11:46am

bhot khoob


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Comment by शिज्जु "शकूर" on July 19, 2013 at 10:47am

राज जी मेरी रचना को मान देने के लिए आपका शुक्रिया 


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Comment by शिज्जु "शकूर" on July 19, 2013 at 10:46am

जितेंद्र जी तारीफ़ के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया


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Comment by शिज्जु "शकूर" on July 19, 2013 at 10:45am

आदरणीया कुंती जी, अन्नपूर्णा जी आपका आभार

Comment by राज़ नवादवी on July 19, 2013 at 9:20am

'जब चलोगे दरमियां फूलों के

गुलचीं से नज़रें बचाये रखना'

बहुत खूब!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on July 18, 2013 at 6:24pm

"अपनी यादों के वही दिलकश पल

इन निगाहों में छिपाये रखना

 

जब चलोगे दरमियां फूलों के

गुलचीं से नज़रें बचाये रखना"....आदरणीय..शिज्जू जी, बहुत खूब ..शानदार शेअर पर दाद कुबूल कीजिये

Comment by annapurna bajpai on July 18, 2013 at 1:05pm

आदरणीय शिजू जी , बहुत खूब गजल है ।

Comment by coontee mukerji on July 18, 2013 at 12:11pm

जब चलोगे दरमियां फूलों के

गुलचीं से नज़रें बचाये रखना.............बहुत खूब.

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