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नीलवर्ण ब्रह्मांड के विस्तार का ही द्योतक है और बिम्बवत् उसे ऐसा ही कहते भी हैं. और कृष्ण वर्ण समयाभाव का या समयशून्यता का प्रतीक है. नीलवर्ण और कृष्ण वर्ण के प्रतीक हमारे वाङ्गमय में स्पष्टतः उद्येश्यपरक हैं और दोनों वर्ण जिनसे जोड़े गये हैं वह चैतन्यस्वरूप का चरम है. सही या न-सही के मध्य चयन हेतु अविश्वसनीय विवेक है. उसके मार्ग पर दिशा स्वयं विवेक इंगित करता है. यही उस चेतना का के लिये पथ भी है.
सादर
डा. प्राची, चेतना अन्तःकरण के ग्राही सदृश चित्त में सकारात्मक वृत्तियों का कुल प्रयास है जिसे धार कर मनुष्य दिव्य पथ की ओर अग्रसरित होता है. आपका मनन उस चेतना प्रक्रिया के प्रयास का बखान कर रहा है. प्रयासरत रहें. कुछ और आयाम स्पष्ट होंगे.
सादर शुभकामनाएँ
आ. लक्ष्मण लाडिवाला जी, इन शब्दों के एहसास में क्षण-भर ठहरने के लिए आपका हार्दिक आभार.
तत्क्षण...
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