For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

तुम्हारा प्रेम -
खुद तुम्हारा ही
गढ़ा  फलसफा
सुविधाजीवी सोच से
तौला हुआ
 नुक्सान नफ़ा
जब तुम कहते हो -
प्रेम है तुम्हें
बुनते हो
मोहक भ्रमजाल
अंतस- द्वीपों में
ज्यों भित्तियां
रचते प्रवाल

 
१- मित्रों की मंडली में
वह अनर्गल सी हंसी
देह के ही व्याकरण में
उलझकर रहती फंसी
 हो न सकती
उसमें मुखरित
सहचरी या प्रेयसी
जब तुम कहते हो-
प्रेम है तुम्हें
झूठ होता है
वह महिमामंडन
अपने ही
मानदंडों का
करता जो खंडन

 
२- आत्मा में तुम्हारी
गूंजा नहीं कोई शंखनाद
धडकनें संवेदना की
आस्था का आह्लाद
तमस में लिपटा तुम्हारा
वह कुटिल, भ्रामक प्रमाद...!
जब तुम कहते हो-
प्रेम है तुम्हें
तो करते हो कोई पाखंड
भुलावे में डालने वाले
कपट, छल छंद


(मौलिक और अप्रकाशित)

Views: 680

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Vinita Shukla on July 26, 2013 at 2:23pm

बहुत बहुत धन्यवाद विजय मिश्र जी.

Comment by विजय मिश्र on July 26, 2013 at 10:25am
विनीताजी , बेमेल मन और असंगत जीवन का ,वहाँ से जनमती मनोभावों का ,भुगतती मनोदशा का बहुत सूक्ष्म विश्लेषण एवं सफल अभिव्यक्ति और सधे शब्दों में स्पष्ट चित्रण. साधुवाद .
Comment by Vinita Shukla on July 25, 2013 at 10:46pm

अनेकानेक धन्यवाद आदरणीया डॉ. प्राची जी.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on July 24, 2013 at 12:19pm

आदरणीया विनीता शुक्ला जी

आपकी यह अभिव्यक्ति बहुत पसंद आई, 

अहम्, स्व से बड़ा जब किसी व्यक्ति को कुछ न लगे... तो उसके द्वारा प्रेम का आवरण भी पाखण्ड ही होता है..पाखण्ड ही लगता है.

हर बंद प्रेम भाव की सत्यता की कसौटी पर मुखौटों को उचेटता , गहन चिंतन को शब्द देता सा प्रतीत हुआ 

हार्दिक शुभकामनाएँ 

Comment by Vinita Shukla on July 24, 2013 at 9:33am

सराहना हेतु कोटिशः आभार, आदरणीय सौरभ जी.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 24, 2013 at 9:23am

दैहिक अनुभूतियों के परे शाश्वत प्रेम की महत्ता बताती पंक्तियाँ सहचर से संवाद बनाने का माध्यम ढूँढती हुई कश्मकश को जीती दीख रही हैं.

इस मनोदशा के प्रति सादर सहानुभूति.  और रचना हेतु बधाइयाँ.

अच्छा प्रयास हुआ है, आदरणीया विनीता जी.

शुभ-शुभ

Comment by Vinita Shukla on July 23, 2013 at 9:38pm

बहुत बहुत धन्यवाद अभिनव अरुण जी.

Comment by Abhinav Arun on July 23, 2013 at 9:08pm


विमर्श का गंभीर आग्रह करती रचना … गहरे तक असर करती है बहुत बहुत साधुवाद इस प्रस्तुति पर आदरणीया !!

Comment by Vinita Shukla on July 23, 2013 at 7:29pm

हार्दिक आभार अन्नपूर्णा जी.

Comment by Vinita Shukla on July 23, 2013 at 7:28pm

कोटिशः धन्यवाद श्याम नारायण जी.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"स्वागतम"
33 minutes ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
34 minutes ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आदरणीय चेतन जी सृजन के भावों को मान और सुझाव देने का दिल से आभार आदरणीय जी"
9 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आदरणीय गिरिराज जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
9 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। दोहों पर आपकी प्रतिक्रिया से उत्साहवर्धन हुआ। स्नेह के लिए आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और प्रशंसा के लिए आभार।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आदरनीय लक्ष्मण भाई  , रिश्तों पर सार्थक दोहों की रचना के लिए बधाई "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आ. सुशील  भाई  , विरह पर रचे आपके दोहे अच्छे  लगे ,  रचना  के लिए आपको…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आ. भाई चेतन जी सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति के लिए हार्दिक धन्यवाद।  मतले के उला के बारे में…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति के लिए आभार।"
yesterday
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आ. सुशील  सरना साहब,  दोहा छंद में अच्छा विरह वर्णन किया, आपने, किन्तु  कुछ …"
yesterday
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आ.आ आ. भाई लक्ष्मण धामी मुसाफिर.आपकी ग़ज़ल के मतला का ऊला, बेबह्र है, देखिएगा !"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service