For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

जब मैं बाजार से लौटकर आया तो देखा कि पड़ोसी के बच्चे मेरी खिड़की के पास खड़े हैं।
"लगता है इन कमबख्तों ने खिड़की का शीशा तोड़ दिया,इनके बाप से वसूलता शीशे का दाम"-मैंने सोचा।
जब मैं खिड़की के पास पहुंचा तो देखा कि वास्तव में शीशा टूटा हुआ है।अब तो मेरा रोष सातवें आसमान पर पहुंच गया।
मैंने डपटकर पूछा-"किसने तोड़ा है इसे?.........मेरा मुंह क्या देख रहो सब? जवाब दो।"सभी बच्चे डर गये।
तब तक मेरी नजर वहीं पास खड़े मेरे अपने बेटे मनीष पर गई,मैं डर गया कि "कहीं इसने तो नहीं तोड़ा,फिर मैं शीशे का दाम कैसे वसूल करूंगा।और बेइज्जती अलग से।"
मैं इतना सोच ही रहा था कि
रामू बोला-"मैंने नहीं तोड़ा है,इसने तोड़ा है।"
रवि बोला-"मैंने नहीं मनु ने तोड़ा है।"
मनु अपराधी की तरह हाथ जोड़कर कांपता हुआ आया-"ज्ज........जी........!.......अंकल जी मैंने तोड़ा है।म........मु......मुझे माफ कर ..........दीजिए,गलती हुई।"
मेरा मन उछल पड़ा-"सच.................।"
मैं खुश हो गया था कि मेरे अपने बेटे ने नहीं तोड़ा है।

Views: 833

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on September 4, 2012 at 6:05pm
आदरणीय बागी जी पूज्य गुरुदेव श्री सौरभ जी रचना की प्रतिक्रिया पर देर से आने के लिए क्षमा प्रार्थी हूं।आपने बालक के प्रयास को सराहा,बालक अभिभूत है।आप सबका हार्दिक आभार।
Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on September 4, 2012 at 6:02pm
आदरणीय लक्ष्मण,संदीप पटेल भाई,संदीप द्विवेदी,कुमार गौरव जी,फूल सिंह जी,राक्तले जी,आदरणीया राजेश कुमारी जी आप सभी गुरुजनों को बालक की बचकानी रचना को सराहना हेतु हार्दिक आभार।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 4, 2012 at 5:42pm

लोग दोहरे मापदंड में जीते हैं बखूबी चित्रण किया कहानी में बधाई आपको 


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on September 4, 2012 at 3:48pm

अग्रज लडीवाला जी, ओबीओ पर उदीयमान साहित्यकारों का उचित मार्गदर्शन करना हमारा मुख्य उद्देश्य रहा है. इसी कारण अनुज विन्ध्येश्वरी प्रसाद जी को अपनी बेबाक राय से अवगत करवाना अपना फ़र्ज़ समझा. आपको तो अपनी रचनायों पर दया ही आती होगी मुझे तो ओबीओ के साथ जुडने से पहले कही गई अपनी ग़ज़लों पर रोना आता है.

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on September 4, 2012 at 3:17pm
आदरणीय योगराज प्रभाकर जी ने कहानी को लघु करते हुए कहानी की सम्पूर्ण बात भी कहकर, जो शिक्षित किया है, उससे मेरे को मेरी अब तक की कहानियो पर दया आ रही है | इस महान शिक्षक दिवस पर साहित्य जगत के शिक्षक को सदर नमन

प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on September 4, 2012 at 2:47pm

भाई विन्ध्येश्वरी जी, लघुकथा कहने का सद्प्रयास हुआ है. जिसके लिए आप बधाई के पात्र हैं. रचना अभी भी बहुत सारी कसावट मांग रही है. लघुता क्योंकि इस विधा की विशष्ट है अत: यह ज़रूरी हो जाता है कि इसमें एक भी शब्द फालतू न कहा जाये ताकि कहानी कसी हुई रहे. दरअसल, लघुकथा में जो कहा जाता है वह तो महत्वपूर्ण होता ही है, उस से भी ज्यादा महत्वपूर्ण होता है जो नहीं कहा गया हो. "जो नहीं कहा गया" को दो तरीके से समझा जा सकता है:

१. वह बात जिसको केवल इशारे में कहा गया हो.
२. वह बात जो अगर न ही/भी कही जाती तो बेहतर होता
.
अब आपकी इसी लघुकथा की बात करते हैं, इसकी पहली पंक्ति देखिए:

