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लघुकथा : कृष्ण पक्ष

राजू गाँव के एक बेहद ही गरीब मजदूर का बेटा था | अट्ठारह-उन्नीस साल की उम्र रही होगी |  राकेश बाबू अपने साथ उसे शहर ले आये थे | सहायक प्रवक्ता की नौकरी लगने के साथ ही उनकी शादी शहर में ही एक लड़की से हो गई | राजू घर का सारा काम करता था । राकेश को भईया जी और उनकी पत्नी को भाभी माँ कह कर संबोधित करता । शादी के तीन साल बाद एक बेटा और अपनी पत्नी को छोड़ राकेश बाबू सड़क दुर्घटना के शिकार हो गये । अनुकम्पा के आधार पर राकेश की पत्नी को उसी कॉलेज में क्लर्क की नौकरी मिल गई । मरने से पहले राकेश बाबू राजू से भाभी माँ और बच्चे की देख-रेख के लिये कह गये थे । 
राजू  भाभी माँ और बच्चे की देख-रेख व सेवा बहुत ही ईमानदारी से कर रहा था । धीरे-धीरे सब सामान्य होने लगा था । 
इधर घर में एक अजीब सी बात हो रही थी, जो राजू को तनिक नहीं भाती । भाभी के साथ घर में एक युवक बराबर आने लगा था, जिसे राकेश की पत्नी कॉलेज का सहकर्मी बताती थी । ज्यादा दिन नहीं गये राजू ने घर में वो कुछ देख लिया जिसे समाज में अनैतिक कहा जाता है । राजू से सहन नहीं हुआ और वह सीधे सीधे भाभी माँ से कह बैठा, "यह जो कुछ हो रहा है, ठीक नहीं है..  जाते जाते भईया जी मुझ पर एक बहुत बड़ी जिम्मेदारी सौंप गये हैं..  मैं उस जिम्मेदारी को निभाने में असफल हो रहा हूँ । उस व्यक्ति का घर में आना-जाना मुझे ठीक नहीं लगता ।"
"राजू यह तुम क्या कह रहे हो, वो मेरे कार्यालय में साथ काम करते है, औपचारिकतावश ही यहाँ आते है.. तुम गलत न सोचो।.."
"भाभी माँ,  कुछ कहने की जरुरत नहीं है.. मैंने कल ही अपनी आखों से आपको उनके साथ.. ."
भाभी माँ गुस्से में बोली, "देख राजू....  तू नौकर है, नौकर की तरह ही रह ! तूझे मेरे व्यक्तिगत मामलों में नाक घुसेड़ने की जरुरत नहीं है.. समझाऽऽऽ .. "
"नहीं भाभी माँ, भईया जी मुझपर जो जिम्मेदारी सौंप गये हैं, उससे मैं मुँह नहीं मोड़ सकता",  राजू सिर नीचे किये हुए बोला।
राकेश की पत्नी ताड़ गयी, फिर तो उसने जो कुछ कहा, उस पर राजू लगभग चीखते हुए कहा, "छि:-छि:,  क्या कह रही हैं भाभीऽऽ ?  गरीब हूँ, पर संस्कारहीन नहीं, ऐसी घिनौनी बातें.. मैं तो सोच भी नहीं सकता..." 
"फिर से सोच ले राजू, बात मान ले तो मालिक की तरह रहेगा.. ।" 
"सोच लिया.. प्राण दे दूंगा पर ऐसा पाप..  ओऽऽह .. "
अगले दिन पुलिस राजू को मारती-पीटती ले जा रही थी, "चल साले, तुझ जैसों के लिए ही पब्लिक चीख-चीख कर फांसी की मांग कर रही है ।  नमकहराम.. . अपनी मालकिन पर ही..."
आगे के शब्द गुस्सायी भीड़ की ’मारो-मारो’ के तुमुल शोर में घुलते चले गये.. ...
पिछला पोस्ट :लघु कथा :- सौदा

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मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on August 31, 2013 at 11:07pm

आदरणीया वंदना जी,  बहुमूल्य टिप्पणी हेतु ह्रदय तल से आभार । 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on August 31, 2013 at 11:05pm

आदरणीया गीतिका जी, लघुकथा पसंद करने और सराहना हेतु ह्रदय से आभार व्यक्त करता हूँ । 

Comment by vandana on August 31, 2013 at 6:24am

दिमाग को झकझोरती लघुकथा ....चरित्र का इतना पतन !!!!!

Comment by वेदिका on August 31, 2013 at 12:15am

ऐसा भी होता है इस समाज में:-( ,,, आश्चर्य होता है अगर ऐसा होता है तो|

इतनी दुखद सच्चाई बयान करने के लिए धन्यवाद आदरणीय बागी जी! 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on January 17, 2013 at 4:16pm

बहुत बहुत आभार आदरणीया अरुणा कपूर जी ।


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on January 17, 2013 at 4:16pm

बहुत बहुत आभार आदरणीय प्रदीप सिंह कुशवाहा जी, आशीर्वाद बनाये रखें ।


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on January 17, 2013 at 4:13pm

आदरणीया राजेश कुमारी जी, आपकी सराहना है जो लेखन हेतु उत्साहित करती है , बहुत बहुत आभार ।


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on January 17, 2013 at 4:12pm

लघु कथा की सराहना हेतु बहुत बहुत आभार भाई संदीप पटेल जी ।


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on January 14, 2013 at 11:05pm

लघु कथा सराहने हेतु बहुत बहुत आभार आदरणीया सन्नो दी |


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on January 14, 2013 at 5:12pm

सराहना हेतु आभार आदरणीय सतीश भईया ।

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