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प्रश्न सूरज पे ये होना था, वो छिपा क्यूँ है?- ग़ज़ल--पंकज मिश्र

2122 2122 22 1222

सब किताबों से अलग तेरा फ़लसफ़ा क्यूँ है?
उस ने पूछा तू बता दुनिया से जुदा क्यूँ है?

सर्द रातों की वजह पछुवा ये पवन है क्या?
प्रश्न सूरज पे ये होना था, वो छिपा क्यूँ है?

पेट खाली औ न हो घर तो फिर यही तय था
पूछ मत यारा धुआँ घाटों पे उठा क्यूँ है?

छोड़ चिंता ये गरीबों की चल रज़ाई में
नींद में अपनी ख़लल खुद ही डालता क्यूँ है?

कर्म का फल तो सभी को ही है यहाँ मिलना
प्रीत तू भय से जगाने की सोचता क्यूँ है?
=================================

एक शेर, इस्लाह के लिए
22 22 22 22
चाँद-अमावस में वस्ल कहाँ
जब पाख ही काली हिज़्र की है
=================================

मौलिक अप्रकाशित

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Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on January 20, 2017 at 8:36pm
आदरणीय गिरिराज सर सादर आभार
Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on January 20, 2017 at 8:36pm
आदरणीय बाऊ जी सादर प्रणाम।
इस्लाह वाले शेर में कहना चाह रहा हूँ----कुछ चीजें नियत हैं, चाँद और अमावस्या की रात में मुलाकात नहीं लिखी, क्योंकि चाँद ठहरा रौशनी का माध्यम, और अमावस्या कृष्ण पक्ष की रात होती है।

जिस प्रकार चाँद-अमावस में, धरती-गगन में मिलन असम्भव है वैसे ही कुछ मुलाकातें महज़ सोच में ही संभव हैं
Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on January 20, 2017 at 8:35pm
आदरणीय बाऊ जी सादर प्रणाम।
इस्लाह वाले शेर में कहना चाह रहा हूँ----कुछ चीजें नियत हैं, चाँद और अमावस्या की रात में मुलाकात नहीं लिखी, क्योंकि चाँद ठहरा रौशनी का माध्यम, और अमावस्या कृष्ण पक्ष की रात होती है।

जिस प्रकार चाँद-अमावस में, धरती-गगन में मिलन असम्भव है वैसे ही कुछ मुलाकातें महज़ सोच में ही संभव हैं
Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on January 20, 2017 at 7:39pm
आदरणीय सुरेंद्र सर बहुत-बहुत आभार

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Comment by गिरिराज भंडारी on January 17, 2017 at 8:25pm

आदरणीय पंकज भाई  , खूब सूरत गज़ल हुई है , हार्दिक बधाइयाँ स्वीकार करें ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 17, 2017 at 8:25pm

आदरणीय पंकज भाई  , खूब सूरत गज़ल हुई है , हार्दिक बधाइयाँ स्वीकार करें ।

Comment by Mohammed Arif on January 16, 2017 at 4:51pm
आदरणीय पंकज कुमार मिश्राजी, अच्छी ग़ज़ल के लिए बधाई ।
Comment by Samar kabeer on January 16, 2017 at 10:51am
अज़ीज़म पंकज कुमार मिश्रा आदाब,अच्छी ग़ज़ल हुई,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।
आपने जो शैर इस्लाह के लिये दिया है,उसके भाव स्पष्ट नहीं हैं ।
Comment by नाथ सोनांचली on January 16, 2017 at 8:30am
आद0 पंकज मिश्र जी उम्दा ग़ज़ल कहीं आपने, दाद के साथ मुबारकबाद कबूल फरमाएँ। कुवहः शैर तो सीधे दिल पर असर करते है।

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