For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल : आईना उसे सच का दिखा क्यों नहीं देते


221 1221 1221 122

बातिल को नज़र से ही गिरा क्यों नहीं देते
आईना उसे सच का दिखा क्यों नहीं देते//1

अब ऐब तुम्हारा तो नज़र आने लगा है
अफ़वाह नई कोई उड़ा क्यों नहीं देते//2

क्या बेच नहीं पा रहा अपनी अना को वो
अख़बार कोई उसको पढ़ा क्यों नहीं देते//3

महफ़िल में तमाशा न करो ऐ मेरे मुंसिफ़
क़ातिल तो वहीं पर है सज़ा क्यों नहीं देते//4

क्या प्यार सभी क़ौम से है उसको अभी तक
टीवी पे नई बहस दिखा क्यों नहीं देते//5

वह क़त्ल हुआ आपकी तलवार से तो क्या
इल्ज़ाम उसी पर ही लगा क्यों नहीं देते//6

ग़मगीन भला क्यों हो 'क़मर' ज़ुल्म ओ सितम से
ज़ालिम की कहानी ही मिटा क्यों नहीं देते
//7

--क़मर जौनपुरी

मौलिक अप्रकाशित

Views: 625

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on March 20, 2019 at 12:47pm

ज़नाब जौनपुरी जी बढ़िया ग़ज़ल कही..सादर

Comment by Samar kabeer on March 16, 2019 at 11:45am

ठीक है,रहने दें ।

Comment by क़मर जौनपुरी on March 16, 2019 at 8:08am

मोहतरम,

ऐ मेरे मुंसिफ़, क़ातिल तो वहीं है उसको सज़ा क्यों नहीं देते ।

वाक्य तो यही बन रहा है। भ्रम दूर करने की मेहरबानी करें कि मुन्सिफ एक वचन के साथ देते का प्रयोग कैसे ग़लत है ?

तुम यहां से भाग क्यों नहीं जाते ?

क्या यहां तुम एक वचन के साथ जाते ग़लत होगा ?

Comment by क़मर जौनपुरी on March 16, 2019 at 7:43am

बहुत बहुत शुक्रिया मोहतरम रहनुमाई के लिए।

Comment by Samar kabeer on March 16, 2019 at 7:41am

'निगाहों से गिरा क्यों नहीं देते'

ये एक कॉमन बात है,जो कोई भी कह सकता है,इसे उर्दू में सामने की बात या ज़बान की बात कहते हैं,फ़र्क़ हसरत,और बातिल में है,ग़ौर करें ।

Comment by क़मर जौनपुरी on March 16, 2019 at 7:36am

हसरत को निग़ाहों...

Comment by क़मर जौनपुरी on March 16, 2019 at 7:35am

मोहतरम समर कबीर साहब आदाब।

बहुत बहुत शुक्रिया इस्लाह के लिए।ममनून हूँ आपका।

बातिल को निगाहों से गिरा क्यों नहीं देते,

ये मिसरा हसरत जयपुरी के मिसरे के बहुत क़रीब हो जाएगा- 

हसरत को निगाहें से गिरा क्यों नहीं देते। क्या इससे कोई दिक्कत नहीं है?

Comment by Samar kabeer on March 16, 2019 at 7:25am

जनाब क़मर जौनपुरी जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।

'बातिल को नज़र से ही गिरा क्यों नहीं देते'

इस मिसरे में 'ही' शब्द भर्ती का है,इसलिए चाहें तो मिसरा यूँ कर सकते हैं:-

'बातिल को निगाहों से गिरा क्यों नहीं देते'

'महफ़िल में तमाशा न करो ऐ मेरे मुंसिफ़
क़ातिल तो वहीं पर है सज़ा क्यों नहीं देते'

इस शैर में शुतरगुरबा दोष है,'मुंसिफ' एक वचन और रदीफ़ बहुवचन,ग़ौर करें ।

4

'क्या प्यार सभी क़ौम से है उसको अभी तक'

इस मिसरे में 'क़ौम' को "क़ौमों" करना उचित होगा ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी

२१२२       २१२२        २१२२   औपचारिकता न खा जाये सरलता********************************ये अँधेरा,…See More
2 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा दशम्. . . . . गुरु

दोहा दशम्. . . . गुरुशिक्षक शिल्पी आज को, देता नव आकार । नव युग के हर स्वप्न को, करता वह साकार…See More
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल आपको अच्छी लगी यह मेरे लिए हर्ष का विषय है। स्नेह के लिए…"
3 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति,उत्साहवर्धन और स्नेह के लिए आभार। आपका मार्गदर्शन…"
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय सौरभ भाई , ' गाली ' जैसी कठिन रदीफ़ को आपने जिस खूबसूरती से निभाया है , काबिले…"
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सुशील भाई , अच्छे दोहों की रचना की है आपने , हार्दिक बधाई स्वीकार करें "
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है , दिल से बधाई स्वीकार करें "
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , खूब सूरत मतल्ले के साथ , अच्छी ग़ज़ल कही है , हार्दिक  बधाई स्वीकार…"
4 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - चली आयी है मिलने फिर किधर से ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल  के शेर पर आपकी विस्तृत प्रतिक्रिया देख मन को सुकून मिला , आपको मेरे कुछ…"
4 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, आपसे मिले अनुमोदन हेतु आभार"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service