For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

नवरात्र ..लघु कथा

नवरात्र ..लघु कथा 
------------------------------------

शर्मा जी की यूँ तो आदत बहुत खाने की है, बुराई एक है  अपने खाने में से वो किसी को पूंछते  नहीं कि भैया जी थोडा सा आप भी खा लो. धार्मिक इतने कि कार्यालय कभी प्रातः साढ़े ग्यारह से पहले नहीं आते और चार बजे कार्यालय छोड़ देते . कारण पूछो तो बताते कि पूजा पर बैठते हैं.

नवरात्र में वे फलाहार कार्यालय कैम्पस के बाहर लगे फलों के ठेले पर करते . सो नित्य की भांति वे फलाहार करने गए. पीछे पीछे मैं भी गया कि व्रत के नाम पर एक दो केले मुझे भी मिल जाएँ. पर ऐसा सौभाग्य कहाँ. एक दर्जन केला खरीदा और शुरू हो गए . मैं जानता तो था ही आदत उनकी , मुझे निराशा ही हाथ आयी. सो मैने भी दो केला लिए . देखा कि एक छोटी बालिका अपनी गोद में शिशु लिए शर्मा जी की ओर इस प्रत्याशा से टुकुर टुकुर टाक रही थी कि शायद कृपा द्रष्टि हो और शर्मा जी से एक आध केला मिल जाए. 
शर्मा जी कहाँ पिघलने वाले . एक दर्जन केला सफाचट और निगाहें मेरे दो अदद केलों पर. 
मुझसे तो रहा न गया ,मैने एक केला बालिका को दे दिया. दूसरा शर्मा जी को दे दिया. बालिका के अधरों पर आयी मुस्कान मुझे संत्रपत् कर गयी.
शर्मा जी नवरात्र में आप घर में कन्या नहीं खिलाते  ?
प्रदीप कुमार सिंह कुशवाहा 
१८-४-२०१३ 
मौलिक/अप्रकाशित 

Views: 733

Facebook

You Might Be Interested In ...

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Ashok Kumar Raktale on April 23, 2013 at 8:49am

बहुत खूब! बढ़िया व्यंग है. सब मंजूर है पर तब दुसरे की थाली में झांकना कैसे मंजूर हो. अच्छा व्यंग है. सादर  बहुत बहुत बधाई स्वीकारें आदरणीय प्रदीप जी.

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on April 22, 2013 at 5:12pm

आदरणीय अभिनव अरुण जी 

सादर 

आपके स्नेह से उत्साह बढ़ा 

आभार 

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on April 22, 2013 at 2:16pm

आदरणीय डॉ. खरे जी 

सादर 

सादर आभार सर जी 

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on April 22, 2013 at 2:15pm

प्रिय केवल प्रसाद जी 

सस्नेह 

सादर आभार 

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on April 22, 2013 at 2:14pm

प्रिय संदीप जी 

सस्नेह 

सादर जय हो 

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on April 22, 2013 at 2:13pm

आदरणीया वेदिका जी 

सादर आभार 

Comment by Abhinav Arun on April 22, 2013 at 2:12pm

बिलकुल सही बहुत तीक्ष्ण व्यंग्य किया है आदरणीय श्री प्रदीप जी , वास्तव में बहुत से लोगों के लिए आज पूजा पाठ भीतर से महसूस की जाने वाली बात नहीं बल्कि दिखावे की चीज़ रह गयी है , वास्तविक धर्म और आचरण परोपकार और सदाचरण ही है . आपकी रचना यही सीख देती है . बहुत सुन्दर और सशक्त लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई ! 

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on April 22, 2013 at 1:54pm

प्रिय वाहिद जी 

सस्नेह. 

दर्शन हुए.

प्रोत्साहन हेतु आभार 

सादर

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on April 22, 2013 at 1:53pm

आदरणीय लड़ी वाला जी 

सादर अभिवादन 

प्रोत्साहन हेतु आभार 

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on April 22, 2013 at 1:51pm

आदरणीया प्राची जी 

सादर 

आपका अनुमोदन मिला आभार 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी's blog post was featured

एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]

एक धरती जो सदा से जल रही है   ********************************२१२२    २१२२     २१२२ एक इच्छा मन के…See More
12 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]

एक धरती जो सदा से जल रही है   ********************************२१२२    २१२२     २१२२ एक इच्छा मन के…See More
12 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . .तकदीर

दोहा सप्तक. . . . . तकदीर  होती है हर हाथ में, किस्मत भरी लकीर ।उसकी रहमत के बिना, कब बदले तकदीर…See More
12 hours ago
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 166

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ छियासठवाँ आयोजन है।.…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"आदरणीय  चेतन प्रकाश भाई  आपका हार्दिक आभार "
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"आदरणीय बड़े भाई  आपका हार्दिक आभार "
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"आभार आपका  आदरणीय  सुशील भाई "
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"भाई अखिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए हार्दिक आभार।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए धन्यवाद।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"आ. प्रतिभा बहन, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service