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रेगिस्तान में    ......

रेगिस्तान में    ...... 

तृषा
अतृप्त
तपन का
तांडव
पानी
मरीचिका सा
क्या जीवन
रेगिस्तान में
ऐसा ही होता है ?

हरियाली
गौण
बचपन
मौन
माँ
बेबस
न चूल्हा , न आटा ,न दूध
भूख़
लाचार
क्या जीवन
रेगिस्तान में
ऐसा ही होता है ?

पेट की आग
भूख का राग
मिटी अभिलाषा
व्यथित अनुराग
पीर ही पीर
नयनों में नीर
सूखी नदिया
सूने तीर
खाली मटके
मांगें पानी
सूखे कुऍं
बस रहे निशानी
क्या जीवन
रेगिस्तान में
ऐसा ही होता है ?

जीवन साथी
हरने व्याधि
चला परदेस
छोड़ के देस
क्योँकि
प्यास
आभास नहीं
भूख
झूठ नहीं
यथार्थ
हर भाव से बड़ा
सच
जीवन
रेगिस्तान में
ऐसा ही होता है

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Sushil Sarna on April 10, 2018 at 7:49pm

आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी ... सृजन के भावों को आत्मीय मान देने का दिल से आभार। 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 9, 2018 at 5:45am

आ. भाई सुशील जी, सुंदर रचना हुई है । हार्दिक बधाई ।

Comment by Sushil Sarna on April 8, 2018 at 3:59pm

आदरणीय  बृजेश कुमार 'ब्रज जी ... सृजन के भावों को आत्मीय मान देने का दिल से आभार। 

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on April 8, 2018 at 1:45pm

हमेशा की तरह एक और बेहतरीन भावपूर्ण रचना आदरणीय..

Comment by Sushil Sarna on April 7, 2018 at 2:25pm

आदरणीय श्याम नारायण वर्मा सृजन को मान देने का दिल से आभार।

Comment by Sushil Sarna on April 7, 2018 at 2:25pm

आदरणीय मोहित मिश्रा जी ... सृजन के भावों को आत्मीय मान देने का दिल से आभार।

Comment by Sushil Sarna on April 7, 2018 at 2:24pm

आदरणीय डॉ सुरेन्द्र कुमार वर्मा जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से शुक्रिया।

Comment by Sushil Sarna on April 7, 2018 at 2:24pm

आदरणीय समर कबीर साहिब, आदाब सृजन के भावों की गहनता को आत्मीय स्वीकृति देती आपकी अनमोल प्रशंसा का दिल से शुक्रिया।

Comment by Shyam Narain Verma on April 7, 2018 at 11:31am
इस सुन्दर प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई
Comment by Samar kabeer on April 6, 2018 at 5:48pm

जनाब सुशील सरना जी आदाब,बहुत ख़ूब वाह, इस उम्दा प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

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