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मनमीत तेरी प्रीत की पदचाप मंगल-गीत है

निर्भीत मन, अभिनीत तन, जीवात्मा सुप्रणीत है...

 

हृदयाश्रुओं का अर्घ्य दे

हर भाव को सामर्थ्य दे

विह्वल हृदय में गूँजती

मृदुनाद सी सुरधीत है....

मनमीत तेरी प्रीत की पदचाप मंगल-गीत है

निर्भीत मन, अभिनीत तन, जीवात्मा सुप्रणीत है...

 

सूर्यास्त नें चूमा उदय

दे हस्त में, तुझको हृदय

चिर प्रज्ज्वला तेरी प्रभा

लौ दिव्य दिवसातीत है...

मनमीत तेरी प्रीत की पदचाप मंगल-गीत है

निर्भीत मन, अभिनीत तन, जीवात्मा सुप्रणीत है...

 

कुंदन करे ऐसी अगन

यज्ञाग्नि में आहूत मन

अस्पृष्ट सी शुचिकर छुअन

सुगृहीत देहातीत है...

मनमीत तेरी प्रीत की पदचाप मंगल-गीत है

निर्भीत मन, अभिनीत तन, जीवात्मा सुप्रणीत है...

 

दुर्नीति से दुर्भीत था

व्यक्तित्व जो परिवीत था

सब सींखचों को तोड़कर

वह आज व्योमातीत है...

मनमीत तेरी प्रीत की पदचाप मंगल-गीत है

निर्भीत मन, अभिनीत तन, जीवात्मा सुप्रणीत है...

 

 

निर्भीत=निर्भय , अभिनीत=पूर्णता से सजाया हुआ , सुप्रणीत=सुन्दरता से रचित , सुगृहीत=जिसे ठीक प्रकार से ग्रहण किया गया हो , दुर्नीति=बुरा नीति विरुद्ध आचरण , दुर्भीत=बुरी तरह डरा हुआ , परिवीत=छिपाया हुआ , व्योमातीत=जिसके लिए आकाश भी छोटा हो.

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on March 19, 2013 at 5:57pm

यह गीत आपको पसंद आया और आपकी बधाई प्राप्त हुई, इस हेतु आपकी आभारी हूँ आ. कमल किशोर अग्रवाल जी 

Comment by vijay nikore on March 19, 2013 at 10:09am

आदरणीया प्राची जी,

१६ फ़रवरी को पहली बार यह अनूठी रचना पढ़ी थी,

 

तदुपरांत इसको मैंने और मेरी जीवन साथी नीरा जी ने

कई बार हल्के-हल्के गुनगुनाया है, और आपके मनोहर

शब्द चयन और शब्दों की लय का रसास्वादन किया है।

 

आज आपको लिखने का अभिप्राय हमारा आपसे यह निवेदन है

कि यदि आप इस अनूठी रचना को स्वरित करके obo पर post

कर सकें तो और भी आनन्द आएगा ... जैसा  कि आपके त्रिभंगी

छंद से आया था।

 

असमंजस में हूँ कि यह अप्रतिम रचना कैसे लिखी-लिखी गई!

 

सादर और सस्नेह,

विजय

 

 

Comment by कमलकिशोर भागिरथजी अग्रवाल on March 6, 2013 at 11:28pm

प्राची जी  नमस्कार!    आपकी रचना पढी ! बहोत आनन्द आया ! आपको बहोत बहोत बधाई!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on March 1, 2013 at 3:44pm

इस गीत के भाव आपको पसंद आये, भावों की सराहना व रचना के अनुमोदन के लिए आपका हार्दिक आभार आ. मनोज जी 

Comment by Manoj Nautiyal on March 1, 2013 at 7:38am

बहुत सुन्दर रचना प्राची जी | प्रेयसी का अपने प्रेमी की पदचाप भी संगीत लगती है , मधुर गीत लगती है ..... प्रेम भाव का सुन्दर अलंकरण |


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on February 27, 2013 at 8:26pm

रचना की सराहना के लिए हार्दिक आभार आदरणीया सीमा जी 

Comment by seema agrawal on February 27, 2013 at 11:50am

बहुत पावन भाव और चिंतन के साथ लिखा हुया समर्पित गीत..... शब्दों में बहते हुए प्रांजल भावों की  चन्दन  गंध मन को महका गयी 

दुर्नीति से दुर्भीत था

व्यक्तित्व जो परिवीत था

सब सींकचों को तोड़कर

वह आज व्योमातीत है...

बहुत बहुत बधाई इस गीत के लिए 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on February 20, 2013 at 9:17pm

आदरणीय नादिर खान जी, रचना निहित भावों को पसंद कर अनुमोदित करने के लिए आपका हार्दिक आभार. सादर.

Comment by नादिर ख़ान on February 20, 2013 at 5:10pm

दुर्नीति से दुर्भीत था

व्यक्तित्व जो परिवीत था

सब सींकचों को तोड़कर

वह आज व्योमातीत है...

मनमीत तेरी प्रीत की पदचाप मंगल-गीत है

निर्भीत मन, अभिनीत तन, जीवात्मा सुप्रणीत है...

आदरणीय प्राची जी सुंदर भाव पूर्ण  अभिव्यक्ति के लिए बधाई स्वीकार करें ।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on February 18, 2013 at 11:32am

आदरणीय अशोक कुमार रक्ताले जी, 

आपको यह गीत रुचा यह जान लेखन कर्म को प्रोत्साहन मिला है.. आपके अनुमोदन के लिए आपका सादर आभार.

कृपया ध्यान दे...

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