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एक्वेरियम की मछलियाँ

कांच की दीवारों में
साँसों के स्पंदन
कसमसाती पूंछ
छटपटाते डैने
शो पीस सरीखा जीवन
रास न आयें इन्हें
थोपी हुई रंगीनियाँ
एक्वेरियम में कैद
सुन्दर देह वाली  
मछलियाँ
है नहीं तलछट से
छनती धूप
अब इनके लिए
अरसा हुआ
लहरों की
स्वर्णिम गोद में
 खेले हुए
 चट्टानों की ऒट से
आखेट लुकछिप कर किये
मूँगों के झुरमुट में मानों
कौंधती थी बिजलियाँ
एक्वेरियम में कैद
सुन्दर देह वाली  
मछलियाँ
सिकुड़ गया ज़िन्दगी का
जादुई कैनवास
कुलबुलाती फिर रहीं
लेती हुई उच्छ्वास
  चंद पत्थर, चंद कंचे
प्लास्टिक की घास
 बनावटी शैवाल
खुलती बंद होती सीपियाँ
एक्वेरियम में कैद
सुन्दर देह वाली  
मछलियाँ

(मौलिक और अप्रकाशित)

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Comment

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Comment by Vinita Shukla on June 7, 2013 at 6:50pm

धन्यवाद आबिद अली जी, सराहना हेतु.

Comment by Vinita Shukla on June 7, 2013 at 6:49pm

धन्यवाद श्याम नारायण जी, प्रोत्साहन के लिए.

Comment by Pragya Srivastava on June 7, 2013 at 6:01pm

     विनीता जी सुंदर रचना के लिए बधाई                                                                                                                              हम खुश होते हैं देखकर काँच की दीवारों में मचलती हैं मछलियाँ

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on June 7, 2013 at 4:47pm
कांच की दीवारों में
साँसों के स्पंदन
कसमसाती पूंछ
छटपटाते डैने
शो पीस सरीखा जीवन
रास न आयें इन्हें 
थोपी हुई रंगीनियाँ 
एक्वेरियम में कैद
सुन्दर देह वाली  
मछलियाँ
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति हेतु सादर बधाई 
आदरणीया विनीता जी 
Comment by aman kumar on June 7, 2013 at 4:00pm
सिकुड़ गया ज़िन्दगी का 
जादुई कैनवास
कुलबुलाती फिर रहीं
लेती हुई उच्छ्वास
  चंद पत्थर, चंद कंचे 
प्लास्टिक की घास 
 बनावटी शैवाल
बहुत-बहुत बधाई व शुभकामनाएँ.
Comment by वेदिका on June 7, 2013 at 3:44pm

प्रयास पर बधाइ

Comment by Abid ali mansoori on June 7, 2013 at 3:30pm
Badhayi aapko sarahniye rachana ke liye..
Comment by Shyam Narain Verma on June 7, 2013 at 3:10pm
इस प्रस्तुति हेतु बहुत-बहुत बधाई व शुभकामनाएँ.

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