For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

अनछुआ चैतन्य

क्या याद हैं
तुम्हें
वो लम्हे,
जब
हम तुम मिले थे ?

तब सिर्फ़
एक दूसरे को
ही नहीं सुना था हमने,
बल्कि,
सुना था हमने
उस शाश्वत खामोशी को
जिसने
हमें अद्वैत  कर दिया था....

तब सिर्फ़ 
सान्निध्य  को
ही नहीं जिया था हमने,
बल्कि,
जिया था हमने  
उस शून्यता को
जो रचयिता है
और विलय भी है
संपूर्ण सृष्टि की....

मेरे पास
कुछ न था
तुम्हें देने को
सिवाय अपनी चेतना के,
और तुम्हारे पास भी
सिर्फ़ चेतना ही तो थी
जिसे बाँटा था हमने
एक दूसरे से....

तब से
ये
‘अनछुआ चैतन्य’
ही तो है
जो ले जा रहा है हमें
अज्ञान के अन्धकार  से दूर
एक नयी दृष्टि के साथ
सत्य के और करीब…

(23-02-2012)

Views: 707

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on July 12, 2012 at 2:41pm

आपका बहुत बहुत आभार आ. सीमा जी आपने इस रचना की गहनता व चिंतन को मान दिया.
इस रचना को पसंद करने के लिए आपका हार्दिक आभार.

Comment by Arun Sri on July 12, 2012 at 2:03pm

मेरे पास
कुछ न था
तुम्हें देने को
सिवाय अपनी चेतना के,
और तुम्हारे पास भी
सिर्फ़ चेतना ही तो थी
जिसे बाँटा था हमनें
एक दूसरे से.... .......... अतिशय गहन और सुन्दर कविता ! हर बार की तरह !


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on July 12, 2012 at 2:02pm
प्रिय अरुण शर्मा जी,
इस रचना को आपने पसंद किया आपका बहुत बहुत आभार.

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on July 12, 2012 at 2:01pm
प्रिय संदीप पटेल जी,
इस कविता की शून्यता को, खामोशी को, गुफ्तगू को, यादों को सबको अनुमोदित करने के लिए आपका हार्दिक आभार. सादर.

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on July 12, 2012 at 1:58pm
आदरणीय अलबेला जी
इस कविता को पसंद करने के लिए आपका हार्दिक आभार.
 
आप अनुरोध कर रहे हैं, आप सम अग्रज का तो आदेश भी सर आँखों पर..
आपने अपना बेशकीमती वक़्त देकर टंकण त्रुटियों को ससंशोधन इंगित किया, आपका बहुत बहुत आभार...
 
अन्ना की तरह अनशन करने की क्या जरूरत  है, अन्ना अपनों के खिलाफ थोड़े ही अनशन करते हैं, OBO परिवार में अग्रजों, गुणीजनों और गुरुजनों का हर आदेश सर्वमान्य ही होता है.
 
सादर.
Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on July 12, 2012 at 12:03pm

सुन्दर भाव पूर्ण रचना के लिए आपको बधाई
शून्यता का आभाष होता है कुछ पंक्तियों में
खामोशी स्वर लहरी सुनाई देती है
यादों की स्वर्णिम तस्वीर भी दिखाई देती है
गुफ्तगू के पल गुफ्तगू करते नज़र आते हैं

वाह वाह 

Comment by अरुन 'अनन्त' on July 12, 2012 at 11:46am

वाह प्राची जी कमाल की रचना है, बहुत खूब बधाई

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on July 12, 2012 at 11:11am

अति सुन्दर! बधाई स्वीकार करें!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 12, 2012 at 9:57am

दुबारा पढ़ी   ये रचना सम्रद्ध भाव से परिपूर्ण इस अनुपम रचना के लिए बधाई प्राची जी 

Comment by Albela Khatri on July 12, 2012 at 9:10am

आदरणीय डॉ प्राची सिंह जी.......
बहुत बहुत बधाई आपको इस अनुपम कविता के लिए
सचमुच शानदार रचना है

___संयोग से  टंकण में कुछ अशुद्धियाँ  हो गयी हैं ये दूर कर लेंगे तो  और अच्छा हो जायेगा ऐसा मेरा विनम्र अनुरोध है ...अगर आप मान लेंगे तो ठीक वर्ना  कोई बात नहीं........मैं कोई अन्ना हज़ारे तो हूँ नहीं जो अनशन पर बैठ जाऊं अपनी मांग भरवाने  ( मनवाने ) के लिए  :-)

__वाह !
बहुत खूब रचना !!!!!!

क्या याद हैं ____________है
तुम्हे _________________तुम्हें
वो लम्हे
जब
हम तुम मिले थे
तब सिर्फ़
एक दूसरे को
ही नही सुना था हमने
बल्कि
सुना था हमनें _____________हमने
उस शाश्वत खामोशी को
जिसने
हमें अद्वेत कर दिया था....
तब सिर्फ़
सानिध्य को _______________सान्निध्य
ही नहीं जिया था हमनें _________हमने
बल्कि
जिया था हमनें ________हमने
उस शून्यता को
जो रचयिता है
और विलय भी है
संपूर्ण सृष्टि की....

मेरे पास
कुछ न था
तुम्हें देने को
सिवाय अपनी चेतना के,
और तुम्हारे पास भी
सिर्फ़ चेतना ही तो थी
जिसे बाँटा था हमनें _______हमने
एक दूसरे से....

तब से
ये

‘अनछुआ चैतन्य’
ही तो है
जो ले जा रहा है हमें
अज्ञान के अंधकार से दूर __________अन्धकार
एक नयी दृष्टि के साथ
सत्य के और करीब…

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आपने कविता में संदर्भ तो महत्वपूर्ण उठाए हैं, उस दृष्टि से कविता प्रशंसनीय अवश्य है लेकिन कविता ऐसी…"
21 minutes ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
" पर्यावरण की इस प्रकट विभीषिका के रूप और मनुष्यों की स्वार्थ परक नजरंदाजी पर बहुत महीन अशआर…"
2 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"दोहा सप्तक में लिखा, त्रस्त प्रकृति का हाल वाह- वाह 'कल्याण' जी, अद्भुत किया…"
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीया प्राची दीदी जी, रचना के मर्म तक पहुंचकर उसे अनुमोदित करने के लिए आपका हार्दिक आभार। बहुत…"
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी इस प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक धन्यवाद। सादर"
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी बहुत बहुत धन्यवाद आपका मेरे प्रयास को मान देने के लिए। सादर"
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"वाह एक से बढ़कर एक बोनस शेर। वाह।"
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"छंद प्रवाह के लिए बहुत बढ़िया सुझाव।"
3 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"मानव के अत्यधिक उपभोगवादी रवैये के चलते संसाधनों के बेहिसाब दोहन ने जलवायु असंतुलन की भीषण स्थिति…"
3 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
" जलवायु असंतुलन के दोषी हम सभी हैं... बढ़ते सीओटू लेवल, ओजोन परत में छेद, जंगलों का कटान,…"
3 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आग लगी है व्योम में, कहते कवि 'कल्याण' चहुँ दिशि बस अंगार हैं, किस विधि पाएं त्राण,किस…"
4 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"भाई लक्षमण जी एक अरसे बाद आपकी रचना पर आना हुआ और मन मुग्ध हो गया पर्यावरण के क्षरण पर…"
4 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service