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लघु कथा
खिलते गुलाब

आज बैंक की छुट्टी होने से रोहित घर पर ही था । पड़ोसी वर्मा जी के घर चहल पहल देख कर उसने माँ से पूछा , उन्होंने बताया आज उनकी बेटी का रिश्ता पक्का करने कुछ लोग आ रहे है । ये सुनते ही वो उदास हो गया ,जूही और वो एक दूसरे को शुरू से पसंद करते थे ।
अब जब उसकी नौकरी लग गयी थी तो उसने सोचा था ,माँ को अपनी पसंद बता देगा । जूही भी अपनी माँ को कुछ बता नहीं पायी थी ।वो दिनभर अनमना ही रहा ।
चार बजे तक पड़ोस से आवाज़ें आती रही । फिर सब शांत हो गया । थोड़ी देर बाद वर्मा अंकल व आंटी उनके घर आए ।अंकल ने पापा को बताया कि वो लोग तो बहुत लालची निकले । बहुत दहेज माँग रहे है ।हमने तो मना कर दिया ।
रोहित की माँ बोली "यदि आपको ऐतराज़ न हो तो हमें आपकी जूही रोहित के लिए पसंद है । "
"अरे हमें क्यों इंकार होगा इतना अच्छा दामाद हमें कहाँ मिलेगा । "आंटी ख़ुश होते हुए बोली । "पर आप रोहित से तो पूछ लीजिए । "
पापा बोले ,अरे वो क्या बताएगा ,आज जबसे जूही के रिश्ते के बारे में पता चला है ,उदास घूम रहा है ।उसे सब पसंद है । यही कान लगाए बैठा होगा । पापा की बात सुन कर सब हँसने लगे ।
आँगन में खड़ी जूही व कमरे में बैठे रोहित के दिलों में गुलाब खिल गए थे ।
बरखा शुक्ला
मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by Nita Kasar on June 27, 2017 at 8:36pm
कथा आपकी अच्छी है ।दहेज प्रथा को बढ़ावा देना गलत प्रथा की शुरूआत है ।बधाई आपको आद०बरखा शुक्ला जी ।
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 23, 2017 at 9:35pm

मुझे आपकी बाबत कुछ पता नहीं और शायद पहली रचना भी मैंने यहाँ देखी है मुझे आपका लेखन नया जान पड़ता  है पर भावों का खजाना है आपके पास उसे सहेजने में कुछ वक्त लगेगा. साधुवाद .

Comment by Mohammed Arif on June 21, 2017 at 5:13pm
आदरणीया बरखा शुक्ला जी आदाब, बहुत अच्छी लघुकथा लिखी आपने । इस जैसे कथानक पर तो ढेरों लघुकथाएँ लिखी जा चुकी है । इस कारण कथानक में ताज़गी की कमी खलती है । कुछ नयापन होता तो बेहतर होता । विराम चिह्नों का सही प्रयोगों का भी नितांत अभाव है । बधाई स्वीकार करें ।

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