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अरी जिंदगी ! ले जाएगी मुझको बता किधर .....गीत/ डॉ० प्राची सिंह

नटी बनी थिरका करती है जब-तब डगर-मगर
अरी ज़िंदगी ले जाएगी मुझको बता किधर...

क्यों ओढ़ी तूने सतरंगी सपनों की चूनर
सपने पूरे करने की जब राहें हैं दुष्कर
माना मीठी मुस्कानें पलकों तक लाते हैं
पर कर्कश ही होते हैं बिखरे सपनों के स्वर

तिनका-तिनका ढह जाता है
नीड़ हमेशा, फिर
बुनती है क्यों वहीं घरौंदा, चंचल जिधर लहर
अरी ज़िंदगी...

छलकी आँखों को पलकों के बीच दबाती है
सिसकी के तन पर उत्सव का लेप चढ़ाती है
शब्द कहेंगे झूठ मगर खामोशी कह देगी
बाहर क्या दिखता है , भीतर किसे छुपाती है

झंझावातों से गहरा क्या
नाता है तेरा
थमी-थमी लहरों पर फेंका करती है कंकर
अरी ज़िंदगी...

धूप-छाँव के तूने कितने पन्ने हैं खोले
कितने राज़ बताए कितने बाक़ी अनबोले
दूर अगर जाऊँ तो क्यों राहों में बिछती है
मगर पकड़ती हूँ तो झट से बैरी क्यों हो ले

लुका-छुपी गम और खुशी की
कब तक खेलेगी
मेरे सब प्रश्नों के आख़िर, कब देगी उत्तर...
अरी ज़िंदगी...

क्या खोया है तेरा जिसको ढूँढा करती है
ठिठकी धड़कन से आखिर क्यों आँहें भरती है
पग-पग पर आरोपित हैं जाने कितने बंधन
सच कहना क्या तू भी हर बंधन से डरती है

कभी बलैयों सी मीठी तो
कभी कटारी है
भला ज़िंदगी ! तुझे छुएगी किसकी बुरी नज़र...
अरी ज़िंदगी...

मौलिक और अप्रकाशित

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Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on June 3, 2017 at 7:11am

भावपूर्ण सृजन बहुत सुंदर पंक्तियाँ लिखी है आपने डॉ प्राची सिंह जी हार्दिक बधाई |

Comment by बसंत कुमार शर्मा on June 2, 2017 at 9:46pm

बहुत सुंदर मन के भाव 

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on June 1, 2017 at 12:30am
जीवन की धूप-छांव पर बेहतरीन भावपूर्ण सृजन हेतु तहे दिल से बहुत-बहुत बधाई आदरणीय डॉ. प्राची सिंह जी।
Comment by Mohammed Arif on May 31, 2017 at 6:34pm
आदरणीया प्राची सिंह जी आदाब, बहुत ही सुंदर और भावपूर्ण गीत । ढेरों बधाइयाँ क़ुबूल करें । क्या कारण है कि आप रचना पोस्ट करने के बाद गुणीजनों द्वारा दी गईं प्रतिक्रियाओं पर उपस्थित नहीं होती हैं?
Comment by Shyam Narain Verma on May 31, 2017 at 3:17pm
सुन्दर गीत के लिए आपको बधाई  सादर

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