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तुम्हारा प्रेम -
खुद तुम्हारा ही
गढ़ा  फलसफा
सुविधाजीवी सोच से
तौला हुआ
 नुक्सान नफ़ा
जब तुम कहते हो -
प्रेम है तुम्हें
बुनते हो
मोहक भ्रमजाल
अंतस- द्वीपों में
ज्यों भित्तियां
रचते प्रवाल

 
१- मित्रों की मंडली में
वह अनर्गल सी हंसी
देह के ही व्याकरण में
उलझकर रहती फंसी
 हो न सकती
उसमें मुखरित
सहचरी या प्रेयसी
जब तुम कहते हो-
प्रेम है तुम्हें
झूठ होता है
वह महिमामंडन
अपने ही
मानदंडों का
करता जो खंडन

 
२- आत्मा में तुम्हारी
गूंजा नहीं कोई शंखनाद
धडकनें संवेदना की
आस्था का आह्लाद
तमस में लिपटा तुम्हारा
वह कुटिल, भ्रामक प्रमाद...!
जब तुम कहते हो-
प्रेम है तुम्हें
तो करते हो कोई पाखंड
भुलावे में डालने वाले
कपट, छल छंद


(मौलिक और अप्रकाशित)

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Comment

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Comment by Vinita Shukla on July 26, 2013 at 2:23pm

बहुत बहुत धन्यवाद विजय मिश्र जी.

Comment by विजय मिश्र on July 26, 2013 at 10:25am
विनीताजी , बेमेल मन और असंगत जीवन का ,वहाँ से जनमती मनोभावों का ,भुगतती मनोदशा का बहुत सूक्ष्म विश्लेषण एवं सफल अभिव्यक्ति और सधे शब्दों में स्पष्ट चित्रण. साधुवाद .
Comment by Vinita Shukla on July 25, 2013 at 10:46pm

अनेकानेक धन्यवाद आदरणीया डॉ. प्राची जी.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on July 24, 2013 at 12:19pm

आदरणीया विनीता शुक्ला जी

आपकी यह अभिव्यक्ति बहुत पसंद आई, 

अहम्, स्व से बड़ा जब किसी व्यक्ति को कुछ न लगे... तो उसके द्वारा प्रेम का आवरण भी पाखण्ड ही होता है..पाखण्ड ही लगता है.

हर बंद प्रेम भाव की सत्यता की कसौटी पर मुखौटों को उचेटता , गहन चिंतन को शब्द देता सा प्रतीत हुआ 

हार्दिक शुभकामनाएँ 

Comment by Vinita Shukla on July 24, 2013 at 9:33am

सराहना हेतु कोटिशः आभार, आदरणीय सौरभ जी.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 24, 2013 at 9:23am

दैहिक अनुभूतियों के परे शाश्वत प्रेम की महत्ता बताती पंक्तियाँ सहचर से संवाद बनाने का माध्यम ढूँढती हुई कश्मकश को जीती दीख रही हैं.

इस मनोदशा के प्रति सादर सहानुभूति.  और रचना हेतु बधाइयाँ.

अच्छा प्रयास हुआ है, आदरणीया विनीता जी.

शुभ-शुभ

Comment by Vinita Shukla on July 23, 2013 at 9:38pm

बहुत बहुत धन्यवाद अभिनव अरुण जी.

Comment by Abhinav Arun on July 23, 2013 at 9:08pm


विमर्श का गंभीर आग्रह करती रचना … गहरे तक असर करती है बहुत बहुत साधुवाद इस प्रस्तुति पर आदरणीया !!

Comment by Vinita Shukla on July 23, 2013 at 7:29pm

हार्दिक आभार अन्नपूर्णा जी.

Comment by Vinita Shukla on July 23, 2013 at 7:28pm

कोटिशः धन्यवाद श्याम नारायण जी.

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"हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय। "
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"आपका हार्दिक आभार, आदरणीय"
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"आदरणीय दयाराम जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
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"आदरणीया प्रतिभा जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करती मार्मिक प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
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