For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

आँख जैसे लगी, ख़ाक घर हो गया
जुल्म का प्रेत कितना निडर हो गया ।

कुछ दरिन्दों ने ऐसी मचाई गदर
खौफ की जद में मेरा नगर हो गया ।

थी किसी की दुकाँ या किसी का महल
चन्द लम्हों में जो खण्डहर हो गया ।

है नजर में महज खून ही खून बस
आज श्मसान 'दिलसुखनगर' हो गया ।

थी ख़बर साजिशों की मगर, बेखबर !
ये रवैया बड़ा अब लचर हो गया ।

कौन सहलाये बच्चे का सर तब 'सलिल'
जब भरोसा बड़ा मुख़्तसर हो गया ।

------  आशीष 'सलिल' (हैदराबाद)

Views: 830

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on February 23, 2013 at 11:38pm

वाह वाह आशीष भाई .............बेहतरीन ग़ज़ल कही है

ढेरों दाद क़ुबूल कीजिये

इस मुकम्मल ग़ज़ल के लिए

Comment by आशीष नैथानी 'सलिल' on February 23, 2013 at 11:19pm

जी आदरणीय नादिर सर सही कहा आपने... हादसों पर हादसे होते रहते हैं और राजनीति अपनी रोटी सेंकती है | दुखद है |

Comment by नादिर ख़ान on February 23, 2013 at 10:58pm

घायल मन

ताकती सूनी आँखें

उजड़े घर

फिर एक बार   दिल छलनी -छलनी हो गया ... 

Comment by आशीष नैथानी 'सलिल' on February 23, 2013 at 10:18pm

आदरणीय सौरभ सर जी, हम सभी के दुःख को एक आवाज देने की कोशिश की है।  हौसला अफजाई के लिये तहे दिल से शुक्रिया अदा करता हूँ |

Comment by आशीष नैथानी 'सलिल' on February 23, 2013 at 10:16pm

धन्यवाद आदरणीया 'मंजरी जी'.... शुक्रिया आदरणीय 'रविकर जी'....


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 23, 2013 at 6:19pm

भाईआशीषभाईजी, हमारे क्षुब्ध मन से आपकी ग़ज़ल बतियाती लगी है.  इस मुकम्मल मुसलसल ग़ज़ल के लिए दाद कुबूल फ़रमायें.
शुभ-शुभ

Comment by mrs manjari pandey on February 23, 2013 at 5:48pm

    आँख  जैसे लगी खाक   घर हो गया।ज़ुल्म का प्रेत कितना निडर हो गया। "   आदरणीय आशीष सलिल जी सामायिक घटनाओं पर ज़ाहिर सी चिंता .बहुत खूब।पूरा मंज़र नाचने लगता है।

Comment by रविकर on February 23, 2013 at 4:22pm

मार्मिक

लोग मरते तो हैं ।
जख्म भरते तो हैं ॥

बम फटे हैं बेशक -
एलर्ट करते तो हों ।

Comment by आशीष नैथानी 'सलिल' on February 23, 2013 at 4:01pm

तहेदिल से शुक्रिया डॉ प्राची जी...


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on February 23, 2013 at 3:20pm

हैदराबाद के आतंकी विस्फोटों की दहशत से रूबरू हो, अंतस्थल तक दहले ह्रदय के उद्गारों को बाखूबी अभिव्यक्त किया है ग़ज़ल में आदरणीय आशीष जी....

इस सामयिक ग़ज़ल पर बधाई.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Jaihind Raipuri joined Admin's group
Thumbnail

आंचलिक साहित्य

यहाँ पर आंचलिक साहित्य की रचनाओं को लिखा जा सकता है |See More
1 minute ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"हर सिम्त वो है फैला हुआ याद आ गया ज़ाहिद को मयकदे में ख़ुदा याद आ गया इस जगमगाती शह्र की हर शाम है…"
30 minutes ago
Vikas replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"विकास जोशी 'वाहिद' तन्हाइयों में रंग-ए-हिना याद आ गया आना था याद क्या मुझे क्या याद आ…"
43 minutes ago
Tasdiq Ahmed Khan replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"ग़ज़ल जो दे गया है मुझको दग़ा याद आ गयाशब होते ही वो जान ए अदा याद आ गया कैसे क़रार आए दिल ए…"
2 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"221 2121 1221 212 बर्बाद ज़िंदगी का मज़ा हमसे पूछिए दुश्मन से दोस्ती का मज़ा हमसे पूछिए १ पाते…"
2 hours ago
Manjeet kaur replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय महेंद्र जी, ग़ज़ल की बधाई स्वीकार कीजिए"
4 hours ago
Manjeet kaur replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"खुशबू सी उसकी लाई हवा याद आ गया, बन के वो शख़्स बाद-ए-सबा याद आ गया। वो शोख़ सी निगाहें औ'…"
4 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"हमको नगर में गाँव खुला याद आ गयामानो स्वयं का भूला पता याद आ गया।१।*तम से घिरे थे लोग दिवस ढल गया…"
6 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"221    2121    1221    212    किस को बताऊँ दोस्त  मैं…"
6 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"सुनते हैं उसको मेरा पता याद आ गया क्या फिर से कोई काम नया याद आ गया जो कुछ भी मेरे साथ हुआ याद ही…"
13 hours ago
Admin posted a discussion

"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)

आदरणीय साथियो,सादर नमन।."ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।प्रस्तुत…See More
13 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"सूरज के बिम्ब को लेकर क्या ही सुलझी हुई गजल प्रस्तुत हुई है, आदरणीय मिथिलेश भाईजी. वाह वाह वाह…"
23 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service