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सूरज ने फक्कड़ से कहा:
"मुझे झुक कर सलाम कर !"
"तुझे सलाम करूं ? मगर क्यों?"
"ये दुनिया का दस्तूर है, चढ़ते सूरज को सभी सलाम करते हैं !"
"करते होंगे, मगर मैं तेरे आगे सिर नहीं झुकऊँगा !"
"मगर क्यों ?"
"क्योंकि तू बहुत कमज़ोर और निर्बल है, जिस दिन सबल हो जाएगा मैं तेरे आगे सर ज़रूर झुकाऊंगा !"
"कमज़ोर और निर्बल ? और वो भी मैं ?"
"हाँ !"
"तो अगर मैं ये साबित कर दूं कि मैं सबल हूँ, तो क्या तुम मुझे सलाम करोगे?"
"एक बार नही सौ सौ बार सिर झुकाकर सलाम करूँगा !"
"तो फिर जल्दी से बतायो कि तुम्हें यकीन दिलवाने के लिए मुझे क्या करना होगा ?
फक्कड़ ने मुस्कुराते हुए कहा:
"एक बार, सिर्फ एक बार रात में उदय होकर दिखा दो !"

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प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on October 29, 2010 at 4:14pm
आदरणीय डॉ ब्रिजेश त्रिपाठी जी - दिल से आभारी हूँ आपकी हौसला अफजाई का !
भाई रवि गुरु जी - धन्यवाद !
भाई विवेक मिश्र "ताहिर" जी - ऐसी चुनौती किसी फक्कड़ के इलावा और दे भी कौन सकता है ?
भाई गणेश बागी जी - आपको लघु कथा पसंद आई ये जानकार बहुत अच्छा लिखा ! आप अगर कहें तो ग़ज़ल कहना छोड़ ही दूँ !
भाई अरुण पब्देय "अभिनव" जी - रचना पसंद करने के लिए दिल से शुक्रिया !
Comment by Abhinav Arun on October 29, 2010 at 4:02pm
एक उत्कृष्ट लघु कथा | समाज के सर्वहारा वर्ग के आत्मविश्वास को व्यक्त करती रचना |बधाई योगराज जी |

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 29, 2010 at 9:05am

चाहे कोई कितना भी बलशाली हो उसका एक कमजोर पक्ष जरूर होता है, और वही उसका अँधेरा पक्ष होता है, फक्कड़ और सूर्य को प्रतिक बना कर आपने जो सन्देश अपनी इस लघु कथा के माध्यम से देना चाहे है, आप उस प्रयास मे १०० फीसदी सफल है, "लघु कथा और दीर्घ सन्देश" यह कमाल है आपकी लेखन मे, सच कहता हूँ ,मैने आपकी ग़ज़ल भी पढ़ी है और लघु कथा भी, कही न कही आपके अन्दर का कथाकार एक गज़लकार पर भारी है | सलाम आपके लेखन को, सलाम आपके ख्याल को और सलाम आपके कथा शैली को | बहुत बहुत बधाई |

Comment by विवेक मिश्र on October 29, 2010 at 12:26am
वाह.. फक्कड़ ने भी सूरज को जबरदस्त चुनौती दे डाली. गागर में सागर समेटना तो कोई आपसे सीखे. सर, आपसे निवेदन है कि अपने पुराने घर की एक बार फिर से छानबीन करें. शायद किसी पुरानी सीप से हम सभी को कुछ और मोती मिल जाएँ.
Comment by Dr.Brijesh Kumar Tripathi on October 28, 2010 at 9:46pm
वाह योगराज जी ..मज़ा आ गया...सूरज के भी पसीने छूट जायेंगे फक्कड़ से सलाम करवाने में ..बहुत ही अच्छा और मज़ेदार संवाद बधाई स्वीकार करें ...
Comment by Rash Bihari Ravi on October 28, 2010 at 3:04pm
jandar yaise sabd jo sochane ke liye majbur kar de,

प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on October 28, 2010 at 2:19pm
प्रिय नवीन भाई, यह लघुकथा तकरीबन २२-२३ साल पुरानी है ! कुछ अप्रकाशित लाघुकथायों की एक फाईल कुछ दिन पहले मुझे अपने पुराने घर से मिली oBo पर पोस्ट की गई चारों रचनाएँ उसी में से मिली ! आपको लघुकथा पसंद आयी यह जानकर बहुत संतोष हुआ !

प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on October 28, 2010 at 2:15pm
प्रिय बबन पाण्डेय भाई जी एवं आशीष यादव जी - आपकी हौसला अफजाई का बहुत बहुत शुकर्गुजार हूँ !
Comment by आशीष यादव on October 28, 2010 at 1:40pm
mujhe samajh me nahiu aa raha ki mai kis tarah se is rachana ka swagay karu. ek prayogdharmi rachna mijhe pratit hoti hai| yah ek laghukatha se bahut adhik hai\
Comment by baban pandey on October 28, 2010 at 11:33am
सब अपने को बलवान समझते है ..इसी भावना से ग्रसित रहते है लोग ....बहुत ही सुंदर तरीके से ...इस कुग्रंथी ..को समझाने की कोसिस बड़े भाई ...सराहनीय ..

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