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संकुचित पर्यावरण हो रहा बाबाजी

यह जो शहरीकरण हो रहा बाबाजी

हरियाली का  हरण हो रहा बाबाजी

चीलें, कौए, चिड़ियाँ, तोते, तीतर संग
वनजीवन का मरण हो रहा बाबाजी

भौतिक सुविधाओं को तो विस्तार मिला
संकुचित पर्यावरण हो रहा बाबाजी

पेड़ काट कर, मानव मानो अपनी ही
हत्या का उपकरण हो रहा बाबाजी

इसका दुष्परिणाम देखिये घर-घर में
रोगों का अवतरण हो रहा बाबाजी

ख़बरदार ! कुदरत का क्रोध रुला देगा
उसके विरुद्ध आचरण हो रहा बाबाजी

तुम मेरी आँखों से देखो "अलबेला"
सकल सृष्टि का क्षरण हो रहा बाबाजी


JAI HIND !

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Comment

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Comment by Nilansh on June 7, 2012 at 12:43am

पेड़ काट कर, मानव मानो अपनी ही 
हत्या का उपकरण हो रहा बाबाजी 

इसका दुष्परिणाम देखिये घर-घर में 
रोगों का अवतरण हो रहा बाबाजी 

 

albela ji aapki ghazal ke liye bahut badhai

aur ek acchi udaharan ko darshati hui is rachna ke liye saadhuvad

Comment by आशीष यादव on June 7, 2012 at 12:38am
बहुत ही अच्छी गज़ल की रचना। बहुत अच्छी बताया आपने इस कृति मेँ। बधाई स्वीकारेँ
Comment by Albela Khatri on June 6, 2012 at 11:22pm

धन्यवाद रेखा जोशी जी.............हार्दिक हार्दिक आभार आपकी सराहना के लिए

Comment by Albela Khatri on June 6, 2012 at 11:20pm

बन्धुवर उमाशंकर  मिश्रा जी, आपके शब्दों ने बड़ा उत्साह दिया है .
आभार.........दिली शुक्रिया

Comment by UMASHANKER MISHRA on June 6, 2012 at 11:08pm

अत्यंत जागरूकता भरा काव्य 

एक बहुत ही  जरुरी अभियान को पंख लगाती कविता 

पूरी दुनिया को सीख देती है ,कटु सत्य परन्तु  पूरी दुनिया पर व्यंग करती रचना 

भाई अलबेला जी हार्दिक स्नेह युक्त बधाई 

Comment by Rekha Joshi on June 6, 2012 at 10:43pm

Albela ji ,

पेड़ काट कर, मानव मानो अपनी ही 
हत्या का उपकरण हो रहा बाबाजी ,baba ji bahut khub likha hae ,badhai 

Comment by Albela Khatri on June 6, 2012 at 6:20pm

आपकी बधाई  सहेज ली है  राजेश कुमारी जी
धन्यवाद ......
आभार  इस प्रोत्साहन के लिए


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 6, 2012 at 4:36pm

यह भी शानदार   जानदार  पीस है बाबाजी ...बहुत बहुत बधाई 

Comment by Albela Khatri on June 6, 2012 at 2:06pm

aapka dhnyavaad Pradeep Kumar Singh Kushwaha ji.........

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on June 6, 2012 at 1:29pm

शाश्वत मूल्यों का क्षरण हो रहा बाबा जी.

बधाई.

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