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ग़ज़ल....उदास हैं कितने - बृजेश कुमार 'ब्रज'

बह्र-ए-मुजतस मुसमन मख़बून महज़ूफ
मुफ़ाइलुन फ़इलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन
1212  1122  1212  112/22

ये सर्द रात, हवाएं  उदास  हैं कितने
किसे जगा के बताएं उदास हैं  कितने

क़ज़ा खड़ी है यहीं सामने शिफ़ा लेकर
हमीं न दार पे  जाएं, उदास हैं कितने

रखो न ज़ेहन को अय जान कर्ब-आलूदा
न कर्ब-ज़ा ही दिखाएं, उदास हैं कितने

मुझे न बख़्श सकेगा सुकूत-ए-दिल मेरा
भले  ही जान से जाएं, उदास हैं कितने

मुझे पता है भली-भाँति ढब उदासी का
मुझे न आप बताएं  उदास  हैं कितने

रुका न रोकने से 'ब्रज' उदासियों में कोई
जो जा रहे हैं वो जाएं ,उदास हैं कितने

क़ज़ा-मृत्यु, शिफ़ा-दवा
दार-फाँसी का तख्ता
कर्ब-आलूदा-दुख से भरा हुआ
कर्ब-ज़ा-बेचैनी
सुकूत-ए-दिल-हृदय का सन्नाटा

(मौलिक एवं अप्रकाशित)
बृजेश कुमार 'ब्रज'

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Comment

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Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' yesterday

आदरणीय गिरिराज जी उत्साहवर्धन के लिए आपका बहुत-बहुत आभार और नमन करता हूँ...आपसे आदरणीय नीलेश जी आदरणीय धामी जी से पूर्णतया सहमत हूँ बस थोड़ी उत्सुकता है जिसे पहले कमेंट में लिखा है। 

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' yesterday

आदरणीय नीलेश जी सर्व प्रथम रचना पटल पे उपस्थिति के लिए आपका हार्दिक आभार....वैसे ये दोष इतना बारीक़ नहीं है कि नज़र न पड़े लेकिन सच यही है कि आपके इंगित करने पे ही ध्यान में आया। 

ये साफ तौर से मेरी लापरवाही है उसके लिए क्षमा प्रार्थी हूँ पटल से क्योंकि इतने समय बाद स्त्रीलिंग-पुल्लिंग का ध्यान तो होना ही चाहिए। 
इसे सुधारा जा सकता है लेकिन अब कुछ उत्सुकता है जैसे 'स्त्रीलिंग' के लिए 'कितनी' और 'पुल्लिंग' के लिए 'कितना' का प्रयोग होता है तो क्या 'स्त्रीलिंग हो या पुल्लिंग' के बहुवचन के लिए 'कितने' का प्रयोग नहीं किया जा सकता ?
जबकि 'मतले में 'रात' एकवचन और 'हवाएं' बहुवचन का प्रयोग हुआ है।
मेरी उत्सुकता को मैं ठीक से कह नहीं पा रहा ....
जैसे हम अपने किसी 'बड़े' को सम्मान की दृष्टि से सम्बोधन में बहुवचन का प्रयोग करते हैं...कुछ ऐसा शायद....
Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on Tuesday

आ. भाई वृजेश जी, अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।

मतले में यदि उन्हें सम्बोधित कर रहे हैं तो "हवाओ" करने से दोष हट जायेगा। यदि इनके उदास होने की बात कर रहे हैं तो जैसे गुणीजन कह रहे हैं क्रिया में लिंग दोष आ रहा है देखिएगा।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on Tuesday

अनुज बृजेश , पूरी ग़ज़ल बहुत खूबसूरत हुई है , हार्दिक बधाई स्वीकार करें 
मतले के उला में मुझे भी संदेह है , लिंग दोष का , आप गुनिजन का इन्तिज़ार कर सकते हैं 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on Tuesday

आ. बृजेश ब्रज जी,

अच्छी ग़ज़ल हुई है. बधाई स्वीकार करें.
मतले के ऊला में 
ये सर्द रात, हवाएं  उदास  हैं कितने रात और हवा दोनों स्त्रीलिंगी हैं अत: उदास हैं कितनीं आना चाहिए शायद.
शेष शुभ 
सादर 

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