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एक गजल पेश है, वज्न २ २ २ २ २ २ २ २ २ २ २ २ २ 
.
फिर सूने दिल का सूना पन उफ़ तौबा तौबा 
सूखा अम्बर बंजर आंगन उफ़ तौबा तौबा 
.
दिल बेचारा हारा हारा सौतन जीती फिर 
मेरे भोले सैयां का मन उफ़ तौबा तौबा 
.
एक चौराहा चारों राहें मन भटकाती है
मंजिल गुम बेमतलब जीवन उफ़ तौबा तौबा  
.
हम तो बिसरी सूरत फिर से लेके बैठे है 
उनका नादाँ जिद्दी बचपन उफ़ तौबा तौबा 
.
चंदा मामा सूरज काका सब रिश्ते झूठे 
अब तो अपना सा हर दुश्मन उफ़ तौबा तौबा 
.
ऊँचाई पे जाकर सब कुछ छोटा दिखता है 
कैसा नजरों का पागलपन उफ़ तौबा तौबा 
खेतों की हरियाली में मौसम मौसम हम  
औ पीली चूड़ी की छनछन उफ़ तौबा तौबा 
(मौलिक/अप्रकाशित)

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Comment by वेदिका on July 5, 2013 at 6:59pm

आदरनीया संजू "शब्दिता" जी! 

// बहुत -बहुत -बहुत -बहुत- बहुत -बहुत -बहुत -बहुत ....ही सुन्दर ग़ज़ल।
लाखों करोड़ों बधाइयाँ आपको।  //

आपकी इतनी प्यारी शुभकामनाओं ने मुझे अपार स्नेहिल खुशी दी है :)  

मै अभिभूत हूँ!!

आपका ह्रदय की गहराइयों से आभार!!  

Comment by sanju shabdita on July 5, 2013 at 6:28pm

आदरणीय गीतिका जी बहुत -बहुत -बहुत -बहुत- बहुत -बहुत -बहुत -बहुत ....ही सुन्दर ग़ज़ल।
लाखों करोड़ों बधाइयाँ आपको।  


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 5, 2013 at 6:08pm
फिर सूने दिल का सूना पन उफ़ तौबा तौबा 
सूखा अम्बर बंजर आंगन उफ़ तौबा तौबा -----मुखड़े ने लूट लिया 
.
दिल बेचारा हारा हारा सौतन जीती फिर 
मेरे भोले सैयां का मन उफ़ तौबा तौबा ------ऐसे सैयां को भोला तो बिलकुल नहीं मानूंगी 
.
एक चौराहा चारों राहें मन भटकाती है
मंजिल गुम बेमतलब जीवन उफ़ तौबा तौबा  ---नहीईई ये तो डिप्रेसन के लक्षण है बेबी 
.
हम तो बिसरी सूरत फिर से लेके बैठे है 
उनका नादाँ जिद्दी बचपन उफ़ तौबा तौबा -----नटखट अदाएं 
.
चंदा मामा सूरज काका सब रिश्ते झूठे 
अब तो अपना सा हर दुश्मन उफ़ तौबा तौबा ----अब तो हर अपना  दुश्मन सा उफ़ तौबा तौबा कहेंगी तो बात स्पष्ट होगी 
फिलहाल इस मासूम प्यारी सी  ग़ज़ल के लिए दिली दाद कबूल करें 
Comment by वेदिका on July 5, 2013 at 4:33pm

आभार आदरणीय बसंत नेमा जी!

Comment by बसंत नेमा on July 5, 2013 at 4:29pm

आ0  सुन्दर गजल ..सुन्दर प्रस्तुति . बधाई 

Comment by वेदिका on July 5, 2013 at 3:34pm

आदरणीया प्राची जी! 

आपने रचना कर्म की उन्मुक्त कंठ से प्रशंसा की,

आपका तहे दिल से आभार!!  

Comment by वेदिका on July 5, 2013 at 3:29pm

आपका बहुत बहुत शुक्रिया आपने गजल के भाव को समझा, मुझे प्रोत्सहित किया 

आदरणीय विजय निकोर जी! 

आदरणीय सुमित नैथानी जी!

आदरणीय आभिषेक जी! 

आदरणीय देवेन्द्र जी! 

Comment by वेदिका on July 5, 2013 at 3:26pm

आप सब सुधिपाठकों का दिल से शुक्रिया,, आपने गजल की खूब सुरती की दाद दी!

आदरणीय किशन कुमार जी!

आदरणीय शिज्जू जी! 

आदरणीय केवलप्रसाद जी!    

Comment by Sumit Naithani on July 5, 2013 at 2:40pm

बहुत सुंदर है ये गज़ल तौबा तौबा 

Comment by vijay nikore on July 5, 2013 at 2:00pm

गज़ल अच्छी बनी है, आदरणीया गीतिका जी।

सादर,

विजय निकोर

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