For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कवि ताक रहा है फूल

कवि ताक रहा है फूल 

 

श्याम बिहारी श्यामल

अँटा पड़ा है
मटमैला आँचल सदी का
क्षत-विक्षत लाशों से
तब्दील हो रहे हैं
तेज़ी से पंजे
तमाचों में

सवाल बनते जा रहे हैं
एक साथ
पेड़ और बच्चे
कविता में उग रही है
उलाहना
सूरज और हवा के खिलाफ भी

कवि ताक रहा है फूल
और जल रहा है
तेज़ ताप से
पंछी के बज रहे हैं
पंख और ठोर
सिहर रही है भोर

...और तब भी
ज़िंदा हूँ मैं
बचे हुए हैं आप
धड़क रही है धरती
यही क्या कम है !
तख़्त के शैतान को
इसी का बहुत ग़म है !

Views: 1930

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Lata R.Ojha on December 5, 2011 at 3:39pm

आपकी रचना ’कवि ताक रहा है फूल’ को इस माह की सर्वश्रेष्ठ रचना चयनित होने पर मेरी हार्दिक बधाइयाँ.आदरणीय श्यामल जी :)


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on December 3, 2011 at 7:26pm

//सवाल बनते जा रहे हैं
//एक साथ
पेड़ और बच्चे
कविता में उग रहा है//

आदरणीय श्यामल जी, जवाब नहीं. इतना कसा हुआ शिल्प और इतना सधा हुआ कथ्य. इस सुंदर काव्य अभिव्यक्ति के लिए मेरी हार्दिक बधाई स्वीकार करें.

Comment by Shyam Bihari Shyamal on November 29, 2011 at 6:58am

' कवि‍ ताक रहा फूल ' पर आपकी प्रति‍क्रि‍या से ताकत मि‍ली है अरुण जी... हृदय से आभार... 

Comment by Abhinav Arun on November 28, 2011 at 8:41pm

कमाल है वाह इतनी सशक्त रचना को कहाँ छुपा कर रखा था आपने श्यामल जी आपका आना और वो भी इस सुखद और सशक्त अंदाज़ में वाह !! कविता का हर अंश अपने आपमें एक विस्तृत समीक्षा का हकदार है --

परन्तु इसके क्या कहने -

सवाल बनते जा रहे हैं
एक साथ
पेड़ और बच्चे
कविता में उग रही है
उलाहना
सूरज और हवा के खिलाफ भी

कवि ने सच और समाज को जीया है और तब इन प्रश्नों से टकराया है और उसी की प्रतिध्वनि है ये काव्य  रचना हार्दिक साधुवाद !!

Comment by Shyam Bihari Shyamal on November 27, 2011 at 8:31am

आभार मि‍त्रवर गणेशजी बागी भाई और सतीश मापतपुरी जी... आपलोगों के स्‍नेह-समर्थन ने मुझे रचनात्‍मक ऊर्जा से भर दि‍या है... अनौपचारि‍क धन्‍यवाद...  


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on November 26, 2011 at 11:32pm

धड़क रही है धरती
यही क्या कम है !
तख़्त के शैतान को
इसी का बहुत ग़म है

बहुत ही उम्दा कविता, शब्द मोती की भाति गुथे हुए, कथ्य और शिल्प सधे हुए, बहुत बहुत बधाई और आभार आदरणीय श्यामल जी |

Comment by satish mapatpuri on November 26, 2011 at 7:05am

...और तब भी
ज़िंदा हूँ मैं
बचे हुए हैं आप
धड़क रही है धरती
यही क्या कम है !
तख़्त के शैतान को
इसी का बहुत ग़म है !

सुन्दर .............. अति सुन्दर ............  साधुवाद श्यामल जी

Comment by Shyam Bihari Shyamal on November 26, 2011 at 5:28am

'कवि‍ ताक रहा है फूल' शीर्षक कवि‍ता पर माननीय मि‍त्रों में सर्वश्री सौरभ पाण्‍डेय जी, अश्‍वि‍नी रमेश जी और आशीष यादव जी की त्‍वरि‍त और उत्‍साहवर्द्धक प्रति‍क्रि‍याओं से अभि‍भूत हूं। इससे मुझे अकूत रचनात्‍मक ऊर्जा मि‍ली है। आप सभी मि‍त्रों का अनौपचारि‍क हार्दि‍क आभार...  


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on November 25, 2011 at 2:18pm

भाई श्यामलजी का उनकी रचना के साथ स्वागत है. 

आज के समाज के प्रति संदेश तथा वर्तमान व्यवस्था के संवेदनाहीन और अदूरदर्शी कदम के प्रति मुखर संदेह को अभिव्यक्ति देती इस रचना की हर पंक्ति सधी हुई और संयत है. साहित्य का लक्ष्य ही मनुष्य होता है. जो साहित्य आम आदमी की भावनाओं को स्वर देने में संकोच करने लगे वह साहित्य सच्चा साहित्य ही नहीं. मनुष्य और उसका परिवेश ही जब खतरे में पड़ जाय तो एक संवेदनशील कवि का हृदय कैसे चुप रह सकता है?

//सवाल बनते जा रहे हैं
एक साथ
पेड़ और बच्चे
कविता में उग रहा है//

 

शिल्प, भाव तथा शब्द तीनों विन्दुओं के मानकों पर खरी इस रचना के लिये श्यामलजी को मेरी हार्दिक बधाइयाँ.

 

Comment by आशीष यादव on November 25, 2011 at 10:23am

bahut khub shyamal sir ji,

aaj ki vyawastha ko sundar tarike se spasht kiya hai aapne. 

तब्दील हो रहे हैं/तेज़ी से पंजे/तमाचों में

bilkul sahi likha hai aapne|

ज़िंदा हूँ मैं/बचे हुए हैं आप/धड़क रही है धरती
यही क्या कम है !/तख़्त के शैतान को/इसी का बहुत ग़म है !

ye raaj karne wale yahi soch rahe hai.

naman aapki lekhni ko.

 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। आपने सही कहा…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"जी, शुक्रिया। यह तो स्पष्ट है ही। "
Tuesday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"सराहना और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय उस्मानी जी"
Tuesday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"लघुकथा पर आपकी उपस्थित और गहराई से  समीक्षा के लिए हार्दिक आभार आदरणीय मिथिलेश जी"
Tuesday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आपका हार्दिक आभार आदरणीया प्रतिभा जी। "
Tuesday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"लेकिन उस खामोशी से उसकी पुरानी पहचान थी। एक व्याकुल ख़ामोशी सीढ़ियों से उतर गई।// आहत होने के आदी…"
Tuesday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"प्रदत्त विषय को सार्थक और सटीक ढंग से शाब्दिक करती लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय…"
Tuesday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदाब। प्रदत्त विषय पर सटीक, गागर में सागर और एक लम्बे कालखंड को बख़ूबी समेटती…"
Tuesday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीय मिथिलेश वामनकर साहिब रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर प्रतिक्रिया और…"
Tuesday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"तहेदिल बहुत-बहुत शुक्रिया जनाब मनन कुमार सिंह साहिब स्नेहिल समीक्षात्मक टिप्पणी और हौसला अफ़ज़ाई…"
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीया प्रतिभा जी प्रदत्त विषय पर बहुत सार्थक और मार्मिक लघुकथा लिखी है आपने। इसमें एक स्त्री के…"
Tuesday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"पहचान ______ 'नवेली की मेंहदी की ख़ुशबू सारे घर में फैली है।मेहमानों से भरे घर में पति चोर…"
Tuesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service