For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल(दिल बचाया तो तेरा जिगर जाएगा )

फाइलुन -फाइलुन-फाइलुन-फाइलुन

वक़्ते तन्हाई मेरा गुज़र जाएगा |
तू अगर साथ शब भर ठहर जाएगा |

मुझको इज़ने तबस्सुम अगऱ मिल गई
तेरा मगरूर चेहरा उतर जाएगा |

मालो दौलत नहीं सिर्फ़ आमाल हैं
हश्र में जिनको लेकर बशर जाएगा |

उसके वादों पे कोई न करना यक़ी
वो सियासी बशर है मुकर जाएगा |

देखिए तो मिलाकर किसी से नज़र
खुद बखुद ही निकल दिल से डर जाएगा |

आप खंजर का एहसान लेते है क्यूँ

मुस्कराहट से दीवाना मर जाएगा |

.

तीर तस्दीक़ तिरछी निगाहों का है

दिल बचाया तो तेरा जिगर जाएगा |

(मौलिक व अप्रकाशित )

Views: 1120

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on April 24, 2017 at 5:09pm
जनाब नीलेश साहिब,मश्वरे का बहुत बहुत शुक्रिया ---
Comment by Tasdiq Ahmed Khan on April 24, 2017 at 5:07pm
जनाब अनुराग साहिब,ग़ज़ल में आपकी शिरकत, हौसला अफजाई और मश्वरे का बहुत बहुत शुक्रिया----
Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 24, 2017 at 10:36am

आ. तस्दीक़ साहब...
मैंने  मिसरा नहीं दिया है.... एक  तरकीब सुझाई है ...
जैसे
देखिये तो खाकर कहने की जगह खाकर तो देखिये अधिक आग्रही और ग्राह्य होता है ....बाक़ी आपकी ग़ज़ल है..जैसा आप उचित मानें 
सादर 

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on April 23, 2017 at 11:41am

जनाब नीलेश साहिब , ग़ज़ल में आपकी शिरकत और हौसला अफज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया
शब्द "वक़्त "(अरबी ),तन्हाई (फ़ारसी ), बद (फ़ारसी ),फ़ज़ीलत(अरबी )के हैं ,फ़िरोज़ूल्लुगात में
वक़्ते बद और वक़्ते फ़ज़ीलत , इस्तेमाल किए गये हैं , नार्वा की कोई मान्यता नहीं है |
देखिए तो मिलाकर किसी से नज़र ------मेरे हिसाबसे "तो" भरती का नहीं बल्कि मेन शब्द है
जिसपर "देखिए " शब्द का ज़ोर है|" मिला कर तो देखें किसी से नज़र "'मिसरा बह्र में नहीं होगा
"खुद ब खुद ही निकल दिल से डर जाएगा " इस मिसरे का दारोमदार पढ़ने वाले पर है कि वो
किस अंदाज़ में पढ़ता है , मेरे हिसाब से मज़मून मुकम्मल है |
"मुस्कराहट से दीवाना मर जाएगा "' शब्द दीवाना का "ना" नहीं बल्कि "अलिफ " गिराया गया है
शब्द दीवान और दीवाना दोनो अलग अलग हैं | आपके मशवरे का शुक्रिया ------सादर

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on April 23, 2017 at 11:09am

जनाब रवि  साहिब , ग़ज़ल में आपकी शिरकत और हौसला अफज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया  

Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 23, 2017 at 9:42am

आ. तस्दीक़ साहब... बहुत शानदार ग़ज़ल के लिये बधाई ..
शब्द   अगर एक ही भाषा के हैं (या अरबी-या फ़ारसी) तो ही इज़ाफ़त स्वीकार्य है...
वक़्त   और तन्हाई का त साथ आने से भी नारवा प्रतीत होता है ..(हालाँकि कोई मानता नहीं है अब इसे)
.
मालो दौलत नहीं सिर्फ़ आमाल हैं 
हश्र में जिनको लेकर बशर जाएगा |... ये बहुत अच्छा शेर लगा मुझे ...बधाई 
.
देखिए तो मिलाकर किसी से नज़र ...
मिलाकर तो देखें किसी से नज़र ... देखिये के बाद का तो भर्ती है... मिलाकर के बाद लेंगे तो ज़ुबान का हिस्सा हो जाएगा ..
.
खुद बखुद ही निकल दिल से डर जाएगा |...ऐसा लगता है कि कोई निकल नाम का शख्स दिल से डर जायेगा... मिसरा भाषाई लिहाज़ से ठीक नहीं है ..
.
मुस्कराहट से दीवाना मर जाएगा |... दीवाना का ना गिराना इसलिए सही नहीं है क्यूँ कि दीवान एक सार्थक शब्द बनता है ..ये भी मानने न मानने की बात है ..
ग़ज़ल के लिये पुन: बधाई 

