For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

हवा में - डॉo विजय शंकर

हमने एक मकान बनाया ,
सबसे पहले
छत को बनाया ,
चढ़ कर उस पर
उछले-कूदे ,
खूब चिल्लाये ,
नाचे- गाये ,
देख आसमान ,
खूब इतराये ,
लगा , लपक कर
छू लेंगें ,
मुठ्ठी में नभ कर लेंगें ,
और जब नीचे झाँका , देखा ,
अचानक तब घबराये ,
हा , बुनियाद ,
कहाँ छोड़ आये।

मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 1123

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Dr. Vijai Shanker on October 31, 2017 at 7:27am
विशद व्याख्या के लिए आभार , आदरणीय शेख़ शहजाद उस्मानी जी , धन्यवाद , सादर।
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on October 30, 2017 at 11:29pm
समझदार लोगों, चिंतित लोगों की सोच का प्रतिनिधित्व करती बेहतरीन रचना के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत बधाई आदरणीय डॉ. विजय शंकर जी। दुनिया के व्यावसायीकरण/वैश्वीकरण के दौर में लालची लोग विशेष रूप से मानवतावादी संस्कृति की जड़ें कमज़ोर कर रहे हैं/काट रहे हैं, पशुता और शैतानियत की ओर बढ़ रहे हैं। समय रहते सबको जागरूक करने के लिए इस तरह के साहित्यिक सरल सृजन की नितांत आवश्यकता है। सादर।
Comment by Dr. Vijai Shanker on October 29, 2017 at 7:13pm
आभार , आदरणीय ब्रजेश कुमार ब्रज जी , सादर।
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on October 29, 2017 at 11:12am
बहुत सटीक और सार्थक कविता हुई आदरणीय डा. साहब
Comment by Dr. Vijai Shanker on October 26, 2017 at 8:29pm
आदरणीय डॉo आशुतोष मिश्र जी , आपकी सारपूर्ण विशद टिप्पणी के लिए आभार , बधाई के लिए धन्यवाद , सादर।
Comment by Dr Ashutosh Mishra on October 26, 2017 at 5:54pm
आदरणीय विजय सर आपकी रचनाएं चिंतन से भरपूर होती हैं और जहाँ चिंतन है वहां ऐसी ताजगी भी अपेक्षित है।।आपकी रचना उसपर आपकी और आदरणीय समर सर आरिफ जी और सौरभ सर की प्रतिक्रियाओं से बहुत कुछ नया सीखने को मिला रचना पर हरदुक बधाई स्वीकार करें सादर

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 26, 2017 at 10:50am

ऐसी भूल कई जगह पर हुई है. कई पुस्तकों में अनंत ही कर दिया गया है. लेकिन लेखक ने अपना नाम अभिमन्यु अनत ही मान्य करवाया है. अतः यह जानकारी साझा कर लिया.

शुभेच्छाएँ 

Comment by Mohammed Arif on October 26, 2017 at 10:34am

आदरणीय सौरभ पांडे जी आदाब,
आपके द्वारा मॉरीशस के कवि, लेखक के नाम के संदर्भ में अवगत करवाया । मुझे बड़ी प्रसन्नता हुई । लेकिन मैं ध्यानाकर्षण करवाना चाहता हूँ कि:-
(1) म.प्र.की पाठ्यपुस्तक ( म.प्र. राज्य शिक्षा केंद्र भोपाल द्वारा प्रकाशित ) की कक्षा 12 वीं में शामिल पाठ "कुछ कविताएँ"पेज नं.74 पर लेखक का नाम पाठ के अंत में "अभिमन्यु अनंत" ही मुद्रित है । सादर ।

