For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

इशरत गंज उस शहर में देह बाज़ार का नाम था और लैला उस बाज़ार का एक हिस्सा थी । बाज़ार से सटे चौराहे पर मोती लाला की प्रसिद्ध किराना दुकान ।  इशरत गंज के अक्सर सभी घरों में मोती लाला की दुकान से ही सामान जाया करता था | लैला भी एक महीने का राशन एक साथ मंगवा लिया करती थी | आज भी राशन आया था । लैला बिल से एक-एक सामान मिलाती जा रही थी | पिछली बार लाला दो किलो नमक सामान के साथ बांधना भूल गया था । बार-बार कहने पर भी नहीं माना । लाला की भूल लैला पर भारी पड़ी थी | 

पर इस बार लाला की भूल उस पर ही भारी पड़ने वाली थी, वह पांच लीटर सरसों के तेल का हिसाब ही जोड़ना भूल गया | लैला ने सोच लिया, पिछली बार जैसा लाला ने उसके साथ किया था, इस बार वो भी उसका बदला ले लेगी । तेल का हिसाब तो कत्तई नहीं देना है । दूसरे ही पल सोचने लगी, "नहीं-नहीं, यह ठीक नहीं होगा, बेचारे लाला का नुकसान हो जाएगा । यह तो पाप है ना.. . . पर, नुकसान तो उसका भी हुआ था । उस समय तो लाला ने बिल्कुल नहीं सोचा था, फिर वो ही क्यों सोचे ? "जैसे को तैसा" करने में कोई पाप नहीं..",   लैला देर तक इस अंतरद्वंद्व में उलझी रही |

"लाला, यह देखो अपना बिल, तुमने कल पांच लीटर सरसों के तेल का हिसाब ही नहीं जोड़ा था, कितना हुआ ले लो |" 
मोती लाला आश्चर्य से लैला को देख रहा था । पिछले महीने की नमक वाली बात उसके मस्तिष्क में कौध गई |  
"देख क्या रहे हो लाला, यह पैसा काट लो.. . . तुम्हारे पास नमक हो ना हो, मेरे पास नमक अभी भी है । मैं जिस्म का सौदा जरुर करती हूँ, लाला.. . ईमान का नहीं |"
 

Views: 1287

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on January 11, 2013 at 4:14pm

उत्साहवर्धन एवं सराहना हेतु बहुत बहुत आभार आदरणीय रक्ताले साहब, स्नेह यूँ ही बनाये रखें |


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on January 11, 2013 at 4:13pm

लघुकथा को सराहने हेतु बहुत बहुत आभार आदरणीया अन्वेषा अन्जुश्री |

Comment by Ashok Kumar Raktale on December 18, 2012 at 11:08am

जहां औरों का ईमान डगमगा जाए वहाँ ईमान अभी शेष है. सुन्दर लघुकथा पर सादर हार्दिक बधाई स्वीकारें आदरणीय बाग़ी जी.

Comment by Anwesha Anjushree on December 16, 2012 at 12:07pm

मानव इश  की अनुपम कृति है ! कितनी तरह के स्वाभाव, कितने विचार, कितने आचार।।अच्छा लगा। लिखते रहे  ! नमन 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on December 16, 2012 at 11:20am

कथा के मूल भावों को समझने और सराहने हेतु आपका आभार आदरणीया राजेश कुमारी जी |


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on December 16, 2012 at 11:18am

डॉ साहब प्रतिक्रिया हेतु बहुत बहुत आभार, देह व्यवसाय सभी शौक से नहीं करते, बहुतों की मजबूरियां होती हैं, हो सकता है लैला मज़बूरी में या जबरदस्ती उस देह व्यवसाय में फंसी हो, देह मंडी नरक समान है , उस नरक में रह कर भी लैला अपने इमान को जिन्दा रखी है |


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on December 16, 2012 at 11:13am

सराहना हेतु बहुत बहुत आभार आदरणीय कुशवाहा साहब |


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on December 16, 2012 at 11:11am

आदरणीया रेखा जोशी जी, लघुकथा को सराहने और उत्साहवर्धन हेतु आपका बहुत बहुत धन्यवाद, स्नेह बनाये रखें ।


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on December 16, 2012 at 11:07am

आदरणीय आलोक जी, क्या आप फेस बुक वाल पर डालने की बात कर रहे हैं, यदि हां तो प्रत्येक रचना के नीचे फेस बुक शेयर लिंक होता है जिसे आप क्लिक कर फेस बुक पर शेयर कर सकते हैं ।


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on December 16, 2012 at 11:04am

आशीर्वाद हेतु आभार आदरणीय लडिवाला जी ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-168
"जी शुक्रिया आ और गुणीजनों की टिप्पणी भी देखते हैं"
1 hour ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-168
"आदरणीय संजय शुक्ला जी आदाब, तरही मिसरे पर अच्छी ग़ज़ल कही है आपने मुबारकबाद पेश करता हूँ। छठा और…"
2 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-168
"आदरणीय आज़ी तमाम साहिब आदाब, तरही मिसरे पर ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है बधाई स्वीकार करें, ग़ज़ल अभी…"
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-168
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल से मंच का शुभारम्भ करने के लिए हार्दिक बधाई।"
3 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-168
"221 2121 1221 212 अनजान कब समन्दर जो तेरे कहर से हम रहते हैं बचके आज भी मौजों के घर से हम कब डूब…"
3 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-168
"221 2121 1221 212 तूफ़ान देखते हैं गुजरता इधर से हम निकले नहीं तभी तो कहीं अपने घर से हम 1 कब अपने…"
3 hours ago
DINESH KUMAR VISHWAKARMA replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-168
"निकले न थे कभी जो किनारों के डर से हमकिश्ती बचा रहे हैं अभी इक भँवर से हम । 1 इस इश्क़ में जले थे…"
3 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-168
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी आदाब, मुशायरे का आग़ाज़ करने के लिए और दिये गये मिसरे पर ग़ज़ल के उम्दा…"
4 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-168
"चार बोनस शेर * अब तक न काम एक भी जग में हुआ भला दिखते भले हैं खूब  यूँ  लोगो फिगर से हम।।…"
6 hours ago
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-168
"221 2121 1221 212 अब और दर्द शे'र में लाएँ किधर से हम काग़ज़ तो लाल कर चुके ख़ून-ए-जिगर से…"
7 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-168
"सपने दिखा के आये थे सबको ही घर से हम लेकिन न लौट पाये हैं अब तक नगर से हम।१। कोशिश जहाँ ने …"
9 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-168
"वाक़िफ़ हैं नाज़नीनों की नीची-नज़र से हम दामन जला के बैठे हैं रक़्स-ए-शरर से हम सीना-सिपर हैं…"
12 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service