Comment by Ravi Prabhakar on April 23, 2017 at 9:05am

टेक्‍नीकलिटी तो भई गुणीजन ही जाने पर ग़ज़ल पढ़ मुझे बहुत अच्‍छा लगा। विशेषकर -

आप खंजर का एहसान लेते है क्यूँ

मुस्कराहट से दीवाना मर जाएगा |

हार्दिक शुभकामनाएं स्‍वीकारें ।

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on April 22, 2017 at 7:59pm
मुहतरम जनाब समर कबीर साहिब आदाब,जो लेटेस्ट फिरोज़ुल लुगात है उसमें पेज नंबर 1412और 1413 पर यह शब्द मौजूद हैं यह लुगात नेट पर भी है ----लुगात में इज़्न का मतलब "हुक्म",और इजाज़त" लिखा है ,अगर हुक्म मानें तो मिल गया आना चाहिए और अगर इजाज़त लें तो मिल गया कैसे आयेगा ?,--"मुस्कराने की इजाज़त मिल गई "या "मुस्कराने का इजाज़त मिल गया "क्या सही होना चाहिए ,---सादर
Comment by Samar kabeer on April 22, 2017 at 6:02pm
मेरे पास जो फिरोज़ुललुग़ात है उसमें तो आपके बताये गये शब्द नहीं हैं,और 'इज़्न'और 'तबस्सुम'दोनों पुल्लिंग हैं तो मिल गई कहाँ तक ठीक है भाई ।
Comment by Tasdiq Ahmed Khan on April 22, 2017 at 5:08pm
मुहतरम जनाब समर कबीर साहिब आदाब, ग़ज़ल में आपकी शिरकत और हौसला अफजाई का बहुत बहुत शुक्रिया,महरबानी---अगर वक़्त के साथ इज़ाफ़त नहीं लग सकती तो लुगात में वक़्ते बद और वक़्ते फ़ज़ीलत किस तरह लिया गया है? इज़्ने तबस्सुम ---मतलब मुस्कराने की इजाज़त को "मिल गई " बोलेंगे या "मिल गया "यह समझ में नहीं आया ---सादर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Vikas is now a member of Open Books Online
12 hours ago
Sushil Sarna posted blog posts
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा दशम्. . . . . गुरु
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय । विलम्ब के लिए क्षमा "
yesterday
सतविन्द्र कुमार राणा commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"जय हो, बेहतरीन ग़ज़ल कहने के लिए सादर बधाई आदरणीय मिथिलेश जी। "
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"ओबीओ के मंच से सम्बद्ध सभी सदस्यों को दीपोत्सव की हार्दिक बधाइयाँ  छंदोत्सव के अंक 172 में…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ जी सादर प्रणाम, जी ! समय के साथ त्यौहारों के मनाने का तरीका बदलता गया है. प्रस्तुत सरसी…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"वाह वाह ..  प्रत्येक बंद सोद्देश्य .. आदरणीय लक्ष्मण भाईजी, आपकी रचना के बंद सामाजिकता के…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाई साहब, आपकी दूसरी प्रस्तुति पहली से अधिक जमीनी, अधिक व्यावहारिक है. पर्वो-त्यौहारों…"
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ भाईजी  हार्दिक धन्यवाद आभार आपका। आपकी सार्थक टिप्पणी से हमारा उत्साहवर्धन …"
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी छंद पर उपस्तिथि उत्साहवर्धन और मार्गदर्शन के लिए हार्दिक आभार। दीपोत्सव की…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय  अखिलेश कॄष्ण भाई, आयोजन में आपकी भागीदारी का धन्यवाद  हर बरस हर नगर में होता,…"
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी जी छन्द पर उपस्तिथि और सराहना के लिए हार्दिक आभार आपका। दीपोत्सव की हार्दिक…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service