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मन निर्मल निर्झर, शीतल जलधर, लहर लहर बन, झूमे रे..

मन बनकर रसधर, पंख  प्रखर  धर, विस्तृत अम्बर, चूमे रे..

ये मन सतरंगी, रंग बिरंगी, तितली जैसे, इठलाये..

जब प्रियतम आकर, हृदय द्वार पर, दस्तक देता, मुस्काये.. 

डॉ. प्राची.

मौलिक , अप्रकाशित.

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Comment by vijay nikore on January 15, 2014 at 11:37am

आज मैं श्री नीरज जी की कविता "आदि पुरुष" पढ़ रहा  था तो आपके त्रिभंगी छंदों की याद आई।

चाहे उनकी और आपकी रचना-विधि अलग सही, पाठक के लिए आपके शब्द-गुन्थन में वही मिठास है

जो नीरज जी के शब्दों में है। उदाहरणार्थ उनकी निम्न पंक्तियाँ दे रहा हूँ  ...

 

आश्रान्त उषा, आक्लान्त निशा, दिग्भ्रान्त दिशा

.............

पल-विपल, निमिष-क्षण, दिवस-मास, अब्दाब्द कल्प

.................

ध्वनि-वसना, स्वर-कर्णा, लय-वर्णा, गति-चरणा

 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on February 27, 2013 at 8:24pm

आदरणीया सीमा जी, यह छंद रचना आपको पसंद आयी ये जान बहुत संतोष मिला है, आपका हार्दिक आभार.

Comment by seema agrawal on February 27, 2013 at 11:54am

सुन्दर भाव,सुन्दर शब्द और सुन्दर मन के संयोग से बना सुन्दर छंद ...बधाई प्राची 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on February 6, 2013 at 8:53am

आदरणीय विजय निकोर जी, 

आप जैसे प्रबुद्ध व अनुभवी वैचारिकता से से समृद्ध पाठक द्वारा रचना पर उत्साहवर्धक सराहना पाना, लेखन कर्मिता को संतुष्ट करता है. इस बहुमूल्य प्रोत्साहन के लिए आपकी ह्रदय से आभारी हूँ. सादर.

Comment by vijay nikore on February 6, 2013 at 8:21am

आदरणीया प्राची जी:

नमस्कार!

इन चार पंक्तिओं में ही आपने खज़ाना दे दिया है।

निशब्द हूँ,  कैसे कहूँ  शब्दों से मैं  मन का उल्लास,

कि जैसे पढ़ कर इनको आ गई सुख-शाँति मेरे पास,

आपकी लेखनी को सदैव समान है मेरा प्रणाम,

प्रसन्न कर देती है  किसी भी दिवस को पल में,

करवटें बदलते कटी हो चाहे किसी की सारी रात।

आपकी इन पंक्तियों को अभी गुनगुनाकर देखा

बिना किसी साज़ वह बन गईं  सौम्य गीत मधुर,

पुनरावृत्त हुआ मन में मेरे, मेरा प्रांजल उल्लास!

प्राची जी, बहुत, बहुत सारी बधाई।

विजय निकोर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on February 5, 2013 at 8:15pm

आ. संदीप जी रचना को आपकी सराहना व अनुमोदन मिला, इस हेतु आपका आभार 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on February 5, 2013 at 8:15pm

मुक्तकंठ से रचना की सराहना के लिए हार्दिक आभार आ. राजेश झा जी 

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on February 5, 2013 at 7:52pm

बहुत खूब ये केवल प्रयास से बढ़कर है

इस सुन्दर उत्कृष्ट छंद सृजन हेतु बधाई और धन्यवाद आपका

Comment by राजेश 'मृदु' on February 5, 2013 at 6:31pm

छंद त्रिभंगी  है बहुरंगी, आपकी सुंदर रचना देखकर मन तो कसमसाकर रह गया, कभी-कभी ऐसा होता है कि किसी की लेखनी से निकले शब्‍द एवं उसके गठन को देखकर ईर्ष्‍या होने लगती है, आपकी रचना देखकर ऐसा ही कुछ मेरे साथ हो रहा है । अभिराम लेखनी को शत-शत नमन


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on February 4, 2013 at 10:10pm

आदरणीया आरती शर्मा जी, 

आपको यह रचना पसंद आयी और इसे अनुमोदित कर आपनें लेखन कर्म को प्रोत्साहित किया इस हेतु आपकी ह्रदय  से आभारी हूँ. सस्नेह !

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