For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल : है मरना डूब के मेरा मुकद्दर भूल जाता हूँ

है मरना डूब के मेरा मुकद्दर भूल जाता हूँ
तेरी आँखों में भी है एक सागर भूल जाता हूँ

ये दफ़्तर जादुई है या मेरी कुर्सी तिलिस्मी है
मैं हूँ जनता का एक अदना सा नौकर भूल जाता हूँ

हमारे प्यार में इतना तो नश्शा अब भी बाकी है
पहुँचकर घर के दरवाजे पे दफ़्तर भूल जाता हूँ

तुझे भी भूल जाऊँ ऐ ख़ुदा तो माफ़ कर देना
मैं सब कुछ तोतली आवाज़ सुनकर भूल जाता हूँ

न जी सकता हूँ तेरे बिन, न मरने दे तेरी आदत
दवा हो या जहर दोनों मैं रखकर भूल जाता हूँ

Views: 644

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 22, 2012 at 5:54pm

बहुत बहुत शुक्रिया राणा भाई


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Rana Pratap Singh on April 22, 2012 at 1:33pm

बहुत खूब धर्मेन्द्र भैया

सारे शेर कमाल के है..कई दिनों बाद नगीना हाथ लगा है| ढेर सारी दाद कबूलिये|

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 22, 2012 at 1:19am

वीनस जी, राजेश कुमारी जी, बागी जी, प्रदीप जी, सौरभ जी, संदीप जी, महिमा जी एवं वंदना जी इस असीम प्यार एवं उत्साहवर्द्धन के लिए आप सबका हृदय से धन्यवाद

Comment by MAHIMA SHREE on April 21, 2012 at 3:03pm
ये दफ़्तर जादुई है या मेरी कुर्सी तिलिस्मी है
मैं हूँ जनता का एक अदना सा नौकर भूल जाता हूँ......

वाह !!! सर क्या बात कही ..इतने कम शब्दों में आपने नेताओं की कुर्सी प्रेम का असली कारण बता दिया :)
हरेक पंक्तिया लाजवाब ..बधाई आपको
Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on April 21, 2012 at 1:17pm

आदरणीय धर्मेन्द्र जी,

वाह-वाह, बहुत ख़ूब, क्या बात है!! इससे ज़्यादा कुछ कहना मेरे वश में नहीं है| साभार,


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on April 21, 2012 at 1:02pm

वाह भाई वीनस जी.. .   :-)))))

यह भी चस्पाँ कर देना था  .. और परियोजना पूरी हुई..   हा हा हा हा हा हा ...................

खैर मज़ाक अलग .. आपका अंदाज़ प्यारा लगा .. मैं भी अपनाऊँगा.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on April 21, 2012 at 12:58pm

लीजिये इस ग़ज़ल को मैं अभी ओबीओ पर देख पा रहा हूँ. अच्छा हुआ कि यह यहाँ दिख गयी. वर्ना इन्हीं मिसरों पर अन्य सामाजिक पटल पर वाह-वाह करने के क्रम में मैं खुद में खौल रहा था.     :-))))))

बहुत बहुत बधाई कह चुका हूँ.

ये दफ़्तर जादुई है या मेरी कुर्सी तिलिस्मी है
मैं हूँ जनता का एक अदना सा नौकर भूल जाता हूँ  ....    इस शे’र की तासीर पर हज़ार मुबारकें.. ..

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on April 21, 2012 at 11:21am

तुझे भी भूल जाऊँ ऐ ख़ुदा तो माफ़ कर देना
मैं सब कुछ तोतली आवाज़ सुनकर भूल जाता हूँ 

bahut sundar gajal. bahut sundar andaj  sir ji badhai. aanand aa gaya.


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on April 21, 2012 at 10:18am

हमारे प्यार में इतना तो नश्शा अब भी बाकी है
पहुँचकर घर के दरवाजे पे दफ़्तर भूल जाता हूँ

वाह वाह, जबरदस्त, बहुत ही उम्दा ख्याल धर्मेन्द्र जी, सभी शेर बहुत ही प्यारे लगे, कुल मिलाकर एक शानदार ग़ज़ल, दाद कुबूल करें |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 21, 2012 at 7:44am

वाह धर्मेन्द्र जी अपनी आदत को खूबसूरत ग़ज़ल की शक्ल दे डाली आपने इन खूबसूरत आदतों और खूबसूरत ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई |

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

धर्मेन्द्र कुमार सिंह posted a blog post

जो कहता है मज़ा है मुफ़्लिसी में (ग़ज़ल)

1222 1222 122-------------------------------जो कहता है मज़ा है मुफ़्लिसी मेंवो फ़्यूचर खोजता है लॉटरी…See More
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सच-झूठ

दोहे सप्तक . . . . . सच-झूठअभिव्यक्ति सच की लगे, जैसे नंगा तार ।सफल वही जो झूठ का, करता है व्यापार…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर posted a blog post

बालगीत : मिथिलेश वामनकर

बुआ का रिबनबुआ बांधे रिबन गुलाबीलगता वही अकल की चाबीरिबन बुआ ने बांधी कालीकरती बालों की रखवालीरिबन…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक ..रिश्ते
"आदरणीय सुशील सरना जी, बहुत बढ़िया दोहावली। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर रिश्तों के प्रसून…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"  आदरणीय सौरभ जी सादर प्रणाम, प्रस्तुति की सराहना के लिए आपका हृदय से आभार. यहाँ नियमित उत्सव…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा पाण्डे जी सादर, व्यंजनाएँ अक्सर काम कर जाती हैं. आपकी सराहना से प्रस्तुति सार्थक…"
Sunday
Hariom Shrivastava replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"आपकी सूक्ष्म व विशद समीक्षा से प्रयास सार्थक हुआ आदरणीय सौरभ सर जी। मेरी प्रस्तुति को आपने जो मान…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"आपकी सम्मति, सहमति का हार्दिक आभार, आदरणीय मिथिलेश भाई... "
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"अनुमोदन हेतु हार्दिक आभार सर।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन।दोहों पर उपस्थिति, स्नेह और मार्गदर्शन के लिए बहुत बहुत आभार।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ सर, आपकी टिप्पणियां हम अन्य अभ्यासियों के लिए भी लाभकारी सिद्ध होती रही है। इस…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक आभार सर।"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service