//जब मैं बाजार से लौटकर आया तो देखा कि पड़ोसी के बच्चे मेरी खिड़की के पास खड़े हैं।//
आप बाज़ार से आए या कहीं और से यह बताने की आवाश्यकता नहीं थी, इतने से ही काम चल सकता था. 
//पड़ोसियों के बच्चे मेरी खिड़की के पास खड़े हैं।//

//लगता है इन कमबख्तों ने खिड़की का शीशा तोड़ दिया,इनके बाप से वसूलता शीशे का दाम"-मैंने सोचा।
जब मैं खिड़की के पास पहुंचा तो देखा कि वास्तव में शीशा टूटा हुआ है।अब तो मेरा रोष सातवें आसमान पर पहुंच गया।// क्या इतना कहने से काम न चल जाता? 

//पास पहुंचा तो देखा कि मेरी खिड़की का शीशा टूटा हुआ था, जिसे देखकर मेरा गुस्सा सातवें आसमान पर पहुँच गया//

//मैंने डपटकर पूछा-"किसने तोड़ा है इसे?.........मेरा मुंह क्या देख रहो सब? जवाब दो।"सभी बच्चे डर गये।/// अगर इसे यूं कहा जाए:

//मैंने डपटकर पूछा-"किसने तोड़ा है इसे?
सभी बच्चे डर गये।

//तब तक मेरी नजर वहीं पास खड़े मेरे अपने बेटे मनीष पर गई,मैं डर गया कि "कहीं इसने तो नहीं तोड़ा,फिर मैं शीशे का दाम कैसे वसूल करूंगा।और बेइज्जती अलग से।"// अपने बेटे का ज़िक्र इस जगह करके आपने कहानी का आधा स्वाद खराब कर दिया. उसका जो ज़िक्र अंत में किया है वही काफी था अपनी बात कहने के लिए.

बाक़ी कहानी ठीक ठाक है. लघुकता कहते समय यदि इन छोटी छोटी बातों का ध्यान रखेंगे तो रचना का प्रभाव कई गुना हो जायेगा. सस्नेह

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on September 4, 2012 at 12:40pm

वाह वाह भाई विन्ध्यश्वरी जी सार्थक चोट करती हुई रचना बधाई हो आपको इस उन्नत रचना हेतु

Comment by Ashok Kumar Raktale on September 4, 2012 at 12:37pm

क्रोध को पानी कर देने वाली सुन्दर लघुकथा. बधाई.

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on September 4, 2012 at 11:17am

इंसानी फ़ितरत का सटीक चित्रण त्रिपाठी जी! साभार,

Comment by PHOOL SINGH on September 4, 2012 at 10:52am

त्रिपाठी जी नमस्कार,,,,,

सुंदर कहानी...........बधाई...

फूल सिंह

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीया प्राची दीदी जी, आपको नज़्म पसंद आई, जानकर खुशी हुई। इस प्रयास के अनुमोदन हेतु हार्दिक…"
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। सादर"
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय सुरेश कल्याण जी, आपके प्रत्युत्तर की प्रतीक्षा में हैं। "
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आभार "
2 hours ago

मुख्य प्रबंधक
Er. Ganesh Jee "Bagi" replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय, यह द्वितीय प्रस्तुति भी बहुत अच्छी लगी, बधाई आपको ।"
2 hours ago

मुख्य प्रबंधक
Er. Ganesh Jee "Bagi" replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"वाह आदरणीय वाह, पर्यावरण पर केंद्रित बहुत ही सुंदर रचना प्रस्तुत हुई है, बहुत बहुत बधाई ।"
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आ. भाई हरिओम जी, सादर आभार।"
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आ. भाई हरिओम जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर बेहतरीन कुंडलियाँ छंद हुए है। हार्दिक बधाई।"
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आ. भाई हरिओम जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर बेहतरीन छंद हुए है। हार्दिक बधाई।"
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आ. भाई तिलक राज जी, सादर अभिवादन। आपकी उपस्थिति और स्नेह से लेखन को पूर्णता मिली। हार्दिक आभार।"
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आ. भाई सुरेश जी, हार्दिक धन्यवाद।"
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आ. भाई गणेश जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और स्नेह के लिए आभार।"
2 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service