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नवरात्र...कैसा ..लघु कथा / कुशवाहा

नवरात्र...कैसा  ..लघु कथा / कुशवाहा 
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अब आपके कर्म अच्छे थे कि बड़े  अधिकारी  बन गए या देश में  रसूखदार पदवी पा गए. इससे हम क्यों जलें कि आपको जब परिवार में शादी ब्याह, जीना मरना हो, मंदिर दर्शन करना हो  तो लगा लिया ग्रह जनपद या पास के क्षेत्र का भ्रमण. निरीक्षण का निरीक्षण और सरकारी  सुविधाओं के साथ निजी कार्य भी निपटाया, यानी कि एक पंथ दो काज. दामाद जैसी खातिरदारी सो अलग.स्टाफ तो निजी नौकर है भले ही वो सरकारी है. 
ख़ैर जाने दीजिए इसको .भाग्य भाग्य की बात है. 
अब साहब इतना तो ठीक पर बात हो मंदिर दर्शन की . साहब , उसके साथ प्रोटोकाल कोई बात नहीं. 
हुक्म हुआ . प्रसाद, फल फूल माला की. गजोधर को तपाक  से उनके अधिकारी ने व्यवस्था हेतु निर्देश दिए कि जल्दी से सामान ले आओ. 
साहब..?
क्या ..?
कुछ नहीं .
मेहमान अधिकारी दोनों का वार्तालाप सुन रहे हैं पर मौन. वर्मा जी ,जो स्थानीय अधिकारी हैं ,से बोले आपका कार्य बहुत बढ़िया है.  जाते ही आपके  प्रोमोशन की संस्तुति कर दूंगा. 
वर्मा जी, लगभग शाष्टांग होते हुए बोले जी सर यहाँ  की जितनी मशहूर चीजें हैं , पैक करवा दी हैं . 
अरे गजोधर , तुम गए नहीं .
जी पहले  वालों के प्रसाद के पैसे आज तक नही मिले. 
प्रदीप कुमार सिंह कुशवाहा 
१८-४-२०१३ 
मौलिक/अप्रकाशित 

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Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 18, 2013 at 11:24pm

आदरणीय  प्रदीप कुमार सिहं जी,   सार्थक कथ्य।  हार्दिक बधाई स्वीकारे।  साद

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on April 18, 2013 at 9:59pm
आदरणीय प्रदीप सर जी सादर प्रणाम
बहुत ही सुन्दर लघु कथा सर जी
सादर बधाई हो
Comment by वेदिका on April 18, 2013 at 7:16pm

किसी को क्या पड़ी है आम आदमी की ...
शुभकामनाये आदरणीय संदीप जी!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on April 18, 2013 at 6:14pm

अफसरगिरी में ये सब आज आम है....

सरकारी दामाद बन क्या नहीं करते ये लोग. शायद अंतरात्मा कभी जवाब ही नहीं माँगती...

सुन्दर प्रस्तुति पर बधाई आदरणीय प्रदीप जी 

Comment by Kavita Verma on April 18, 2013 at 5:10pm

vo sochate hai mandir ke baahar jo hua bhagvan ko kya pata ...sateek vyang karti sundar laghukatha..

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