Comment by Dr. Vijai Shanker on October 26, 2017 at 8:43am
आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी , रचना आपको पसंद आई, आपका आभार। आपसे पूर्णतया सहमत हूँ , बात संस्कृति और तथाकथित उन्नति के सभी मार्गों पर चलने की है। मैंने बहुत गौर से देखा है , दुनिया में लोग बहुत आधुनिक हैं , पर अपने सांस्कृतिक मूल्यों , चाहे वे कितने भी पुरातन क्यों न हों , से समझौता नहीं करते हैं , कम से कम दूसरों को देख कर तो बिलकुल नहीं। हम तो शायद अपनी संस्कृति के मूल तत्वों को जानते भी नहीं। फिर तजते जा रहे हैं , मजाक भी बना रहे हैं। आपकी बधाई धन्यवाद , सादर।
Comment by Dr. Vijai Shanker on October 26, 2017 at 8:43am
आदरणीय मोहम्मद आरिफ जी , रचना की इतनी विशद विवेचना के बहुत बहुत आभार। हमारा अपने घर और संस्कृति दोनों के प्रति जो आज के युग का दृष्टिकोण है वह गंभीर रूप से त्रुटिपूर्ण है। घर और संस्कृति का निर्माण प्रकृति पर आधारित होता है , दूसरों को देख कर नहीं। हमारी जलवायु के अनुरूप हवादार , cross veltiletion वाले मकान बनना लगभग बंद हो गए , बिल्डरों के बनाये मकान उसकी आमदनी को उछाल देने के नियमों के अंतर्गत बनाये जाते हैं। बिजली आती नहीं , लोग पूरा घर ए सी कटवा नहीं सकते , घुटन तो होगी ही। नये मकानों में रोशन दान होते ही नहीं , गर्म और दूषित हवा बाहर निकल पाती ही नहीं। जहां घर का केंद्र आँगन हुआ करता था वहां आँगन रहित मकान की श्रृंखला उदित हो रही है। तर्क यह दिया जाता है , यही आधुनिक पैटर्न है , यूरोप से लिया गया है। यह यूरोप के लिए अच्छा है , वहां ठण्ड की वजह से अधिक खुले घर नहीं रख सकते , यह हमारी आवश्यकता नहीं है , पर बिल्डर को लाभदायक है। प्रभाव सामने है। ऐसे मकान रोग और उमस ही दे रहे हैं। पर मूल कारण यह है कि अर्थतंत्र सर्वोपरि होता जा रहा है , जीवन के आधारिक तत्व गौण होते जा रहे हैं।
श्री अभिमन्यु अनत की कविता को प्रस्तुत करने के लिए आभार. बधाई हेतु धन्यवाद , सादर।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपके नजर परक दोहे पठनीय हैं. आपने दृष्टि (नजर) को आधार बना कर अच्छे दोहे…"
6 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"प्रस्तुति के अनुमोदन और उत्साहवर्द्धन के लिए आपका आभार, आदरणीय गिरिराज भाईजी. "
9 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी

२१२२       २१२२        २१२२   औपचारिकता न खा जाये सरलता********************************ये अँधेरा,…See More
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा दशम्. . . . . गुरु

दोहा दशम्. . . . गुरुशिक्षक शिल्पी आज को, देता नव आकार । नव युग के हर स्वप्न को, करता वह साकार…See More
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल आपको अच्छी लगी यह मेरे लिए हर्ष का विषय है। स्नेह के लिए…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति,उत्साहवर्धन और स्नेह के लिए आभार। आपका मार्गदर्शन…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय सौरभ भाई , ' गाली ' जैसी कठिन रदीफ़ को आपने जिस खूबसूरती से निभाया है , काबिले…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सुशील भाई , अच्छे दोहों की रचना की है आपने , हार्दिक बधाई स्वीकार करें "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है , दिल से बधाई स्वीकार करें "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , खूब सूरत मतल्ले के साथ , अच्छी ग़ज़ल कही है , हार्दिक  बधाई स्वीकार…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - चली आयी है मिलने फिर किधर से ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल  के शेर पर आपकी विस्तृत प्रतिक्रिया देख मन को सुकून मिला , आपको मेरे कुछ…"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service